सही राह

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एक बार की बात है, जब गौतम बुद्ध जी मगध राज्य के एक गांव में ठहरे हुए थे। गांव से थोड़ा बाहर एक मोची अपने परिवार के साथ रहता था। उस मोची के घर के पास एक तालाब था। एक दिन रोज़ की तरह सुबह मोची तालाब किनारे पानी लेने गया। वहाँ उसने तालाब में एक बहुत ही अद्भुत पुष्प देखा। वह पुष्प देखने में बहुत ही सुंदर था और चमत्कारिक भी प्रतीत हो रहा था।
मोची ने तुरंत ही अपनी पत्नी को बुलाया और वह पुष्प उसे दिखाया। मोची की पत्नी आध्यात्मिक और धर्म में आस्था रखने वाली थी। वह पुष्प को देखते ही समझ गयी कि ज़रूर कल यहाँ से गौतम बुद्ध जी गुज़रे होंगे, उन्हीं के प्रताप से यह पुष्प खिला है।
पुष्प को चमत्कारिक मान कर मोची ने एक योजना बनाई। उसने अपनी योजना के बारे में पत्नी को बताया कि वह इस पुष्प को राजा को देगा और उनसे खूब सारी स्वर्ण मुद्राएं लेगा। उसकी पत्नी ने भी सोचा कि यह पुष्प उनके किसी काम का नहीं है। इसे राजा को ही दे दो, कम से कम कुछ कमाई तो होगी।
पत्नी की सहमति के बाद, मोची राजमहल की ओर निकल गया। राजमहल के रास्ते में उसे एक व्यापारी मिलता है, मोची के हाथ में पुष्प देख कर वह रूक जाता है। वह मोची से पूछता है कि भाई ये पुष्प लेकर कहाँ जा रहे हो?
मोची कहता है कि मैं यह पुष्प लेकर राजा के पास जा रहा हूँ। इसे राजा को भेंट करके राजा से मुंह मांगा इनाम लूंगा।
व्यापारी ने मोची को प्रस्ताव दिया कि तुम ये पुष्प मुझे दे दो, बदले में मैं तुम्हें 100 स्वर्ण मुद्राएं दूंगा। मोची सोच में पड़ गया। उसने सोचा कि जब व्यापारी इस पुष्प के लिए 100 स्वर्ण मुद्राएं दे रहा है, तो राजा तो और ज्य़ादा देगा। यही सोचते हुए उसने व्यापारी को पुष्प देने से मना कर दिया।
थोड़ा आगे चला ही था कि उसे रास्ते में राजा आते हुए नज़र आए जो गौतम बुद्ध के दर्शन के लिए जा रहे थे। राजा भी मोची के हाथ में वो दिव्य पुष्प देख कर अचंभित हो गये। राजा ने मोची को पुष्प के बदले 1000 स्वर्ण मुद्राएं देने के लिए कहा। यह सुनते ही मोची के मन में एक अजीब-सी चेतना आई। और वह राजा को पुष्प न देकर दौड़ता हुआ सीधे महात्मा बुद्ध के पास जा पहुंचा।
महात्मा बुद्ध जी मोची को देखकर हैरत में पड़ गये। उन्होंने मोची से पूछा तो मोची ने उन्हें सारी बात बताई। इसके बाद मोची ने वह पुष्प महात्मा गौतम बुद्ध के चरणों में अर्पित किया और उनसे कहा कि पहले तो मेरे मन में पुष्प को देखकर लालच आ गया था। लेकिन अब मैं समझ गया हूँ कि जिसकी छाया पडऩे से ही एक पुष्प इतना दिव्य हो गया हो अगर उसकी शरण में मैं चला जाऊं तो मेरा जीवन भी धन्य हो जायेगा। इसके बाद वह आजीवन महात्मा गौतम बुद्ध का शिष्य बनकर रहा।

कहानी से सीख : इस कहानी ने हमें सिखाया कि हमारी जि़ंदगी में हमें बहुत सी चीज़ें अपनी तरफ आकर्षित करती हैं, लेकिन हमें उनके लालच में न फंसकर अपने ज्ञान का प्रयोग करके जीवन में सही राह को चुनना चाहिए।

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