जीवन की वो स्वर्णिम घड़ी जहाँ एक तुम… एक मैं…

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मेरे लिए अद्भुत क्षण… एक वो, एक मैं… तीसरा न कोई। लाइट ही लाइट… लाइट ही लाइट और ऐसा महसूस हुआ जैसे इतनी लाइट मेरे से निकल रही होगी, मैं ये नहीं खास देखा कि मेरे से लाइट निकल रही होगी। लाइट क्या निकल रही होगी मैं खुद ही लाइट था।

जैसा कि पिछले अंक में आपने पढ़ा कि भगवान जो है वो निर्भय है। उसको कोई भय नहीं। ये पहचान है उसकी। वो सबसे सामना करने को तैयार है। अब आगे पढ़ते हैं… फिर औपचारिक रूप से बाबा से मिलने हम ऊपर गये। ऊपर एक जगह थी। सीढियां चढ़कर जाना पड़ता था। लकड़ी की सीढियां बनी हुई थी। तो बाबा-मम्मा बैठे थे, उनके मिलने के लिए हमको लिवा गए। उनके सामने जाके बिठा दिया। हमको मालूम नहीं था कि इनसे कैसे मिलना होता है। संतो, महात्माओं का अपना-अपना तरीका होता है। गुरुद्वारे का अपना एक तरीका होता है। हरेक जगह का अपना-अपना तरीका होता है। यहाँ कैसे मिलना है, हमको नहीं मालूम। किसी ने बताया नहीं था, गाइड नहीं किया था। हम तो जाके बैठ गए बाबा के सामने। मैं बैठा बाबा के सामने, हमारे साथ दो व्यक्ति और थे और बहनें थीं कुछ। तो साइलेंस बाबा को देख रहा हूँ, बाबा मुझे दृष्टि दे रहे हैं। क्या हुआ… मैं उड़ गया, उड़ गया का क्या मतलब पक्षी की तरह से उड़ गया, छत से पार कर गया वो नहीं। उड़ गया मतलब मुझे शरीर का ज़रा भी भान नहीं रहा। मैं कहा करता था कि हे प्रभु मेरे जीवन की वो स्वर्णिम घड़ी होगी जो अत्यंत मूल्यवान होगी। जब एक तुम, एक मैं… तीसरा ना कोई। हम दो आपस में मिलकर बात करेंगे। बैठेंगे, मिलेंगे मुझे कुछ नहीं चाहिए, क्या तुम मेरी ये इच्छा पूरी कर सकते हो? तुम सबकी इच्छा पूरी करने वाले हो, मेरी और कोई इच्छा नहीं है। मेरी ये इच्छा है कि एक तुम, एक मैं बस… हम दो, तीसरा कोई नहीं। अरे वो आज अनुभव मुझे हुआ। एक वो, एक मैं… तीसरा न कोई। लाइट ही लाइट… लाइट ही लाइट और ऐसा महसूस हुआ जैसे इतनी लाइट मेरे से निकल रही होगी, मैं ये नहीं खास देखा कि मेरे से लाइट निकल रही होगी। लाइट क्या निकल रही होगी मैं खुद ही लाइट था। और कोई मुझे ख्याल नहीं आया। उस समय मेरे लिए समय कुछ नहीं था। स्थान का मुझे भान नहीं था। मैं दोनों से अतीत था। मैं कहां चला गया, वो कौन-सा लोक था। प्रात: थी या सायं थी, मुझे कुछ मालूम नहीं। लाइट ही लाइट थी। बड़ा आनंद था। बहुत अच्छा अनुभव हुआ। प्रभु तुमने पहले ही दिन मेरी इच्छा पूरी कर दी। तू सचमुच भोलानाथ है। तू वरदानी है। तू बच्चों की इतनी सुनता है मेरी इतनी प्यास थी ये, तूने आज वो अमृत मुझे पिला दिया। वो अनुभव मुझे हुआ। अरे वो कैसा अनुभव था भाई, उसके लिए क्या मूल्य दिया जा सकता है, चुकाया जा सकता है। उससे बड़ी क्या चीज़ हो सकती है! ये था, जो मैं चाहता था। वो मुझे उसने दे दिया। और मुझे क्या चाहिए! आप बताइए, क्या मांगू उससे। जब उसने इतनी बड़ी प्राप्ति मुझे दे दी, इतना बड़ा अनुभव मुझे करा दिया। उसके बाद उससे कुछ मांगने की, उससे कुछ एक्सपेक्टेशन की गुंजाइश रह जाती है! फिर मैं जब नीचे उतरा तो देखता हूँ कि बाबा की गोद में हूँ। मैं बाबा की गोद में कब गया, मैं तो वहाँ बैठा था। बाबा यहाँ बैठे हुए थे। गोद में कब गया! और मैं तो लाइट ही लाइट था, वो भी लाइट था। शिवबाबा ज्योतिबिन्दु जो है वो बहुत ब्रिलियंट लाइट था। लाइट से लाइट का मिलन हो रहा था फेस टू फेस, लोग कहते हैं विद गॉड। अब फेस तो गॉड का था नहीं। और उस अनुभव में मेरा भी कोई फेस था नहीं। लेकिन लाइट था और वो भी लाइट थी, ये अनुभव किया। और जब उतरा नीचे तो बच्चे… बच्चे अपनी छाती के साथ लगाकर, इतना लम्बा-चौड़ा मैं 23-24 साल की आयु का जवान, हट्टा-कट्टा आदमी बाबा ने गोद में लिटाया हुआ और मुझे बच्चे…बच्चे कहके प्यार करते हैं। आओ, आओ मिलेंगे, मिलेंगे अब तो मिल गये, अब तो मिलते रहेंगे ये शब्द मैंने सुने। तुम तो बाबा की गोद में हो। अब ये सुनना था कि कल जिस बहन ने, शशि बहन ने भोग लगाया था कि अजुन बाबा की गोद में था। अरे मैं तो गोद में पहले ही हो आया। पहले ही दिन बाबा की गोद में बैठा। शुरूआत ही मेरी ये हुई। मैं क्यों नीचे उतर आया! इस दुनिया में फिर क्यों आ गया! जीवन तो यही था। अनुभव तो यही चाहिए था। क्या मैं और समय नहीं रह सकता था इसमें! ये फिर मेरा लालच पैदा हो गया। इंसान थोड़ा लालची तो है ना। अब एक दफा भगवान ने वो चाटा चखा दिया ना! वो अच्छा लग गया और अच्छा लग गया ना तो अब मैं कहता हूँ फिर दे। लेकिन बाबा ने मुझे ये अनुभव कराया। फिर ये और अनुभव था कि ये भगवान स्वयं है। भगवान को मिलाने के लिए उसका कोई प्राइवेट सेक्रेटरी नहीं चाहिए। उसका कोई पीए नहीं है। जिससे मिलना चाहे उसको पता है उसकी जीवन का। उससे मिल लेता है। मेरे से बाबा ने मिल लिया। फिर वहाँ से उठे तो नीचे उतरे, नीचे उतरे तो कई कमरे थे उसमें कहीं सिलाई होती थी, कहीं कुछ, कहीं कुछ तो बाबा मुझे अंगुली पकड़कर नीचे ले गए। नीचे ले जाकर बच्चे यहाँ ये होता है, बच्चे यहाँ ये होता है। एक बहन बैठी है बच्चे ये, ये काम करती है इसका ये नाम है। इस बहन का ये नाम है, ये ऐसा काम करती है इसकी ये विशेषता है। स्वयं साक्षात बाबा जैसे घर में बच्चा कोई बहुत समय के बाद आता है तो मुझे भी बाबा ने जैसे मैं आ गया हूँ बहुत टाइम के बाद सिकिलधा। बाबा सबसे मिला रहा है, दिखा रहा है। पहचान करा रहा है स्वयं बाबा। उस समय लगभग सारी बहनें थीं। लगभग सारे भाई थे। साढे तीन सौ के, चार सौ के, चार सौ से थोड़े कम थे। उनमें से कुछेक का जो वहाँ बैठे थे उनसे परिचय कराया। वो दुनिया ही अलग थी। कैसी न्यारी दुनिया में हम आ गये। तो बाबा हमको सबसे परिचय कराया। जैसे मैं बहुत पुराना कोई इसी जगह का हूँ। ये पुरानी पहचान है, ये सारा कुछ मेरे साथ होता गया, होता गया, ये बहुत लम्बी दास्तान है। लेकिन ये अनुभव बीच बीच में थोड़ा बताऊंगा। उस बिल्डिंग के और अनुभव छोड़ देता हूँ। उसके बाद हम कोटा हाउस में आये। वो अभी भी है सर्किट हाउस है वहाँ पर। उस कोटा हाउस में शिफ्ट किया बिल्डिंग को। क्योंकि भरतपुर के महाराजा ने बिल्डिंग की कोई रिपेयर नहीं कराई, बारिश आती थी, टपकता था, कई चीज़ें थीं। बाबा ने मुझे कार्य दिया, विश्वकिशोर के डायरेक्शन से। कुछ लोग थे उनके परिचित उनको बीच में डाला कुछ हुआ नहीं। हमको वहाँ से शिफ्ट होकर आना पड़ा कोटा हाउस और धोलपुर हाउस इन दो जगह पर हम गये। कोटा हाउस में मैं आया। लेकिन उससे पहले एक बात और ख्याल में आ गई कि इस भरतपुर कोठी में जब मैं था तो इसमें एक सरदारी माल के नाम से एक जगह थी या कोई और नाम था बहुत टाइम हो गया है। मेरे ख्याल में यही नाम था। तो बाबा मम्मा उसमें बैठे थे साथ में मनोहर दादी, कुंज बहन और एक दो और दीदी थी। हम उस समय बाबा से मिले रात का कोई टाइम था दस बजा होगा। तो बाबा ने कहा बच्चे दस बजा है आप चलो। जाओ रेस्ट करो। बाबा आदेश हुआ तो हम लोग वहाँ से उठकर आये। अपनी अपनी जगह पर सब चले गए। उसके पास ही जैसे हम नीचे उतरे तो शुरु में कोई छोटे-छोटे कमरे थे उनके दरवाजे नहीं थे। उसमें पर्दा लगा हुआ था। कमरा साफ सुथरा था,चारपाई लगी हुई थी। तो वहाँ मेरे को जगह मिली हुई थी, अकेला था मैं। तो मुझे रहने को वहाँ कहा गया था। तो मैं वहाँ आके लेटा लेकिन मुझे नींद नहीं आ रही थी। बाबा-बाबा मैं आ गया, बाबा के पास आ गया। बस वो सरूर, वो नशा, वो खुशी और मेरे को नींद न आये उसमें। मैं जाग रहा था। लेटे-लेटे, लाइट-लाइट जैसे शरीर है नहीं ऐसा अनुभव कर रहा हूँ। बाबा की याद होते-होते ये मेरी स्थिति हो गई। और उस स्थिति में क्लाइमेक्स की एक स्टेज ये आई कि मैंने कहा बाबा… पास में ही तो बाबा थे। और दूसरी ओर और लोग रह रहे थे तो मैं तो शायद ज़ोर से बोलता, बाबा। लेकिन मैंने आवाज़ दबा दी। दबी आवाज़ में कहा बाबा, बाबा ताकि कोई दूसरे भागे हुए न आयें कि क्या बात है, कौन आ गया है इसके कमरे में, जगदीश भाई को क्या हुआ? बाबा, जैसे मैं बाबा के बिना रह नहीं सकता। अब उसके बिना मेरा जीवन और कुछ है नहीं। मैं उसी का हूँ और वो मेरा है। छोटा बच्चा जैसे माँ से अटैच्ड होता है। रात को सोता है तो टांग माँ के ऊपर रखके सोता है। कहीं खिसक न जाये रात को, ये मेरे काबू में रहे। चली जाती है ना कई बार बच्चे को सुला के। मेरा भी ऐसे ही था। बाबा… साइलेंस लाइट, बाबा क्या देखता हूँ बाबा आ गये हैं, बाबा आके सामने खड़े हो गए। मैंने लाइट ऑफ की नहीं थी क्योंकि मुझे नींद तो आ नहीं रही थी। लाइट ऑन ही थी। और उसमें बाबा आके खड़े हो गए मुझे दृष्टि देने लगे। साक्षात्कार जैसे होता है बाबा साकार में हैं। लेकिन साकार में मुझे साकार भी दिखाई दे रहे हैं, लाइट के भी दिखाई दे रहे हैं। जिसको सेमी ट्रांस की आप स्टेज कह दीजिए। दोनों जैसे वो कहते हैं ना गुरु गोविन्द दोनों खड़े, काके लागू पाये। तो दोनों ही जैसे मुझे इक_े दिखाई दे रहे हैं। अव्यक्त ब्रह्मा और ब्रह्मा। बाबा मुझे देख रहे हैं। मैं बाबा को देख रहा हूँ टकटकी बांध के। अरी आँखों बंद नहीं होना आज। ये मुझे अच्छी तरह से निहार लेने दो। जी भरकर। देखता ही जाऊं, देखता ही जाऊं। वो गीत है ना तेरी याद का अमृत पीते हैं। बार बार यही कहता तेरी याद का अमृत पीते हैं। तो मुझे भी यही था कि देखता ही रहूं, देखता ही रहूं। दिल कहता बाबा तूझे देखता ही रहूँ। तो मैं देखता ही रहा, देखता ही रहा। बाबा मुझे दृष्टि देते ही रहे। मैं यहाँ होते हुए भी यहाँ नहीं था। और फिर बाबा बोले मैं फिर बाद में थोड़ा नीचे उतरा नीचे उतरा तो सोचने लगा कि ये मैं लाइट का देख रहा हूँ या बाबा साकार में उनको देख रहा हूँ। अपने ऊपर ही सोचने लगा। बाबा को मेरा वायब्रेशन पहुंचा होगा, बाबा ने कहा बच्चे, बच्चे अब लेट जाओ। रेस्ट करो। सुबह मिलेंगे। अच्छा बाबा लेट गया मैं। अब मैंने ये एक और अनुभव कर लिया कि योग का कनेक्शन क्या होता है, याद का। उसमें तार कोई नहीं बीच में लेकिन मैसेज पहुंचता है और मैसेज आता है। कच्चे धागे से बंधी हुई है सरकार मेरी जिसको कहते हैं। धागा नहीं बंधा हुआ है लेकिन मेरी सरकार तो आ गई मेरे सामने ये मैंने देख लिया। ये सच्चा योग है और जैसे मैंने पहले बताया कि ये तो बहुत अपने प्रकार की कहानी है, दास्तान है उसको सुनायें तो टाइम की बहुत ज़रूरत है। उतना मैं नहीं कह पा रहा हूँ। ये जो लकड़ी का जिना आता है, मूवमेंट लेडर लाठी का बना हुआ है। उसपर चढ़कर कई दफा हमने बाबा को हमने कील लगाते हुए देखा। अकेले हथौड़ी और कील लेकर ठोक रहे हैं। आशियाना बना रहे हैं। कुछ बच्चे आ रहे हैं। जगह है नहीं रहने की उनके लिए वो बना रहे हैं लेकिन माफ कीजिए आज मैं देखता हूँ सेन्टर्स पर सम्पन्न बहनें, भाई या दूसरे जो धनाढय हैं, या और किसी तरह वाले सेवा करते होंगे, चुनी हुई सेवा करते हैं। जिसको हड्डी हड्डी देने वाली सेवा कहते हैं वो नहीं देखने में आती। और मैंने बाबा को उस आयु में भी वो सारा कार्य करते देखा। क्या फायदा यदि हम उन चर्चाओं को करेंगे और उससे रिज़ल्ट नहीं होगा, जीवन में कोई धारण नहीं करेंगे तो क्या फायदा। बाबा कहता है मैं चक् कर लगाता हूँ, बच्चों के कमरों में जाता हूँ देखता हूँ क्या कर रहे हैं। अरे विश्वास नहीं है, बाबा ऐसे ही कह रहे हैं। मैं वरदान देता हूँ उस टाइम। हाय हाय तुम वरदान भी नहीं लेना चाहते। ऐसे बदनसीब हो। भगवान के घर में आके, उसके पास खाते पीते रहते हो। उससे वरदान भी नहीं ले सकते, जाग भी नहीं सकते। मुरली भी नहीं सुन सकते। शिव बाबा परमधाम से आता है परमधाम से। उसकी इनस्ल्ट करते हो, डिसरिस्पेक्ट करते हो। कौन है वो, कितनी बड़ी अथॉरिटी है। अक्ल मारी तो नहीं गई। ये कितनी बदनसीबी है।

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