कैसे बनें बाप समान सम्पन्न और सम्पूर्ण

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एक-एक कर्मेन्द्रिय को चेक करो कि न्यारी हो गई है? तैयार हो गई है? क्योंकि ऊपर उडऩा है, हमें बाबा के पास जाना है, तो इतनी सारी आसक्तियों से कर्मेेन्द्रियां फ्री हो जायें।

ये जो ड्रामा के अन्दर युक्ति है कि संगठित रूप में बैठकर ऐसे योग की ज्वाला जलाते हैं तो उससे ही आत्मा के अन्दर के डीप रूटेड जो संस्कार हैं उन संस्कारों को बहुत सहजता से हम परिवर्तन कर सकते हैं। नहीं तो अकेले में योग करो तो चारों ओर बुद्धि जैसे खींचती भी है और इतनी एकाग्र नहीं होती है जितना संगठन में होती है। सम्पन्नता का अनुभव बहुत सहज होता है। समय अनुसार अब बाबा कहे कि तुम बच्चों को अब सम्पन्नता की ओर जाना है। हम सम्पन्नता के नज़दीक जा रहे हैं उसकी पहचान क्या होगी? जैसे बाबा कहते हैं कि हलवा तैयार हो जाता है तो क्या होता है वो किनारा छोडऩे लगता है। तो इसी तरह बुद्धि से हमारा भी लंगर उठना कहो या किनारा कहो माना किसी भी प्रकार की आसक्ति न रहे। कोई भी कर्मेन्द्रिय अपनी तरफ खींचे नहीं। कोई भी कर्मेन्द्रिय हमें धोखा न दे सके। ऐसी हमारे अन्दर पॉवर आ जाये। अगर कहीं पर भी ये कर्मेन्द्रियों का आकर्षण है, लगाव है तो माना अभी तक हलवा तैयार नहीं हुआ है। स्थिति हमारी तैयार नहीं हुई है। बाबा कई बार मुरली में कहते हैं कि चेक करो कि कहीं आँखें धोखा तो नहीं दे रही है? कहीं मुख धोखा तो नहीं दे रहा है? कान कहीं धोखा तो नहीं दे रहे हैं? एक-एक कर्मेन्द्रिय को चेक करो कि न्यारी हो गई है? तैयार हो गई है? क्योंकि ऊपर उडऩा है, हमें बाबा के पास जाना है, तो इतनी सारी आसक्तियों से कर्मेेन्द्रियां फ्री हो जायें। ये मुझे अपने आप में महसूस करना है, देखना है कि हमारी बुद्धि कहीं अटकी हुई तो नहीं है। हमारी आँखें भी कितना धोखा देती हैं। कोई एक रूप से थोड़े ही धोखा देती है कि खाली नाम-रूप में फँसे उसी को थोड़े ही कहा जाता है कि आँखों ने धोखा दे दिया। कोई चीज़ देखी और मन हुआ कि चलो उठाकर खा लें। तो वो आँखों ने देखा और जिह्वा भी क्या हो गई? फँस गई, खा भी लिया। तो एक आँखें कितनी इन्द्रियों को भी धोखा देने का काम करती है! इसीलिए बाबा कहते हैं कि इन आँखों से किसी को भी देखा तो कभी नफरत का भाव जाग्रत हुआ, कभी हीनता का भाव जाग्रत हुआ, कभी कौन-सा भाव जाग्रत हुआ तो देखा तब ना! क्यों देखा क्योंकि देह को देखा। अगर आत्मा को देखते तो हर आत्मा तो बाबा का बच्चा है, हम सब एक परिवार के हैं तो हीनता की भावना या नफरत की भावना के ये सब भाव समाप्त हो जायेेंगे। सम्पन्नता का दूसरा लक्षण है भरपूरता का अनुभव करना। अगर भरपूर हैं तो कहीं आँख डूब नहीं सकती है। ऐसी अन्दर की स्थिति हो सन्तुष्टता की। अगर इतना अन्दर से तृप्त है आत्मा तब कहेंगे कि हाँ सम्पन्नता के नज़दीक जा रहे हैं। अगर आत्मा अन्दर तृप्त ही नहीं है ये चाहिए, वो चाहिए, अनेक प्रकार के भाव, चाहिए… चाहिए, के अन्दर इमर्ज हो रहे हैं तो बाबा कहे वो तृप्ति, वो सन्तुष्टि नहीं है। सन्तुष्टता से बहुत दूर हैं। तो इसीलिए सम्पन्न स्थिति माना ही बाप समान स्थिति। और बाप समान स्थिति माना सरलता। सरलता आ जाती है। जितना सम्पन्न होते जाते उतना ही फ्लेक्सिबल होते जाते। जैसे चाहो वैसे मोड़ सकें अपने आपको, कहीं कोई प्रकार की देह अभिमान की अकडऩ न रहे। इतने सरल रहें हम, तो सरलता ही बाबा को भी क्या? बहुत प्रिय लगती है। यही हमें सम्पन्नता की ओर ले जाती है। इसीलिए बाबा कहे अपने आप को देखो कि हम कितने सम्पन्नता के नज़दीक पहुंचे हैं। और यदि नहीं पहुंचे हैं तो क्या करेंगे? तो अपने ऊपर मेहनत करनी है। अब समय अनुसार क्या मेहनत करेंगे? तो कम से कम बाबा अभी भी हम बच्चों को सूक्ष्म में मदद करने के लिए तैयार हैं, तो बाबा से सकाश लेना, कब? अमृतवेले। कृष्ण भी अमृतवेले पैदा होता है। लेकिन भक्तिमार्ग में कह दिया है कि वो रात को बारह बजे पैदा होते हैं, लेकिन बाबा कहते कि वो तो अमृतवेले पैदा होता है। एक नया राज़ कृष्ण के जन्म से जुड़ा हुआ, एक भविष्यवाणी आज बाबा ने बता दी कि कृष्ण कब पैदा होता है रात को बारह बजे पैदा नहीं होता, वो तो अमृतवेले पैदा होता है। तो ये भी एक बेहद की घड़ी में भी अमृतवेला ही कहेंगे। सतयुग आने की भोर जैसे आ गई तो कृष्ण जरूर आयेगा। तो अमृतवेले ही, अब समय अमृतवेले का चल रहा है तो अमृतवेले अभी भी साकाश देकर हम बच्चों कोम दद कर रहा है। तो बाबा की साकाश को खींचना, खुद नही कर पा रहे हैं तो बाबा से साकाश लेकर अपने अन्दर भरना है। तो कैसे भरेंगे? बाबा ने एक अव्यक्त मुरली में बहुत अच्छी बात बताई थी कि बाबा से साकाश लेना है अगर देह अभिमान में होंगे तो साकाश नहीं ले सकते। उसके लिए मुझे भी अपने स्वरूप को कैसा बनाना होगा? बाबा के जैसा। सूक्ष्म स्वरूप जो है अन्तवाहक जिसे कहते हैं, अंर्तवाहन जो बन जाये और फरिश्ता स्वरूप में वो अन्तर्वाहन बनते हुए जब यहाँ से हम उड़ते हैं तो यहाँ सीधा फरिश्ते स्वरूप में नहीं पहुंच जाते हैं,लेकिन जो सूक्ष्म शसरीर है जो कभी छाया के रूप में दिखाते हैं कि वो सूक्ष्म शरीर है तो वो हमारा अन्तर्वाहन है। उससे हम वतन में जाते हैं बाबा के पास। और वहाँ हरेक की सम्पूर्ण अव्यक्त फरिश्ता पन की डे्रस है। उस फरिश्ते डे्रस को धारण करते हैं। जैसे साकार बाबा के समय बाबा जब पुरुषार्थ करते थे और जैसे ही ये राज़ खुला कि सूक्ष्म वतन में भी बाबा है। और वो बाबा बहुत प्रकाशमान है। तो बाबा को जानने की थी कि ऊपर वाला बाबा कैसा है। तो जब संदेशियों सेपूछते थे तो वो कहती कि वो तो बहुत लाइट-लाइट वाला है। उस समय फरिश्ता ड्रेस का पता ही नहीं था। तो बाबा न े सोचा कि वो मेरा सम्पूर्ण रूप है और ये मेरा पुरूषार्थी स्वरूप है। और ये स्वरूप उस स्वरूप में मर्ज हो जायेगा। ठीक इसी तरह कई बार दादियां संदेशियां जब ऊपर जाती हैं बाबा कभी कभी सभा दिखाते हैं और वो सभा जैसे फरिश्तों की सभा होती है। एक बार हमने दादी गुल्ज़ार से पूछा कि दादी बाबा जब आपको ऊपर सभा दिखाते हैं तो हम दिखाई देते हैं? तो दादी ने कहा कि ये नहीं पता चलता है कि कौन है। क्योंकि हरेक का सम्पूर्ण फरिश्ता स्वरूप होता है। हमारे सामने जो सभा दिखाते हैं। तो उसमें हरेक के अलग हो जाते हैं। दिव्य फिचर्स हो जाते हैं। बहुत प्रकाशमान फिचर्स हो जाते हैं तो पहचान नहीं सकते। बहुत कोई कोई को पहचान लेते हैं जैसे कोई दादियां पहचान में आ जाती हैं क्योंकि वो उस स्वरूप के नज़दीक पहुंच गये हैं तो जिस तरह साकार ब्रह्मा बाबा का नीचे पुरूषार्थी स्वरूप और ऊपर सम्पूर्ण स्वरूप और बाद में वो उसमें जाकर मर्ज हो जाता। उसके लिए बाबा ने पुरूषार्थ किया। अढ़ाई बजे से उठकर बाबा बैठकर उस लाइट माइट स्वरूप में बैठकर जैसे ये स्वरूप उस स्वरूप में मर्ज हो रहा है। ठीक इसी तरह हमें भी अन्तिम पुरूषार्थ हमारा जो है वो यही होगा बाबा के जैसा कि जब भी हम बैठें तो यही अन्तर्वाहन, सूक्ष्म शरीर द्वारा हम वतन में जायें और वो सूक्ष्म शरीर को वहाँ सम्पूर्ण अव्यक्त फरिश्ता ड्रेस में मर्ज कर दें। वो धारण कर लें और अपने आपको उस दिव्य फीचर्स में देखें औश्र जब वो सम्पूर्ण स्वरूप में होंगे तो बाबा के साथ नैन मुलाकात सहज हो जाती है। नैन मुलाकात करते हुए जैसे बाबा के मस्तक से सकाश हम ले रहे हैं ये फीलिंग आती है। तो ये पहला तरीका है साकाश को प्राप्त करने का। दूसरा तरीका ये है कि बाबा कहते हैं कि कभी कभी ऐसी लहर होती है तो बाबा साकाश देता है। जैसे शुरू शुरू के यज्ञ कर हिस्ट्री में आप सबने सुना होगा कि जब यज्ञ में कोई अन् नय बच्चा बीमार होता था या बाबा के पास समाचार आता था खास करके जब हमने विशेष दादियों से यज्ञ की हिस्ट्री में सुना कि जब विश्वकिशोर भाऊ एडमिट थे बॉम्बे हॉस्पिटल में, या मम्मा का ऑपरेशन था तो उस समय बाबा अढ़ाई बजे से लेकर बच्चे को साकाश दे रहे थे, लाइट की किरणें दे रहे थे। जिसको कहें जैसे पहले के समय में जब किसी को कोई कैंसर हो तो उस जगह पर लाइट का फोकस देते थे। रेडिएशन जिसको कहा जाये। तो ठीक इसी तरह बाबा भी पॉवरफुल साकाश देते थे तो जब ऐसी कोई लहर होती है। ठीक इसी तरह महसूस करना है कि जैसे जैसे अन्तिम समय की ओर आगे बढ़ रहे हैं नैचुरल है कि दो बातों का पेपर विशेष हमारे सामने आयेगा। ये हर ब्राह्मण को क्रॉस करना ही है। कौन सा दो पेपर? एक शरीर का ज़रूर आता है। शारीरिक भोगना का। क्योंकि कई ऐसे कार्मिक अकाउंट हमने क्रिएट किए हैं ये कर्मेन्द्रिय से तो उसका हिसाब तो चुकाना पड़ेगा ही। और दूसरा अपने संस्कारों का। बाबा कहतेह ैं जैसे जैसे अन्तिम समय आता जायेगा तो माया भी फुल फोर्स से उभरेगी। तो हमारे ही कमज़ोरी के संस्कार जो हैं जिसको हमने मिटाया नहीं दबा कर रखा है। ज्ञान समझ से हमने उस संस्कार को दबा कर रखा है। तो जैसे जैसे अन्तिम समय आयेगा वो संस्कार फुल फोर्स से बाहर आयेगा और वो संस्कार हमें परेशान करेगा हमारी स्थिति को हलचल में ला देगा। तो ये दो पेपर खुद से हैं। तो देखो बाहर के जो विघ्न आयेंगे उनको निपटाना सहज है। ड्रामा कल्याणकारी है कहना सहज है, लेकिन खुद खुद के पेपर बन जायें तो? उसको फेस करना बहुत मुश्किल होगा। बाहर के किसी भी आत्मा का संस्कार देख कर उसको योग दान दे सकेंगे उसको शांति का दान दे सकेंगे। या साक्षी होकर देखने से उस स्थिति, परिस्थिति को पार करना आसान हो जायेगा। उस समय ज्ञान को यूज़ करना सहज हो जायेगा। लेकिन जब खुद के अन्दर ये से पेपर आयेंगे जो बाबा ने कहा है कि कभी कभी बच्चे अलबेलेपन के कारण सोचते हैं छोटी सी कमज़ोरी है ना वो ठीक हो जायेगी। समय आने तक ठीक हो जायेगी उसको ऐसे कहकर चला रहे हैं। लेकिन ये नहीं मालूम कि समय आने पर वो ठीक होने के बजाय फुलफोर्स के साथ बाहर आयेंगी। और वही हमारा पेपर बनेगी। तो इसीलिए बाबा कहे कि अपने आपको तो व्यक्ति अपने को अच्छे से जानते हैं कि मेरी कमज़ोरी कहां कहां है तो अभी से ही बाबा तो लाइट और माइट की किरणें वो रेडिएशन दे रहा है साकाश दे रहा है। तो विशेष उस संस्कार को भस्म करने का, वो ज्वाला स्वरूप स्थिति का जिससे वो पुराना संस्कार हमारा जड़ से समाप्त हो जाये। ताकि वो हमारे लिए पेपर बनकर हमारे सामने न आये। तो अभी से उन कमज़ोरियों को मिटाने का काम तो बाबा साकाश दे रहा है रेडिएशन दे रहा है पॉवरफुल, वो ज्वाला स्वरूप स्थिति से वो बीज को जला रहे हैं बाबा। तो वो संस्कार रूपी बीज को जलाना है। तो उसके लिए विशेष क्या चाहिए? एक तो बेहद की वैराग्य वृत्ति चाहिए तभी तो हम अपने आप से संस्कार को अलग करके उस संस्कार को ही बाबा से पॉवरफुल किरणें लेकर उसको भस्म करें। बाबा कहते हैं कि बच्चे जब तुम मेरी याद में बैठते हो आत्मा समझकर कई जन्मों का पाप कर्म दग्ध हो जाता है। भस्म हो जाता है। तो बाबा से वो सकाश प्राप्त करना माना बाबा तो किरणें दे रहा है लेकिन हमें उस किरणों के द्वारा उस पुराने संस्कार को भस्म करना है। तो ऐसी ज्वाला स्वरूप स्थिति हमारी हो जो उस पुराने संस्कार को दग्ध करे। तो दूसरा जो कहा कि किसी बीमारी के रूप में पेपर आना है। क्योंकि उसमें भी हमारी सहनशक्ति बहुत अधिक होनी चाहिए। अगर सहन नहीं होगा तो क्या होगा? तड़पन का अनुभव करेंगे, वो बीमारी भी तड़पन का अनुभव करायेगी। पूरी अवस्था हमारी हिला देगी और उसी अवस्था में यदि हमारा शरीर छोडऩा हुआ तो किस पद को हम प्राप्त करेंगे? शहज़ादे के रूप में जायेंगे या प्रजा में जायेंगे? तो इसीलिए बाबा कहे कि वो कर्मेन्द्रिय में भी इतनी बाबा से साकाश लेकर भरना है ताकि वो कर्मेन्द्रिय में इतनी पॉवर आ जाये कि वो बीमारी हमें अन्दर से तकलीफ न पहुंचा सके, वो आये और अपना हिसाब चुक्तू करके समाप्त हो जाये। इतनी सहनशक्ति हमारे अन्दर में भरपूर हो। ये सहनशक्ति बाबा से जैसे हमें अन्दर भरना है। सहन करने की शक्ति, स्थिति पॉवरफुल हमारी ऐसी बनानी है कि शरीर का कर्मभोग आत्मा के योगबल को हिला न सके। इतना अन्दर में योगबल को जमा करना है। तो बाबा की साकाश से अन्दर आत्मा में बल जमा करते जायें। जो इन पेपरों को क्रॉस करना आसान हो जाये। तीसराबाबा कहते हैं बाबा से साकाश लेने का आधार है कि लाइट और माइट की स्थिति। लाइट हाऊस माइट हाऊस बन जाये। जैसे लाइट माइट हाऊस जो है वो खाली मार्ग दर्शन देता है इतना ही नहीं मार्ग दर्शन तो ज़रूर हमारा करता ही है लेकिन साथ में हमारा वो रास्ता स्पष्ट हो जाये कि मुझे किस दिशा में जाना है? सवेरे बाबा से लाइट और माइट की किरणें लेकर अपना रास्ता स्पष्ट कर दो। मार्ग दर्शन स्पष्ट कर लो। तो लाइट हाऊस, माइट हाऊस की स्थिति में स्थित रहेंगे उतना बाबा जो पॉवरफुल सूर्य है वो सूर्य उस लाइट हाऊस माइट हाऊस में क्या भरेगा, शक्ति भी भरेगा, साकाश भी भरेगा और आगे के लिए हमारा मार्गदर्शन क्लियर हो जायेगा कि पुरूषार्थ की दिशा किस तरह की हमारी होनी चाहिए। ये जैसे एकदम स्पष्ट हो जायेगा।साथ ही साथ बाबा की वो अन्दर में शक्ति भरने से सर्वशक्तिवान से वो शक्ति भरने से क्या होगा, दृढ़ता वो अपने संकल्पों में आ जायेगी। क्योंकि जब रियल तपस्या करनी है तो रियल तपस्या का आधार क्या है? तपस्या किसको कहा जाता है? तपस्या माना ही दृढ़ता सम्पन्न अभ्यास। जिस तरह भक्ति माग के अन्दर प्रहलाद को दिखाते हैं कि परमात्मा को पाने के दृढ़ संकल्प कर लिया कि एक टांग पर खड़ा हो जाऊंगा। तो एक टांग पर दृढ़ संकल्प तो उसी से प्राप्ति होती है। बिना दृढ़ संकल्प के प्राप्ति नहीं होती। उस समय उसने उस दृढ़ संकल्प में ये डनलब के तकीये नहीं लगाये, कि भई बारिश आयेगी तो मैं अन्दर खड़ा रहूंगा। घर के अन्दर जाकर या महल के अन्दर जाकर एक टांग पर खड़ा हो जाऊंगा। चाहे बारिश आये, तूफान आये कुछ भी हो मच्छर काटे या कुछ भी हो लेकिन मैं अपनी दृढ़ता से हिलने वाला नहीं हूँ इसको कहते हैं तपस्या। तो तपस्या कभी भी सहूलियत के आधार पर नहीं होती है। जहाँ हमने अपने लिए सहूलियत बनाना शुरू किया कि ये होगा तो करेंगे, ऐसा होगा तो करेंगे ये करेंगे इस तरह से अगर हमने अपनी तपस्या को शुरू किया तो तपस्या कभी होगी ही नहीं। और दृढ़ता सम्पन्न अभ्यास नहीं तो प्राप्तिनहीं है। तो इसलिए बाबा से साकश लेना माना उस सर्वशक्तिमान की शक्ति जब हम प्राप्त करते हैं तो अपने संकल्पों को हम मजबूत करते हैं, पॉवरफुल बनाते हैं। क्योंकि संकल्पों से ही सिद्धि मिलती है। तो संकल्पों को पॉवरफुल बनाना बहुत ज़रूरी है। संकल्पों में दृढ़ता भरना बहुत ज़रूरी है क्योंकि हमारी तभी रियल तपस्या शुरू होगी। अगर संकल्पों में पॉवर नहीं है तो तपस्या कभी हो नहीं सकती। और उस तपस्या का अनुभव नहीं हो सकता। तो ये तीसरी बात हुई। चौथी बात बाबा कहते हैं कि बाबा से साकाश लेना माना कल्प वृक्ष के तने में बैठ जाना। तने में बैठना माना बीज के साथ हमारा कनेक् शन। जिस तरह से एक बीज ये सारे वृक्ष के पत्ते पत्ते को क्या मिलता है खुराक मिलता है। बीज क्या करता है, ज़मीन से वो खुराक लेकर पत्ते पत्ते तक पहुंचाता है। हरेक पत्ते को नरिशमेंट मिलती है। माउण्ट में बारिश के दिनों में जाते हैं तो बादल आते हैं और जाते हैं पत्ते बादल से भी कुछ लेते हैं, ऊपर से भी ले रहे हैं और नीचे से भी ले रहे हैं। तो इसी तरह तने में बैठना इसीलिए बाबा ने कल्प वृक्ष के तने में बैठाया ब्राह्मणों को। और एक ब्रह्मा ऊपर में खड़ा है। तो बाबा से डायरेक्ट कनेक् शन तो बाबा से सकाश लेकर वो पत्तों को परवरिश भी दे रहा है और नीचे से बीज से साकाश लेकर हम बच्चों की पालना कर रहा है। अभी भी सूक्ष्म पालना हमारी कौन कर रहा है? वो ब्रह्मा माँ कर रही है। इसीलिए बाबा ने कहा कि वो बाप भी है तो माँ भी है। तो उस माँ के द्वारा पोषण भी अभी तक प्राप्त हो रहा है। ये पोषण मिलना यही साकाश है। तो एक तो योग लगाकर शिवबाबा से डायरेक्ट हम ले रहे हैं। दूसरा ब्राह्मण होने के नाते ब्रह्मा माँ से परवरिश ले रहे हैं। तो दोनों तरफ साकाश प्राप्त हो रही है।प् शक्ति प्राप्त हो रही है। जिस शक्ति से ही हम दूसरी आत्माओं को भी सहयोग दे सकेंगे ये शक्ति क्या काम करेगी। जो पालना और परवरिश हमें प्राप्त हो रही है बाबा कहें अन्तिम समय अनेक आत्मायें आपके सामने आयेंगी कि हमें कुछ अंचलि दे दो, थोड़ी सी शांति दे दो। थोड़ा-सा हमें प्यार दे दो। थोड़ा सा हमे शक्ति दे दो। उनके अन्दर उमंग उत्साह भरना, उनको शांति का दान देना ये हमारा कत्र्तव्य है। तो तने के साथ जितना हमारा कनेक् शन होगा और ऊपर से तो दोनों तरफ से हमें साकाश प्राप्त हो जाती है। और उस साकाश से इतनी शक्ति भरेंगे तो उस समय जो आयेंगे हम आत्मिक स्थिति में होंगे और वो आत्मा वो चीज़ ले जायेगी। हमारे से। जो उनको चाहिए। उनको शांति चाहिए वो शांति ले जायेंगी, उनको खुशी चाहिए खुशी ले जायेंगी। उनको प्यार की अनुभूति करनी है तो परमात्म प्यार का अनुभव करके जायें। जो चाहिए उसको हमारे द्वारा प्राप्त होगा। और तब हम निमित्त बनकर बाबा हमसे दिलायेगा। मैं दे रही हूँ ये भान नहीं आयेगा। क्योंकि हमें पता भी नहीं चलेगा कि वो बाबा ने उसको क्या दिया और वो क्या लेकर गया। ये भी पता नहीं चलेगा। क्योंकि देने वाला करनकरावनहार बाबा करायेगा आपसे। इसलिए जितना भरपूर हम अपने आपको करेंगे उतना ही हम उस समय में ये रोल प्ले कर सकेंगे। ये रोल प्ले कर सकेंगे कि हम निमित्त बनकर खड़े होंगे, आत्मिक भाव, आत्मिक स्थिति में खड़े होंगे। और वो आत्माओं को उसी समय अन्दर में जैसे इतनी राहत का अनुभव होगा इतनी सन्तुष्टता प्राप्त होगी, वो कहेंगे कि आपके पास सिर्फ खड़े होने से भी जैसे कुछ मिल रहा है ये फीलिंग आयेगी। जैसे अभी कभी कभी हम जाते हैं कहीं किसी ने शरीर छोड़ा होता है और वहाँ का माहौल ये होता है, जैसे वहाँ जाकर बैठते हैं तो पूरी सभा में क्या होता है शांति हो जाती है। वो भी कहते हैं कल फिर आना आप, वो कहते हैं कि आप आते हैं ना तो अच्छा लगा हमें। तो थोड़ी सी अंचलि मिली ना अभी तो। तो वो बाबा ने अनुभव कराया है कि आपका वहाँ जाना और उनका रोना-धोना बंद हो जाना और उनको जैसे शांति का अनुभव होता है कि वो जैसे उठकर बाहर आने का प्रयत्न करते हैं और उस समय क्या कहते हैं कि कल फिर से आप आना। आप आते हैं तो अच्छा लगता है। आपका यहाँ बैठना ही जैसे ही हमें कुछ मिल रहा है। तो ये अनुभव कराने वाला कौन है? बाबा ने हमें निमित्त बनाकर वहाँ पहुंचाया, बिठाया और उनको क्या दिला दिया बाबा ने वो मालूम नहीं। उनको खुद नहीं मालूम। बस कहते हैं कि अच्छा लगा आप आये। हमको बहुत अच्छा लगा कल फिर आना। और इस तरह से बारह दिन तक बुलाते हैं कि आप रोज़ आना। लेकिन अच्छा लगा माना उनका दु:ख उतने समय के लिए दूर कर दिया माना। बाबा दिला रहा है हमारे से। हम वहाँ क्या करते हैं हम बस आत्मिक स्थिति में बैठकर बाबा को याद करते हैं। यही काम किया हमने तो कुछ किया नहीं। लेकिन उनको तो बाबा ने क्या दिलाया हमें पता ही नहीं। तो इसी तरह बाबा कहे अन्तिम समय ऐसी ऐसी आत्मायें आयेंगी जो क्या बाबा उनको दिला देगा आपके द्वारा आपको भी पता नहीं चलेगा। पहले अगर हम अन्दर से भरपूर होंगे तभी तो हम दे पायेंगे। तब तो बाबा हमारे द्वारा दिलायेगा। और कभी कभी एक हाथ में हाथ दे दिया और उनकी पीठ पर घुमा दिया और उनको जैसे बहुत अन्दर में शक्ति मिल जाती है ये भी महसूस किया है ना। हम सबको बाबा ने अनुभव कराया है। तो इसीलिए बाबा से जब साकाश लेकर अपने आप को भरपूर करेंगे तब ऐसे दे सकेंगे तो तने के साथ झाड़ को हमेशा याद रखो। मैं तने में हूँ ब्रह्मा माँ से वो पोषण ले रही हूँ और शिव बाप से शक्ति ले रही हूँ। पोषण ब्रह्मा माँ से मिल रहा है और शक्ति शिव बाबा से प्राप्त हो रही है। दोनों तरफ से हमारी परवरिश हो रही है। तो झाड़ के चित्र को हमेशा याद रखो। स्मृति में रखो तो जिस तरह ब्रह्मा बाबा ऊपर खड़े हैं मैं भी ऐसे बाबा के पास खड़ी हूँ। ये देखो। और नीचे जहाँ बाबा मम्मा बैठे हैं वहाँ मैं भी बीच में बैठी हूँ। मैं दोनों से पालना ले रही हूँ। पोषण ले रही हूँ, परवरिश ले रही हूँ और अपने आपको भरपूर कर रही हूँ। ये भी साकाश है। फिर पाँचवी बात साकाश लेना माना जो बाबा कभी कभी कहता है टॉवर बन जाओ। शांति के टॉवर बन जाओ। तो शांति स्तम्भ को हमेशा बाबा ने ये जब कहा था मुरली के अन्दर बच्चे चार धाम की यात्रा अमृतवेले करो। जहाँ भी आप अपने स्थान पर हैं लेकिन बुद्धि से तो आप चार धाम कर सकते हैं ना। मधुबन में रोज़ चक्कर लगाकर चार धाम की यात्रा करते हैं ना। कि नहीं करते। कि कभी कभी याद आ जाती है कि चार धाम का चक्कर लगाना है। क्या करते हैं? कभी-कभी नहीं अभी रोज़ करना। और रोज़ शांति स्तम्भ पर ज़रूर जाना। बाबा शांति का टॉवर है, पवित्रता का टॉवर है। शक्ति का टॉवर है ज्ञान काटॉवर है। ऐसे मुझे भी शांति का टॉवर है, पवित्रता का टॉवर है। शक्ति का टॉवर है ज्ञान का टॉवर बनना है। यानी उसकी हाइएस्ट स्टेज में अपने आप को स्थित करना है। टॉवर माना सबसे ऊंचा। तो उसकी हाइएस्ट स्टेज में अपने आपको स्थित करना है। जब शांति का टॉवर बन जाती हूँ तो उस समय मन की स्थिति इतनी शांंति की हो जैसे शांति के प्रकम्पन्न दूर दूर पहुंच रहे हैं, जा रहे हैं। जैसे ये मोबाइल का टॉवर होता है ना वो कितना भी जंगल में हो तो भी दूर-दूर तक सिग्नल पहुंचाता है ना! ठीक इसी तरह बाबा भी कहते हैं कि टॉवर बन जाओ तब कहाँ भी होंगे तो बाबा की सिग्नल को कैच करेंगे। इसीलिए बाबा कहे कि जब बुद्धि की लाइन क्लीयर होगी तो बाबा से टचिंग पॉवर, कैचिंग पॉवर आपका बहुत स्पष्ट हो जायेगा। समय आने पर क्योंकि जैसे जैसे अन्तिम समय आयेगा तो इस तरह का माहौल बनेगा, ऐसी ऐसी परिस्थितियां आयेंगी अगर मेरी बुद्धि की लाइन क्लीयर नहीं है तो हम उस परिस्थिति में फंस सकते हैं। लेकिन अगर मैं टॉवर हूँ तो नीचे जंगल कितना भी हो लेकिन टॉवर ऊपर है तो ऊपर से क्या है सिग् नल सहज कैच कर सकता है। तो सिग्नल कैच किया तो बहुत क्लीयर टचिंग आयेगी कि इस हालात में मुझे क्या करना है। कभी कभी बाबा टचिंग देगा कि बच्चे ये रास्ते पर नहीं जाना है ये रास्ते पर जाना है, महसूस कराया है हमें, अनुभव कराया है हमें, ऐसा लगा है कि बाबा की टचिंग प्राप्त हुई और हमने नहीं तो हम उस रास्ते पर जाने वाले थे और इस रास्ते पर आये। यहाँ आये तो सेफ हो गये। वहाँ पता चला कि कितना वहाँ छोटी। इसीलिए जब टॉवर बनकर हम बैठ जाते हैं कि मैं टॉवर हूँ माना इतनी ऊंचाई की स्थिति पर हूँ तो बाबा से जो शक्ति प्राप्त होती है उससे हमारी बुद्धि रिफाइन हो जाती है और हमारी कैचिंग पॉवर और टचिंग पॉवर हमारी तिक्षण हो जाती है। बहुत स्पष्ट हो जाती है। तो इसीलिए सिर्फ ग्राउंड लेवल पर नहीं रहना है लेकिन अपनी स्थिति को ऐसे टॉवर बना देना है। टॉवर से बाबा से लेते जाओ। लेते जाओ। और हर बात में बाबा अन्तिम अभ्यास इतना काम आयेगा क्योंकि समय में ही हमें बाबा की टचिंग्स बहुत ज़रूरी है। नहीं तो फंसना आसान है। इसीलिए बाबा की टचिंग मिलेगी और हमारी कैचिंग पॉवर स्पष्ट होगी। हमारा रिसीवर क्लीयर होगा तो बाबा की हर टचिंग को कैच करना इतना आसान हो जायेगा और सरलता से हम अपने आप को उस अनुसार ढाल कर दूसरों को सेफ्टी में ले जाने के निमित्त बनेंगे जो दूसरे भी कहेंगे कि ऐसा लगा फरिश्ते के रूप में आये और हमें इस परिस्थिति से बाहर निकाल दिया। इसीलिए बाबा से हमारी बुद्धि की लाइन इतनी क्लीयर चाहिए। तो रोज़ अमृतवेले टॉवर ऑफ पीस के पास खड़े हो जाओ। और ये चारों टॉवर अपने अन्दर भर के अपने आप को भरपूर कर लो। जैसे सुबह-सुबह हमारा कनेक्शन टॉवर के साथ हो गया तो दिनभर में भी टॉवर हमारे साथ में जुड़ा रहेगा। उस टॉवर से हमारा कनेक्शन टूट नहीं सकता है। तो इसीलिए बाबा से शक्ति लेने का, सकाश लेने के ये पाँच तरीके हैं।

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