अच्छा सोचने के लिए माइंड में अच्छा भरना भी तो होगा…

0
142

मैं आपको एक बात बताती हूँ कि आप सुबह-सुबह टीवी पर टीवी न्यूज़ चैनल न देखा करें, ये सबसे बड़ा इमोशनल टॉर्चर है स्वयं के साथ।

गुस्सा हमारा स्वभाव नहीं है, गुस्सा करके हमें कभी भी अच्छा नहीं लगता। लेकिन हमने सोचा गुस्सा करके काम हो जाएगा तो खुशी मिलेगी। हमने सोचा खुशी हमें बाहर से मिलने वाली है। कुछ करेंगे तब खुशी मिलेगी। परमात्मा ने सिखाया- खुश हैं और खुश रहकर कार्य करें, तब हमें खुशी मिलेगी। ये नहीं कि ये करेंगे तो शांति मिलेगी, वो करेंगे तो खुशी मिलेगी और वो करने के लिए हम गुस्सा कर रहे थे। हम जितना गुस्सा करते जा रहे थे, हमारी खुशी दिन-प्रतिदिन कम होती जा रही थी। आप कल्पना करें कि एक गिलास है जो भरा हुआ है। अब सारा दिन जीवन में चलना है, परिस्थितियों को क्रॉस करना है, सिर्फ ध्यान ये रखना है कि उसमें से थोड़ा-सा भी बाहर छलकना नहीं चाहिए। जैसा वो भरा हुआ है सुबह, वैसा ही भरा हुआ रात को होना चाहिए। जब सुबह उठते हैं तो हमारा मन एकदम तरोताजा होता है। लेकिन जैसे ही गुस्सा करना शुरू किया, दु:खी होना शुरू हुए, चिड़चिड़ा होना शुरू हुए, ये भरा हुआ गिलास धीरे-धीरे खाली होना शुरू हो जाता है। हमने सोचा था कि हम कुछ करेंगे तो गिलास भरेंगे। जबकि सीक्रेट ये था कि वह तो पहले से ही भरा हुआ था। सब कुछ करते हुए सिर्फ ध्यान ये रखना है कि गिलास में से कुछ बाहर निकले नहीं। इसका मतलब है कि हमें काम करना और करवाना है। सिर्फ गुस्सा करना अलॉउड नहीं है, अगर खुशी चाहिए तो। अगर सिर्फ मुनाफा ही चाहिए तो ज़रूर गुस्सा करना अलॉउड है। किसी ने कहा कि हम माफ क्यों करें? किसी ने हमें धोखा दिया, किसी ने हमें दु:खी किया, हमने उसे पकड़कर रखा है। अब जितनी देर तक बात को पकड़कर रखेंगे तो उससे दर्द उनको होगा कि हमें होगा? आप मुझे कुछ कहें और मैं उस बात को पकड़कर रखूं तो इससे दर्द आपको होगा या जो पकड़े हुए है उसको होगा? बात को छोडऩे में कितना समय लगता है, छोड़ क्यों नहीं रहे हैं? क्योंकि हमने कहा उनकी गलती इतनी बड़ी थी कि माफ करना ही नहीं चाहिए। हमने सोचा था कि माफ उनको करना है। माफ उनको नहीं करना है, उनको थोड़े ही दर्द हो रहा है, उनको थोड़े ही चोट लग रही है। चोट तो मैं मार रही हूँ अपने आपको। अगर मैं मारना बंद करती हूँ तो माफ अपने आपको करती हूँ। उनको माफ करना मुश्किल है लेकिन खुद को माफ करना आसान है। उन्होंने जो किया सो किया, उनके पास इसके कुछ कारण थे। अब मैं उस बात को मन में रिपीट नहीं करूंगी, फुलस्टॉप। जब परमात्मा का ज्ञान रोज़ अंदर टप-टप पड़ता है तो सोचने का ढंग बदल जाता है। मैं आपको एक बात बताती हूँ कि आप सुबह-सुबह टीवी पर टीवी न्यूज़ चैनल न देखा करें, ये सबसे बड़ा इमोशनल टॉर्चर है स्वयं के साथ। क्योंकि उसकी इंफॉर्मेशन की क्वालिटी कैसी होती है? सुबह-सुबह हमारा माइंड एकदम क्लीन होता है और उस समय जो आप भरेंगे, उसका प्रभाव आपके सारे दिन पर पड़ेगा। क्योंकि वो इंफॉर्मेशन आत्मा का भोजन है और फिर उसी क्वालिटी की सोच सारे दिन चलती है। अगर अच्छा सोचना चाहते हैं तो माइंड में अच्छा भरना पड़ेगा। लेकिन अगर हम सुबह-सुबह यही भर देंगे यहाँ ये हुआ, वहाँ कोई एक्सीडेंट हो गया, किसी का कुछ हो गया, तो हमारे सोचने की क्वालिटी कैसी हो जाएगी? आज ब्रह्माकुमारीज़ में आपकी तरह 9-10 लाख परिवार हैं। हम सब की तरह घर-परिवार में रहते हैं, परिवार को संभालते हैं, अपना जॉब, बिजनेस सब कुछ संभालते हैं। जो चुनौतियां, परिस्थितियां आपके सामने आती हैं, हमारे सामने भी आती हैं। हमने अपनी जीवनशैली में सिर्फ एक परिवर्तन किया है, हमने सुबह-सुबह अपने लिए एक घंटा निकाल लिया है। और उस एक घंटे में हम सुबह-सुबह सेंटर पर जाकर परमात्मा का ज्ञान भरते हैं अपने अंदर और मेडिटेशन करते हैं। बाकी तेईस घंटे बिल्कुल उसी तरह। लेकिन वो एक घंटा अपने में कुछ अच्छा भरने से सबकुछ बदल जाता है।

कोई जवाब दें

कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें!
कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें