हम स्वराज्य अधिकारी हैं तो यह देह अपनी तरफ आकर्षित नहीं करेगी

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अगर बाबा हमारे मन में सदा याद रहे, दिल में समाया हुआ रहे तो हम भी बाबा की याद में बाबा के समान बन जायेंगे। बस, बाबा की याद भूलें नहीं क्योंकि हमारा कहना है कि बाबा और हम कम्बाइंड हैं। बापदादा हमारे साथ कम्बाइंड है तो अलग कैसे हो सकता है और बाबा याद है, तो ऑटोमेटिकली हमें बाबा समान अशरीरी बनने की स्मृति आती है। जितना बाबा से जिगरी दिल का प्यार होगा उतना बाबा नहीं भूलेगा। जब बाबा की याद होगी तो आत्मिक स्वरूप की स्मृति भी ज़रूर होगी और आत्मिक स्वरूप की स्मृति है तो अशरीरी स्थिति की भी अनुभूति ज़रूरी है। तो सारे दिन में हम जब अशरीरी बनने चाहें तब बन सकते हैं? मन, बुद्धि, संस्कार यह तीनों ही आत्मा की सूक्ष्म शक्तियां हैं लेकिन हैं मेरी, मैं इसका मालिक हूँ। तो सारे दिन में बीच-बीच में चेक करना चाहिए कि सचमुच मैं मालिक होकर मन, बुद्धि, संस्कार को चलाने वाली हूँ, इस स्थिति में स्थित रहती हूँ? ऐसे ही मैं आत्मा हूँ, मैं आत्मा हूँ, यह भी मंत्र मुआफिक नहीं जपो, इसका मनन करो। हम सिर्फ कर्मकर्ता नहीं हैं, कर्मयोगी हैं। कर्म और योग हमारा साथ-साथ है। कर्मयोगी माना आत्मा करावनहार हो करके कर्मेन्द्रियों से कर्म करा रही है। तो अगर हम यह मालिकपन की स्मृति रखते हैं कि मैं आत्मा मालिक हूँ, मालिक होकर कोई भी कर्म करते हैं तो हमारे में कन्ट्रोलिंग पॉवर आती है। मैं आत्मा हूँ लेकिन कराने वाली हूँ कर्म कर्ता हूँ, इस स्मृति की आदत अगर होगी तो जब चाहे अशरीरी होना इज़ी लगेगा क्योंकि राजा माना कन्ट्रोलिंग पॉवर और रूलिंग पॉवर। जैसे ऑर्डर से चलावे, अगर हमारी स्मृति में रहेगा कि हम स्वराज्य अधिकारी हैं तो यह देह अपनी तरफ आकर्षित नहीं करेगी। अशरीरी माना शरीर भूल जावे नहीं लेकिन शरीर का मालिक होके शरीर से कर्म करायें। इसके लिए सारे दिन में बीच-बीच में समय निकाल करके अपने आपको चेक करते ड्रिल करते जाओ, तो चेक और चेंज का लिंक जुटा रहने से आपकी भी लगातार कर्मयोगी की नेचर बन जायेगी। कोई भी बात अगर बार-बार की जाती है तो उसके लिए कहते हैं कि यह क्या बड़ी बात है! ऐसे ही अगर हम बार-बार चेक करके उस कमी की जगह बाबा की शक्ति और याद से चेंज करते रहेंगे तो फिर कभी नहीं कहेंगे कि मुझे तो याद भूल जाती है, मेरा तो योग ही नहीं लगता, अशरीरी नहीं हो पाते हैं। परन्तु इसी बात को माया बार-बार भूलवाके भूलें कराती रहती है। यह बात सुनें नहीं सुनें, यह करें या नहीं करें, वो तो हमारे हाथ में है। बहुतकाल के संस्कार बाधा डालते रहते हैं, जिसके कारण निरंतर योग में अन्तर आ जाता है। और जब तक निरंतर अभ्यास नहीं करेंगे तब तक आप जिस समय चाहें एक सेकण्ड में अशरीरी बन जायें, वो नहीं हो सकेगा। अच्छा या बुरा संकल्प चलाने की आदत होगी तो आप अशरीरी बनने की कोशिश करेंगे, वो संकल्प की आदत आपको संकल्प में ले आयेगी, इसीलिए बाबा समय प्रमाण यह डायरेक्शन बार-बार दे रहा है कि जिस समय फिक्स करते हो, उतना समय उस कार्य को पूरा एक्यूरेट करो। जिस समय जो काम कर रहे हो, उस समय वही फुल अटेन्शन हो। यानी जिस समय जो काम कर रहे हैं्र, उसी में ही बुद्धि हो। योग और कर्म दोनों का बैलेन्स रखो। कई कहते हैं कर्म करते कर्म में अटेन्शन चला जाता है तो कर्म थोड़ा नीचे ऊपर हो जाता है। अगर काम करते हुए हम परमात्मा को याद करेंगे तो परमात्मा द्वारा हमको शक्ति मिलेगी। उस परमात्म शक्ति के आधार से आत्मा को याद तो आयेगी ही। तो आपसोचो हमारा काम अच्छा होगा या बुरा? कई कहते कामकाज करते दिमाग चलाते तो याद भूल जाती है लेकिन परमात्म याद से और अपने को राजा समझके कर्मेन्द्रियों से काम कराने से काम अच्छा हो जायेगी, कोई नुकसान नहीं होगा। बाबा की शक्ति मिलेगी। तो अशरीरी बनने के लिए कोई भी चीज़, शरीर की या बाहर की कोई भी हद की विनाशी चीज़ हमारे मन को अपने तरफ खींचे नहीं। समझो मक्खी आई या कोई भी बात आईलेकिन हमारे मन बुद्धि को वह बात खींचे नहीं। अच्छा मक् खी आयी मैंने हटाया, हमारा मन क्यों हटे? मन हमारा मनमनाभव। मन अगर बातों की आकर्षण में आ जाता है तो कहते हैं यह कर्मयोग नहीं है, अशरीरी बनो। अशरीरी माना शरीर भूल जाए, इसका मतलब यह नहीं है। शरीर भान अपनी तरफ खींचे नहीं। बाबा से मन निकल करके व्यर्थ संकल्पों में अटक जाये, यह रॉन्ग है। काम करते हुए मैं बाबा की हूँ, बाबा मेरा है, इस खुशी के अनुभव में रहें। कौन है और कौन मिला है? क्या दिया है? उससे हम क्या बनें हैं? तो अशरीरी अवस्था का अनुभव करने के लिए पहले यह सब चेकिंग करो। किसी भी प्रकार से व्यर्थ की आदत चंचल बना देती है इसलिए व्यर्थ को जब तक समर्थ संकल्प नहीं दिया है यानी जगह नहीं भरा है, तो मन कभी भी अचल नहीं होगा। बाबा कहते हैं मुरली है शुभ संकल्पों का खज़ाना। अगर व्यर्थ चलता है तो कम से कम पूरी मुरली नहीं तो धारणा का सार, वरदान और स्लोगन ही पढ़ लो यानी बाबा की मीठी-मीठी बातों को याद करो, ऐसी-ऐसी विधियां अपनाओ तभी अशरीरी बन सकेंगे। लास्ट घड़ी हमारे को पास विद ऑनर का सर्टीफिकेट मिलना है अभी तो कभी कैसे, कभी कैसे चल रहे हैं, यह तो बाबा जाने और हम जानें। लेकिन लास्ट घड़ी जो आनी है, उसमें अचानक चारों तरफ कुछ न कुछ होता रहेगा। अन्त के समय हर चीज़ अति में जानी है। तो ऐसे टाइम पर आपको एक सेकण्ड अशरीरी बनने में लगे। और अगर हमारा चारों तरफ में से किसी तरफ अटेंशन चला गया तो पास विद ऑनर हो गया, फिर वो थोड़ी सेकण्ड आयेगा इसीलिए राजा(मालिक) बन करके शरीर को, मन को चलाओ। तो हमारी एम यही हो कि पास विद ऑनर होना है और माला का मणका बनना ही है। तो इतना निश्चयबुद्धि और नशे में रहेंगे, अभ्यास करते रहेंगे तो अवश्यय होंगे। जो कल्प बीत गया, उसमें मैं ही विजयी था, मैं ही हूँ और मैं ही हर कल्प में बनूँगा।, ऐसा नशा होना चाहिए, और कौन बनेगा, हम ही तो बनेंगे। तो इस नशे और निश्चय से पुरूषार्थ हो तो हमारा संकल्प बाबा पूरा नहीं करे, यह हो ही नहीं सकता। अहंकार से नहीं, रूहानी नशे से अगर हम इस निश्चय में चलते हैं तो भगवान को हमें आगे रखना ही पड़ेगा। यह अभिमान नहीं लेकिन प्रैक्टिकल रूहानी निश्चय का रूहानी नशा होना चाहिए। दिल की मुस्कुराहट चेहरे पर आपेही आती है और वह हर्षितमुख चेहरा हमेशा सेवा का साधन बनता है। प्राप्ति वाली शक्ल कैसी होगी, खुशी हमारे जीवन की मिलकियत है इसलिए इसे कभी गँवाना नहीं चाहिए। कोई तो बीती हुई बातों को रिपीट करने से परेशान होते रहते हैं, खुशी गुम हो जाती है और खुशी गंवाना माना हेल्थ, वेल्थ, हैप् पी तीनों गँवाना। खुशी जैसी खुराक नहीं है। खुश रहो और खुशी बाँटों, जितनी बाँटेंगे उतनी बढ़ेंगी। अशरीरीबनने के लिए मन को बिजी रखने का ख्याल ज़रूर रखना क्योंकि मन ही धेखा देता है और दूसरा भी शक्ल ऊपर नीचे नहीं हो। कुछ भी हो जाये चिंता करने से कुछ मिलने वाला नहीं है। सोचने से कुछ बन जायेंगे क्या! जो बीत चुका उससे क्या बनेगा? चिंता मिलेगी बस और कुछ नहीं मिलेगा। तो यहाँ मधुबन से दृढ़ संकल्प करके जाओ, मुझे अपना चेहरा रूहे गुलाब जैसा रखना है।

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