निश्चिंत और सहज होने का दौर है ये

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हम जब कोई कार्य करते हैं या करने जाते हैं तो हमेशा उस काम की पूर्व की घटना या उसके सफल-असफल होने का कोई एक भाव लेकर उसी आधार से कार्य को अंजाम देते हैं, एक मुकाम देते हैं। लेकिन आप इसमें देखो सहजता नहीं है। और जब एक उम्मीद, एक आशा के साथ आप किसी के यहाँ जाते हैं और उस आशा और उम्मीद के आधार पर आपकी भरपाई नहीं हुई अर्थात् जो आपको चाहिए, जैसा आपको चाहिए, जिस हिसाब का चाहिए अगर वो आपको नहीं मिला तो आपके अन्दर क्या ख्याल आता है? एकदम जो हमने इमेज बनाई थी, जो हमने पहले से ही उसका अपने अन्दर रूप बनाया था, भाव बनाया था कि ऐसा होगा, ऐसा होगा लेकिन वहाँ ऐसा नहीं हुआ तो हमारे अन्दर दूसरी तरह के विचार आ गये, तनाव में हम आ गये, भारी हो गये, अच्छा नहीं लगा। तो इस तरह से परमात्मा हम सबको रोज़ शिक्षा दे रहे हैं और देते रहते हैं कि आप सभी हर कार्य को मेहनत से करते हो। मेहनत से कार्य करना अर्थात् कोई न कोई इसकी रिज़ल्ट हमको चाहिए। अगर उसको हम सरल, सहज और मोहब्बत के भाव से, अपनेपन के भाव से करें और सिर्फ करें तो एक निश्चिंतता हम सबके स्वभाव में आ जायेगी। पहले से पूर्वाग्रह वाली स्थिति जिसको कहते हैं उस बात के लिए अपने अन्दर बहुत सारे विज़न बना लेना, बहुत सारे दृष्टिकोण बना लेना कि ऐसा करते तो ऐसा हो जाता, वहाँ पर ये चीज़ फलीभूत नहीं होती। हमारा ये निजी अनुभव है कि जब कभी भी किसी चीज़ को अगर मुझे बताना है या कुछ भी हमें किसी के सामने रखना है तो उसके लिए जब हम तैयारी करते हैं, एक है तैयारी कि मुझे इनको बताना है। दूसरी तैयारी ये है कि मुझे सहज भाव रखके इज़ी जो अपने अन्दर से भाव निकलते हैं, अपने निजी अनुभव जो निकलते हैं उस आधार से सबको देना। तो जब मैं इस तरह से बात कहता हूँ, इस तरह से बात बोलता हूँ तो लोगों को एक तरह का अनुभव होना स्टार्ट हो जाता है। उनको अच्छा फील होता है। लोगों को लगता है नहीं सच में इन्होंने अनुभव किया है। लेकिन अगर मैंने उन्हों को रटा-रटाया बता दिया, कुछ भी ऐसा बता दिया तो हमारे वायब्रेशन्स में से उसकी सेवा नहीं होगी। हमारे अन्दर का भाव उसको मिलेगा नहीं जैसा उसको चाहिए। तो आप इस बात से क्या सीखते हैं, या हम सभी इस बात से क्या सीख ले सकते हैं कि हम सभी जब हरेक कार्य को पहले से ही प्लैन करते हैं। लेकिन कॉन्शियसनेस के साथ करते हैं। एक चेतना को अन्दर लाकर करते हैं और उसके कारण वो कार्य सफल या असफल हुआ तो हमारे भाव में क्या आता है? एकदम मन बदल जाता है कि अब मैं ना यहाँ इस तरह से नहीं आऊंगा या नहीं आऊंगी। नाउम्मीद हो गया। जो चाहिए था वो नहीं मिला। इसीलिए हम सभी का ज्ञानी जीवन, योगी जीवन परमात्मा के साथ का जीवन न भी हो, कोई लौकिक दुनिया वाला भी जीवन है किसी का, तो भी जो चीज़ जैसी हो उसको वैसी ही स्वीकार कर लेने से मैं सहज होता चला जाऊंगा। जैसे मैं यहाँ से जाऊंगा तो जैसा होगा, जो होगा, जितना होगा, जिस तरह का होगा उसको मैं स्वीकार करता चला जाऊंगा। और इस स्वीकार करने से मैं अपने अनुभव को शक्तिशाली भी बनाता जा रहा हूँ। तो जीवन इस तरह से जीने से हम सबको बहुत आराम मिलेगा और बहुत अच्छी स्थिति भी बनेगी।

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