मुख पृष्ठदादी जीदादी प्रकाशमणि जीस्व स्थिति को महान बनाने का साधन... ज्ञान और योग

स्व स्थिति को महान बनाने का साधन… ज्ञान और योग

स्व स्थिति को महान बनाने का साधन है ज्ञान और योग। वह एक्यूरेट रखो तो दैवीगुण ऑटोमेटिक आ जायेंगे। सेवा की सब्जेक्ट भी कवर हो जायेगी क्योंकि मैंने ज्ञान से ही समझा ना कि हम सो देवता है, देवतापन का ज्ञान मिला तो दैवीगुण ऑटोमेटिक आ गये। ज्ञान से ही सेवा का उमंग बढ़ा।

एक बाप पर पूरा फेथ हो, आप उनसे फेथफुल अर्थात् ईमानदार रहो। जो र्ईमानदार है नैचुरल उनका रिगार्ड होगा। डिसरिगार्ड तभी होता जब फेथफुल नहीं। जो बाबा ने मुझे आज्ञाएं दी हैं उनको फुल पालन करना है। ऐसे नहीं दस में आठ पालन करूं, दो नहीं। बाबा की आज्ञाओं को सेन्ट परसेन्ट दिल में नोट करो फिर कोई भी सवाल नहीं रहेगा। सदा ओके बन जायेंगे। अगर मेरी स्थिति महान नहीं तो मैंने बाबा का बनकर क्या पाया!
स्व स्थिति को महान बनाने का साधन है ज्ञान और योग। वह एक्यूरेट रखो तो दैवीगुण ऑटोमेटिक आ जायेंगे। सेवा की सब्जेक्ट भी कवर हो जायेगी क्योंकि मैंने ज्ञान से ही समझा ना कि हम सो देवता है, देवतापन का ज्ञान मिला तो दैवीगुण ऑटोमेटिक आ गये। ज्ञान से ही सेवा का उमंग बढ़ा।
दुनिया में ऐसा कोई नहीं जो कहे तुम्हें आजीवन ब्रह्मचर्य पालन करना है। परन्तु बाबा ब्रह्मचर्य में रहने की सख्त श्रीमत देता, इसमें ज़रा भी छूट नहीं। जिस बात के लिए दुनिया एक तरफ, उसी बाप को बाबा बिल्कुल स्ट्रॉन्ग करता। इस बात में रिंचक भी रहमदिल नहीं, इसमें काल होकर रहो। संस्कारों पर धर्मराज होकर रहो। जितना अपने संस्कारों पर धर्मराज बनेंगे उतना धर्म के ऊपर राज्य करेंगे। संस्कारों में ज़रा भी निर्बलता आयेगी तो हीन हो जायेंगे। लौकिक-अलौकिक कार्य में मस्त रहो। मस्तराम बन जाओ तो रावण आपेही पीठ कर लेगा। अगर सोचेंगे क्या करूँ, संस्कार हैं, तो वह कमज़ोर बना देंगे। सोचना भी कमज़ोरी है। आप डोन्टकेयर हो जाओ। आयेंगे चले जायेंगे, हमें बलवान से बलवान बाबा मिला। उसने हमें सब बल दे दिये इसलिए निर्बलता की बातें सोचो ही नहीं। आप समझो हम धर्मराज के समान हैं। हम माया को मार भगाने वाले हैं।
हमें एक ही डर है सतगुरु की श्रीमत के खिलाफ कोई मनमत न हो। जहाँ मनमत आई वहाँ अवज्ञा हुई, श्रीमत को पालन करने के लिए सतगुरु को सदा सामने रखो। श्रीमत मिली है बच्चे अमृतवेले उठना है, अन्न की परहेज रखनी है, संगदोष में नहीं आना है। रोज़ पढ़ाई पढऩी है, यह सब सतगुरु ने श्रीमत दी। एक कहावत है जिनके सिर पर तू स्वामी, सो दु:ख कैसा पावे। तो मुझे न कोई चिंता है, न दु:ख।

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