रक्षाबंधन का शाब्दिक अर्थ है रक्षा करने वाला बंधन, मतलब धागा। इस पर्व पर बहनें भाई की कलाई पर रक्षासूत्र बांधती हैं और बदले में भाई जीवन भर उनकी रक्षा करने का वचन देते हैं। रक्षाबंधन या राखी को सावन महीने में पडऩे की वजह से श्रावणी व सलोनी कहा जाता है। ये सावन मास की पूर्णिमा में पडऩे वाला हिन्दु तथा जैन धर्म का प्रमुख त्योहार है। रक्षाबंधन के इतिहास पर नज़र डालें तो एक बार की बात है कि देवता और असुरों में युद्ध आरंभ हुआ, युद्ध में हार के परिणामस्वरूप देवताओं ने अपना राजपाट सब गंवा दिया। अपना राजपाट पुन: प्राप्त करने की इच्छा से देवराज इन्द्र देवगुरु बृहस्पति से मदद की गुहार करने लगे। तत्पश्चात् देवगुरु बृहस्पति ने श्रावण मास की पूर्णिमा को प्रात: काल में निम्न मंत्र से रक्षा विधान सम्पन्न किया। ‘येन बद्धो बलि राजा, दानवेन्द्रो महाबल: तेन त्वाम् प्रतिबद्धनामि रक्षे मा चल मा चल:।’ इस पूजा से प्राप्त सूत्र को इंद्राणि ने इंद्र के हाथ पर बांध दिया जिससे युद्ध में इंद्र को विजय प्राप्त हुई और उन्हें अपना हारा हुआ राजपाट दुबारा मिल गया। तब से ये रक्षाबंधन का त्योहार मनाया जाने लगा।
पर आज के आधुनिक युग में रक्षाबंधन की विधि का स्वरूप ही बदल गया है। पुराने समय में घर की छोटी बेटी द्वारा पिता को राखी बांधी जाती थी। साथ ही गुरुओं द्वारा अपने यजमान को भी रक्षासूत्र बांधा जाता था। पर अब बहनें ही भाई की कलाई पर यह बांधती हैं। इसके साथ ही समय की व्यस्तता के कारण राखी के पर्व की पूजा पद्धति में भी बदलाव आया है। अब लोग पहले की अपेक्षा इस पर्व में कम सक्रिय नज़र आते हैं। राखी के अवसर पर अब भाई के दूर रहने पर बहनों द्वारा कुरियर के माध्यम से राखी भेज दी जाती है। इसके अतिरिक्त मोबाइल पर ही राखी की शुभकामनाएं भेज दी जाती हैं।
रक्षा का मतलब है, बहन भाई से अपनी सुरक्षा चाहती है। परंतु आज के परिप्रेक्ष्य में हमने देखा कि विपरीत परिस्थितियों में कोई किसी को भी रक्षा प्रदान नहीं कर सकता। ये हम सबने कोरोना काल में देखा। चाहे कितना भी धनवान व्यक्ति क्यों न हो, पैसों का अम्बार होते हुए भी वो असहाय, अपने भी उसकी रक्षा नहीं कर पाये।
जैसे इंद्र ने पुन: अपना राजपाट प्राप्त करने के लिए बृहस्पति ब्रह्मा से गुहार की। यानी कि सामने आने वाली हर कठिनाई व मुश्किलातों में ब्रह्मा से मदद मांगी गई। क्योंकि ब्रह्मा ही सारी सृष्टि का ज्ञाता है। कैसे उससे निजात पाया जाए ये उसमें ही सम्पूर्ण ज्ञान है। इसके आध्यात्मिक रहस्य को जानें तो आज हम स्थूलता से किसी की रक्षा करने में तो असक्षम हैं, किन्तु उसके मानसिक धरातल पर उसे वो ज्ञान व समझ देकर सुशिक्षित कर दिया जाए तो वो अपने आप ही स्वरक्षा कर सकता है। जैसे खेल में प्रशिक्षण पाने के बाद किसी भी तरह की ऑपोज़ीशन के दांव-पेच में खिलाड़ी ज्ञान की क्षमता को यूज़ कर विजयी बन जाता है। तो आज के समय में हम हरेक व्यक्तिगत सुरक्षा तो नहीं दे सकेंगे किन्तु उसे सही ज्ञान व उसकी उपयोगिता की समझ प्रदान कर दें तो वे कैसी भी परिस्थिति में अपने को सुरक्षित रख सकता है। इसी संदर्भ में ब्रह्मा के द्वारा रचे हुए और उसी ज्ञान से श्रृंगारित हुए उनके बच्चे जो कि ब्राह्मण हैं, उन्हीं के द्वारा पवित्रता की सूचक रक्षाबंधन बांधा जाए, यही वास्तव में सच्चा रक्षाबंधन है। देवताओं ने अपनी पवित्रता की ओज को खो दिया, तब वे असुरक्षित होने लगे और समयांतर वे मनुष्य के रूप में दूसरों से रक्षा की कामना करने लगे। अब हम आपको ये बताना चाहते हैं कि इस समय स्वयं परमपिता परमात्मा जो कि पवित्रता के सागर हैं, वे हम सभी को पवित्र भव:, योगी भव: का वरदान देकर हमें सुरक्षा प्रदान करते हैं। और हमें याद दिलाते हैं कि हे भारतवासी, आप ही इतने महान थे, सोलह कला सम्पूर्ण थे, सम्पूर्ण निर्विकारी थे, मर्यादापुरुषोत्तम थे, तब आप सुरक्षित थे। अब पुन: अपने इस स्वमान में स्थित होकर अपनी शक्तियों को पहचानो, स्वयं में व्याप्त बुराइयों को नष्ट करो। और पवित्रता को अपने जीवन में अपनाकर अपने आप में सुख-शांति-समृद्धि व शक्ति से स्वरक्षित हो जाओ। न सिर्फ अपने तक, बल्कि दूसरों को भी इसी राह पर चलकर स्वयं को सुरक्षित रखने की विधि बताओ। रक्षा बंधन, बध्ंान नहीं, लेकिन परमपिता परमात्मा के साथ पवित्र बंधन, पवित्र सम्बंध की यादगार है। पवित्रता की धारणा ही हरेक को सुरक्षा प्रदान करेगी।