हमारी पवित्रता ऐसी हो जो दूसरों में परिवर्तन ला दे

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निजी गुण, कर्म और स्वभाव की समानता के आधार पर महानता

जैसा कि पिछले अंक में आपने पढ़ा कि डॉक्टर भी जब जाँच करता है तो जुबान देखता है, नब्ज देखता है, थर्मामीटर लगाता है, हाथ पर स्टेथोस्कोप लगाके देखता है और ब्लड टेस्ट करता है, फिर टेस्ट करके कहता है कि आपको फलानी बीमारी है। तो हम लोग भी अपनी पवित्रता की और योग की शक्ति को चेक करें उसकी एक परख तो यह होगी कि उसका दूसरों पर प्रभाव पड़ेगा। अब आगे पढ़ते हैं…

बाबा कहते हैं अपने डॉ. स्वयं बनो, चेक करो अपने को, तो क्या चेकिंग करेंगे, कि पवित्रता कहाँ तक है? बहुत दफा बाबा कहते अनटच्चड कुमारी, जिसको किसी पुरूष ने हाथ न लगाया हो। ऐसी निर्मल, स्वच्छ, किसी को उसकी देह के प्रति ऐसा आकर्षण न हुआ हो। इतनी पवित्रता हो कि दूसरे के मन में भी उसको देखकर कोई अपवित्र संकल्प न आये। गन्दे से गन्दा आदमी हो, बिल्कुल संसार में बदनाम आदमी, बिल्कुल ही दु:चरित्र आदमी वह भी अगर सामने आये देखे तो वह भी समझे कि यह देवी है, शक्ति है। उसका भी विचार बदल जाये, ऐसी पवित्रता हमारी हो कि उसकी अपवित्रता को नष्ट कर दे। हमारी शक्ति इतनी तेज हो कि उसको ध्वस्त कर दे। हमारी पवित्रता का ऐसा प्रभाव पड़े कि स्वयं उसमें भी परिवर्तन आ जाये, यह हमारी पवित्रता की स्टेज हो। और योग की शक्ति हमारी ऐसी हो कि उससे उसके मन को भी शांति का अनुभव हो और उसके मन में यह संकल्प आये कि यह तो देवी है, शक्ति है। अगर ऐसा अभ्यास आपका होता जायेगा तो उसको लाइट का साक्षात्कार होगा।
मैं आत्मा लाइट हूँ वह तो ठीक है लेकिन दूसरे को भी यह अनुभव होने लगेगा कि यह लाइट है, इसके आस-पास लाइट दिखाई दे रही है जिसको औरा या प्रभामण्डल कहते हैं, वह दिखाई देगा। योगियों के सिर के पीछे लाइट दिखाते हैं ना, तो ऐसे दूसरे को भी लाइट दिखाई देगी। चेहरे को देखने के बजाय उस लाइट को देखने लगेगा, यह क्या है, चेहरा गुम हो जायेगा और हल्का-हल्का सा झिलमिल-झिलमिल प्रकाश उसे मालूम पड़ेगा।
तो ब्रह्माकुमार व ब्रह्माकुमारी वह जो ब्रह्मा की संतान है। मुखवंशी है। मुख से पैदा हुए हैं, ब्राह्मण के लिए कहा जाता है जो यज्ञ करे और कराये, पढ़े और पढ़ाये। ब्राह्मण वह है जो दान दे और ले और यज्ञ पवीत(जनेऊ) पहने और पहनाये। यह ब्राह्मणों के कर्म प्रसिद्ध हैं। परन्तु यह स्थूल की बात नहीं है, अभी हम तो इसके अर्थ स्वरूप में टिकते हैं। यज्ञ करें और यज्ञ करायें, दान दें और दान लें, पढ़ें और पढ़ायें, क्या पढ़ें और क्या पढ़ायें? यह जो ईश्वरीय पढ़ाई है, ईश्वरीय पढ़ाई रोज़ कायदे से पढ़ें। गॉडली स्टूडेंट लाइफ इज बेस्ट, जिसको बाबा कहते कि किसी भी दिन मुरली मिस न हो। मुरली सुनने के बाद फिर उसका स्वाध्याय करें। स्वयं उसपर मनन-चिंतन करें। दूसरा अगर किसी ब्रह्माकुमारी ने सारे दिन में किसी को भी ज्ञान नहीं दिया यह तो बात बनी नहीं। जैसे कि स्नान ही नहीं किया। कोई स्नान न करे, उसको कैसे लगता है। वस्त्र चेंज न करे और स्नान न करे तब तक भोजन खाने का मन नहीं करेगा। तो स्थूल सेवाओं के साथ-साथ मुरलीधर भी ज़रूर बनो।
बाबा ने जो मुरली सुनाई जब तक वह आप रिपीट नहीं करोगे, तो वह आपकी बुद्धि में धारण नहीं होगी। जैसे दीप से दीप जगना चाहिए वैसे आपने जो सुना है वह सुनाओ, उसको सुनाये बिना रिफ्रेश नहीं होंगे। अगर हमारे मन में यह दृढ़ सकंल्प हो कि हमें किसी न किसी को ज्ञान सुनना ही है, यह ब्राह्मण का कर्तव्य है। बाबा के वचन जो सुने हैं, बाबा ने जो हम पर एहसान किये हैं, जो हमें धन दिया है यह बंटना है, यह केवल अपने तक सीमित नहीं रखना है तो कोई ना कोई साधन मिल जाता है।

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