ईश्वर से करें अपने दिल की बात…

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मैं तुम्हेें मुक्ति का मार्ग दिखाने आया हूँ। मैं तुम्हें सरल राह दिखा रहा हूँ। मैं तुम्हारे लिए प्रकाश लाया हूँ। इस प्रकाश से तुम्हारी राहें स्पष्ट दिखने लगी हैं। बस इन राहों पर चलना तुम्हारा काम है।

भगवान से सर्व नातों का सुख परम सुख है। अलौकिक सुख है। सबकुछ प्रदान करने वाला है। जन्म-जन्म की थकान मिटाने वाला है। सब जानते हैं, जिस तरह से जब एक बाप अपनी लडक़ी का सम्बन्ध किसी बड़े परिवार में कर दे, और खुद साधारण परिवार में है तो उसी दिन से उनको क्या नशा रहने लगता है? वो हज़ार लोगों को बताएंगे कि मेरी लडक़ी फलाने घर में गई है। सुना है वो परिवार का नाम! इतने बड़े परिवार में चली गई है। नातों की खुमारी संसार में भी रही है। वो कहीं-कहीं अहम में बदल गई। लेकिन हमारे नाते तो हमें निरहंकारी और नम्र बनाते हैं। तो हमारा नाता भगवान से जुड़ गया है, वो मेरा हो गया है। और अब वो परम शिक्षक के रूप में हमारे सामने आया है। देखो पढ़ते हुए सब जानते हैं किसी को अच्छा टीचर मिले, अच्छा लेक्चरर मिल जाये, जिसकी पढ़ाई से बच्चे बहुत होशियार हो जायें, रिज़ल्ट बहुत सुन्दर हो जाये। जो कमज़ोर बच्चे हैं वो भी अच्छे अंक लाने लगें। नशा रहता है कि हमारे कॉलेज में फिजि़क्स का लेक्चरर है वो भी एक्सपर्ट। उसकी पढ़ाने की कला बहुत सुन्दर है। हमारे मैथेमेटिक्स का ये प्रोफेसर है। ये बहुत अच्छा पढ़ाता है।
लेकिन हमारी ब्रह्माकुमारी यूनिवर्सिटी में पढ़ाने वाला स्वयं भगवान है। सोचकर देखो, जिसने आदि-मध्य-अन्त का, सृष्टि का सम्पूर्ण ज्ञान दे दिया। ऐसा ज्ञान दे दिया जो बातें शास्त्रों में अनसुलझी थी, अनउत्तरित थी। जिनके बारे में कोई कुछ नहीं जानता था। वो रहस्य हँसते-हँसते एक-एक, दो-दो लाइन में स्पष्ट कर दिए। तो हमें भी ये नशा हो कि मैं गॉडली स्टूडेंट हूँ, मुझे पढ़ाने वाला स्वयं भगवान है। जिसको पढ़ाने वाला भगवान हो उसकी पढ़ाई का स्टेटस कितना हाइएस्ट होगा! पढ़ाने वाला भगवान, तो पढ़ाई से मिलती है स्वर्ग की राजाई। जितना अच्छा पढ़ेंगे उतना ही अच्छा पद भविष्य में मिलेगा। पदों का कितना महत्त्व है आजकल। आईएएस, आईपीएस बनने के लिए स्टूडेंट्स कितनी मेहनत करते हैं, कॉचिंग करते हैं, धन खर्च करते हैं। ये सब तो नौकरियां हैं, अधीनता है। यहाँ मिलती है स्वर्ग की राजाई। विश्व की नहीं, विश्व में भी जो स्वर्ग है उसकी राजाई। तो हमें बहुत खुशी, बहुत नशा रहना चाहिए कि हमें पढ़ाने वाला स्वयं भगवान है। हम उसकी पढ़ाई को बहुत अच्छी तरह पढ़ेंगे। रेगुलर स्टूडेंट बनेंगे, उसके ज्ञान का चिंतन करेंगे। तो हमारा उससे नाता गहन होता जायेगा और उसकी पढ़ाई हमारी बुद्धि को श्रेष्ठ, डिवाइन, और तेजस्वी बनाती जायेगी। मैंने कितने लोगों को देखा है, कुमार-कुमारियों को देखा है, उनकी बुद्धि तेजस्वी हो गई ज्ञान-योग में आते ही। जिन्होंने अपने को उलझाया नहीं वो बहुत महान बन गये। तो सुप्रीम टीचर का नाता उससे हमें जोडऩा है।
तीसरा सबसे इम्र्पोटेंट नाता सद्गुरू का है। वो परम सद्गुरू है, वो अपने शिष्य हमें नहीं बनाता कि तुम मेरे चेले हो, मेरे चरण छू लो, उसको तो चरण है ही नहीं। वो कहता है मैं तुम्हारी गति-सद्गति करने आया हूँ। मैं तुम्हेें मुक्ति का मार्ग दिखाने आया हूँ। मैं तुम्हें सरल राह दिखा रहा हूँ। मैं तुम्हारे लिए प्रकाश लाया हूँ। इस प्रकाश से तुम्हारी राहें स्पष्ट दिखने लगी हैं। बस इन राहों पर चलना तुम्हारा काम है। मंत्र दे दिया- मनमनाभव। ये मंत्र रटने का नहीं है। इसका अर्थ है बुद्धि योग मेरे से लगाओ। हमें उसके स्वरूप का ज्ञान हो गया। वो निराकार ज्योति स्वरूप है। ज्ञान सूर्य है। सर्वशक्तिवान है। उसके स्वरूप से हम बुद्धि लगाते हैं, मन लगाते हैं, हमारी बुद्धि स्वच्छ होने लगती है। बुद्धि को स्थिर करने में शिव बाबा की मदद मिलती है। जैसे दुनिया में बहुत लोग जो सत्संगी होते थे, जिन्होंने गुरू किये होते थे उनको बहुत नशा रहता था। फलाना संत मेरा गुरू है। कभी कई संतों का नाम था भारत में। लेकिन अब तो नहीं है। लेकिन उन्होंने संसार के लिए बहुत अच्छे काम किए हैं। समाज को बहुत सुन्दर व्यवस्था दी,गाइड लाइन दी। लेकिन जब सब खेल बिगड़ गया तो भगवान परमसद्गुरू बनकर आया, तो हमें भी नशा रहे हम उसके फॉलोअर हैं। जो गति-सद्गति दाता है। उसके बन गये, उनसे नाता जोड़ लिया। गति-सद्गति, मुक्ति-जीवनमुक्ति, पर हमारा अधिकार हो गया है। हमें मांगना नहीं है। उन्होंने सरल मार्ग भी दिखा दिया है। तुम योग से अपने सभी विकर्म नष्ट कर दो। मुक्त होकर तुम अपने धाम चले जाओगे। तुम इस पढ़ाई पर ध्यान दो, तुम्हें हाइएस्ट स्टेटस मिल जायेगा।
इस नशे में रहें स्वयं भगवान परम सद्गुरू बनकर हमें राह दिखा रहा है। वो हमारी माँ है, प्यार दे रही है। वो हमारा प्रियतम है, साजन है, श्रृंगार कर रहा है। बस हम उस श्रृंगार को बिगाड़ न दिया करें। बच्चे होते हैं ना, माँ श्रृंगार करके स्कूल में भेजे और बिगाड़ के आते हैं सब। हमें श्रृंगार को कायम रखना है और वो श्रृंगार है- सद्गुणों का, वो श्रृंगार है- प्युरिटी का। वो श्रृंगार कर रहा है हमारा सर्व शक्तियों से, श्रेष्ठ संकल्पों से। ये सबसे बड़े श्रृंगार हैं। भगवान परम सद्गुरू के द्वारा किया गया श्रृंगार जो हमारा प्रियतम है, ये हमारी पर्सनैलिटी को चमका देता है। हमारे जीवन को खुशियों से भर देता है। सुख-शांति तो हमारी नेचर बन जाती है। तो हम सभी अपने सभी नाते एक से जोड़ लें।
हमारे सच्चे दिल से, दिल की गहराई से, ये बात निकला करे कि वो मेरा है। इस मेरेपन में सर्व सम्बन्धों का सार समाया हुआ है। बस इसकी अनुभूति हमें तभी होगी जब हम जो हमारे लौकिक नाते रिश्ते हैं उनमें आत्मिक भाव रखेंगे। उन्हें छोड़ नहीं देना है। उनमें आत्मिक भाव रखेंगे और ये संकल्प करेंगे ये सब भी भगवान के बच्चे हैं, इन सबका नाता भी उससे ही हमें जोडऩा है। उसी के द्वारा ही इन सबका बेड़ा पार होगा। जिसको पूरा परिवार भी फॉलो करे। अपना जीवन ऐसा बना देना है कि पूरा परिवार हमारे जीवन से बहुत कुछ सीखता चले। तो उनका नाता भी एक से जुड़ जायेगा।

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