धरा पर परमात्म शक्तियों का प्रतिबिम्ब – जगदम्बा सरस्वती

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हर घड़ी अंतिम घड़ी को अपना स्लोगन बनाने वाली, एक विचार, एक शक्ति, एक नियम और एक मर्यादा को जीवन का आधार बनाने वाली, पूरे विश्व के धरातल पर एकमात्र महिला शक्ति, आदि शक्ति, आदि देवी, नौ दुर्गा के रूप में अपनी अमिट छाप छोडक़र सपूर्ण महिला शक्ति को एक मशाल देने वाली आदरणीय जगदम्बा सरस्वती पहली आदि देवी जिन्होंने वो किया, जिन्होंने वो समझा, जिन्होंने वो जाना जो हम सब की बुद्धि कई जन्मों तक नहीं समझ सकी। एक क्षण में परमात्मा को पहचानने वाली, ऐसी तीक्ष्ण बुद्धि वाली प्रखर व्यक्तित्व को हम सभी नमन करते हैं।

हम सभी ने समय प्रति समय बहुत सारी ऐसी वीरांगनाओं के बारे में सुना है, पढ़ा है, लेकिन ये एक अद्भुत नारी शक्ति हैं जिनको शास्त्रों में ईव की उपाधि भी दी जाती है, अर्थात् पृथ्वी पर जो प्रथम मनुष्य आदि देव और आदि देवी का उदाहरण देते हैं तो उसमें ईव की बात आती है, तो आदि देवी या ईव जिनसे इस सृष्टि की शुरुआत मानी जाती है और सच में हर कार्य को, हर एक बात को इतना सलीके से, इतनी महीनता से समझकर उसपर कार्य करने का अगर किसी के पास मादा था तो वो जगदम्बा सरस्वती के पास था। प्रजापिता ब्रह्मा, इस सृष्टि के आदि पिता जिनको पहचानना और जिनके तन में आये हुए परमात्मा को पहचानना, ये एक सालिम बुद्धि का ही प्रमाण है। परमात्मा के ज्ञान को उन्हीं की तरह से समझना, उनके हिसाब से समझना, ये मम्मा के व्यक्तित्व की पहली सीढ़ी थी। उन्होंने परमात्मा के ज्ञान को, एक-एक शब्द को इतनी गहराई से समझा, इतनी गहराई से जाना कि उसको जब हम आज सुनते हैं तो लगता है कि सच में अगर कोई सरस्वती है, कोई ज्ञान की देवी है, कोई नौ दुर्गा है, कोई शीतला है, तो वो है आदि देवी, हमारी आदरणीय जगदम्बा सरस्वती।
समस्या ये नहीं है कि इनको पहचाना कैसे जाये, समस्या ये है कि इनको फॉलो कैसे किया जाये! जो इन्होंने परमात्मा के साथ जीवन जिया है उस जीवन को अपने जीवन के साथ समानांतर रूप से कैसे लेकर आगे बढ़ा जाये! क्या ये सम्भव है? बिल्कुल सम्भव है। क्योंकि अगर परमात्मा की श्रीमत को हमने आधार बनाया और सिर्फ और सिर्फ उसी मत पर चले तो निश्चित रूप से हम सभी जो आज नौ दुर्गा की पूजा करते हैं, उनकी जितनी भी शक्तियां हैं वो हमारे अंदर आ जायेंगी। क्योंकि परमात्मा हम सबको रोज़ सिखाते हैं कि तुम साधारण नहीं हो। तुम अलग हो, अलौकिक हो बिल्कुल इस दुनिया की उन बातों से जो लोग आज कर रहे हैं। आप सोचो, अपना एक छोटा-सा कार्य करने के लिए जब लोग बाहर जाते हैं, तो एक देवी का दर्शन करके जाते हैं या एक देवता का दर्शन करके जाते हैं, और जिन नौ देवियों की पूजा की जाती है वो सारे गुण आदरणीय जगदम्बा सरस्वती के अंदर थे। इसीलिए उनका ही उदाहरण आज नौ दुर्गा, नौ देवी या अष्ट शक्तियों के रूप में दिया जाता है। इसका मतलब ये हुआ कि जो आज आप पुस्तकों में पढ़ते हैं, आरतियों में गाते हैं, कीर्तन जिनका करते हैं, जिनकी कीर्ति होती है, उन्हीं की महिमा, उनका महिमा मंडन करते हैं, उनको परमात्मा ने ऐसा बनाया होगा। परमात्मा की शक्ति को उन्होंने पूरी तरह से धारण करके, समाने की शक्ति, सामना करने की शक्ति, सहज तरीके से सबके अंदर डाला और जब इस प्रजापिता ब्रह्माकुमारीज़ ईश्वरीय विश्वविद्यालय का यज्ञ शुरु हुआ, तो उसमें इस ज्ञान को बारीकी से परखने का काम सिर्फ और सिर्फ इन्हीं का था। और इन्हीं को समझ में भी आया। इसीलिए कहा जाता है जदगम्बा सरस्वती ब्रह्मा की मानस पुत्री हैं।
मानस पुत्री का अर्थ ये हुआ कि जो उनकी मानसिकता, वैसी ही इनकी मानसिकता। जो उनकी सोच, वो इनकी सोच, जो उनकी श्रीमत, वो इनकी श्रीमत। तो परमात्मा को पूरी तरह से शिरोधार्य करने वाली और शिरोधार्य करके अपने जीवन के एक-एक पहलू को समझते हुए अपने जीवन में उतारने वाली आदरणीय मम्मा को सभी ने एक तरह से उनके कदम पर कदम रखकर फॉलो किया, समझा, जाना। तो एक देवी को जिस स्वरूप में आप देखना चाहते हैं, आज जितने भी यज्ञ के वरिष्ठ हमारे आदरणीय दादियां, दीदियां, या फिर जो भी बड़े भ्राता हैं सभी के मुख से सुनने में आता है कि देवी में जितने भी गुण होते हैं वो सारे मम्मा में एकदम मौजूद थे। आज पूरे विश्व को नाज़ है कि आज इतनी सारी शिव की जो शक्तियां हैं वो मम्मा के कदम को ही फॉलो करती हैं। क्योंकि देखो, परमात्मा की शक्ति तो सबको मिल सकती है, लेकिन साकार में उनको एक ऐसा उदाहरण चाहिए जिन्होंने इसे सच में धारण किया हो। और उसी धारणा की प्रतिमूर्ति बनकर मम्मा ने इतनी सारी देवियों का उद्धार कराया जो आज पूरे विश्व में हर जगह अपने इसी स्वरूप से अपने आपको प्रखर कर रहे हैं और अपने आप को सबके सामने रख रहे हैं।
तो 24 जून 1965 का दिन आज यादगार इसीलिए है क्योंकि जो कर्म करने वाले कर्म करके चले गये, उनके पद्चिन्हों पर चलकर सभी उस चीज़ को फॉलो करके वैसा बनना चाहते हैं। और आज भी जब उनकी गाथा हम सुनते हैं तो सुनते ही रह जाते हैं। ऐसी थीं मम्मा, ऐसा करती थीं मम्मा, ऐसा सोचती थीं मम्मा, ऐसा बोलती थीं मम्मा, इस परिस्थिति को ऐसे हल करती थीं मम्मा, तो मम्मा क्या थीं, कैसी थीं और कैसे उन्होंने इस जीवन को जिया, वो सारा कुछ अगर किसी में देखना है तो जितनी भी आज शिव शक्तियां हैं जो पूरे विश्व में परमात्मा के ज्ञान को प्रखर कर रही हैं, आप इनके व्यक्तित्व से भी देख सकते हैं। तो क्यों ना हम भी उन जैसा बनने की ओर एक कदम बढ़ाकर इस पुण्यतिथि को और भी यादगार बनायें।


कैसा था मम्मा का व्यक्तित्व… एक नज़र में
पवित्रता का प्रकाश फैलाने वाली, सभी को शुद्ध दृष्टि, शुद्ध विचारों, शुद्ध शब्दों के द्वारा भरपूर करने वाली सच्ची वैष्णव।
आशा, जोश, उत्साह और उमंग सबके अंदर लातीं, सच्ची उमादेवी।
सबके अंदर गहरी संतुष्टि की भावना लातीं, सच्ची संतोषी।
निडर और साहसी, नकारात्मकता, बुराई और अन्य बातों को नष्ट करने वाली सच्ची काली।
प्यार, शांति देकर सबको भरपूर करने वाली जगदम्बा।
सभी के शुभ संस्कारों को उजागर करने वाली, शुभ शगुन की तरह थीं।
सच्ची गायत्री और एक महान योगी संत।

उनके एकमात्र देखने से भी पता चलता था कि वो कहना क्या चाहती हैं। तो ऐसा प्रखर व्यक्तित्व हम सभी के लिए प्रेरणास्रोत है।

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