अशरीरी स्थिति में स्थित होने का अनुभव

0
289

अभी मरजीवा जन्म लिया है। मरजीवा माना मरकर जीना। हम यह नहीं कहेंगे हम कलियुगी हैं। हम कहेंगे हम संगमयुगी हैं। यह हमारा नया जन्म है माना हम शूद्र जीवन से मर चुके और ब्राह्मण जीवन में नया जन्म है।

हम सभी के दिल का यही संकल्प है कि हम सभी बाप के समान बन जायें। समान कौन बन सकता है? निराकार बाबा के समान हम अजन्मा तो नहीं बन सकते, लेकिन निराकार बाबा जैसे अशरीरी हैं ऐसे हम भी अशरीरी स्थिति में स्थित हो सकते हैं। जब हम याद में बैठते हैं तो पहली कोशिश यही करते हैं कि जितना हो सके उतना अशरीरी स्थिति में स्थित रहें। मच्छर आया, मक्खी आई या कोई ने ज़रूरी काम से क्रॉस किया तो ऐसा नहीं है कि हमको पता ही नहीं पड़ेगा। लेकिन हम अपने लगन में ऐसे मग्न हैं जो हमको वो डिस्टर्ब नहीं करेगा। हम अपनी मस्ती में मस्त होंगे। जैसे स्थूल हाथ ऊपर-नीचे हुआ तो मन ऊपर- नीचे नहीं होगा। हाथ नीचे-ऊपर हुआ – यह तो शरीर का कर्म है लेकिन मन और बुद्धि हलचल में नहीं आये। जैसे आप कभी डीप विचारों में खोये होते हैं, उस समय खाना आपके सामने आया, आपने खाना शुरू कर दिया आपसे कोई पूछे कि भोजन में नमक ठीक है? लेकिन आप डीप विचारों में ऐसे मग्न हैं जो आपको नमक-मिर्च का टेस्ट खींचता ही नहीं है। ऐसे ही कोई बात जब विघ्न रूप हो जाती है तो भी उस बात में खोये-खोये रहेंगे। जब मनुष्य साधारण बातों में खो जाता है तो डिस्टर्बेन्स नहीं होती। हम भी अशरीरी स्थिति में स्थित हो गये, अशरीरी बाबा की याद में मग्न हो गये, लीन हो गये, खो गये तो हमको कोई भी बात हलचल में नहीं लायेगी। बात आई, पास हो गई हम फिर अपने में मग्न। जैसे कमल पुष्प रहता कीचड़, पानी में है लेकिन पानी और कीचड़ से न्यारा है। एक बूंद भी उसके ऊपर स्पर्श नहीं करती। ऐसे हम भी जब योग की स्थिति में स्थित हो जाते हैं तो कोई भी बाहर का, माया का, प्रकृति का प्रभाव मन-बुद्धि को अपने तरफ नहीं खींच सकता। अपने लगन में मग्न रहते हैं। इसको कहते हैं अशरीरी स्थिति का अनुभव।
दूसरी बात, जैसे बाबा अवतरित होता है, शरीर में प्रवेश होता है, साकार बनता है लेकिन है बिल्कुल न्यारा। इसी रीति बाबा हमको कहते हैं कि तुम आत्मा भी शरीर में अवतरित हुई हो, तो अपने को अवतार समझो। अवतार का अर्थ ही है जो अवतरित हुआ हो। जैसे मैं आत्मा परमधाम से आई, शरीर का आधार लिया, कर्म कर रही हूँ लेकिन हूँ मैं न्यारी। अपना लौकिक जन्म आदि सब भूल जाओ। अभी मरजीवा जन्म लिया है। मरजीवा माना मरकर जीना। हम यह नहीं कहेंगे हम कलियुगी हैं। हम कहेंगे हम संगमयुगी हैं। यह हमारा नया जन्म है माना हम शूद्र जीवन से मर चुके और ब्राह्मण जीवन में नया जन्म है।
इस नये जन्म में, जब हम ब्राह्मण बने तो हमने प्रतिज्ञा की कि ये तन-मन-धन-सम्बन्ध सब तेरा। तेरा कहने से न्यारे और प्यारे हो जाते और मेरा कहने से पिंजरे में फंस जाते हैं। तेरा कहने से पिंजरे का दरवाजा खुल जाता है।

कोई जवाब दें

कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें!
कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें