सबके साथ रहते, सब पेपर सामने होते नष्टोमोहा रहें…

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समाज में रहते समाज को निभाना भी और समाज की गाली भी खाना, कभी समाज दुश्मन बनेगा, कभी कहेगा बहुत अच्छा। यह तो पेपर आयेंगे ही।

आप सबको देख प्यारे बाबा का एक बोल याद आता। बाबा कहते तुम बच्चों को सच्ची-सच्ची गीता सबको सुनानी है, तुम घर-घर में सच्ची गीता पाठशाला खोलो। गीता के भगवान को सिद्ध करो, इसी पर ही तुम्हारी विजय होनी है। ईश्वरीय विश्व विद्यालय नाम से मनुष्यों का इतना ध्यान नहीं जाता लेकिन जब सुनते सच्ची गीता पाठशाला तो नाम सुनने से ही अन्दर आता चलकर देखें यहाँ क्या सुनाते हैं।
आप सब सच्ची गीता पाठशाला के निमित्त बने हुए सच्चे सेवाधारी हो। जो निमित्त बनते उनकी बाबा अपरमअपार महिमा गाता। ब्रह्माकुमारियों ने तो अपनी जीवन सेवा के लिए अर्पित की, उन्हों का महान भाग्य है लेकिन उनसे भी अधिक भाग्य आपका है। उन्होंने सबकुछ त्याग कर सेवाकेन्द्र बनाया है। शो केस के सैम्पुल आप हैं। शो केस में हमेशा सैम्पुल को रखा जाता क्योंकि आप ही दूसरों के सामने बाबा के ज्ञान को प्रत्यक्ष करने वाले हो इसलिए आपकी बहुत वैल्यु है। तुम्हारे लिए यह पाठ है कि रहना है प्रवृत्ति में लेकिन पर वृत्ति में रहना है। आपको सबके साथ में रहते नष्टोमोहा का पाठ पढऩा है। यह सैम्पुल आप लोगों का है। ब्रह्माकुमारियों के आगे कोई भी पेपर आये तो नो फिकर क्योंकि वह बाबा की सर्विस पर हैं, परन्तु आपके आगे चार पेपर सदा ही खड़े हैं। कहा जाता है ये ज्ञान इतनी ऊंची मंजि़ल है, चढ़े तो चाखे ज्ञान रस, गिरे तो चकनाचूर… यह है लम्बी खजूर। यह कहावत प्रवृत्ति में रहने वालों के लिए है। चढऩा भी ज़रूर है, रस पीना भी ज़रूर है लेकिन चढ़ें तो कैसे? क्योंकि इधर है प्रवृत्ति, उधर है समाज, इधर है धन्धा और उधर है बाबा। यह सब पेपर आपके सामने हैं।
प्रवृत्ति वालों को अनेक चिंतायें रहती, आज बेटी बड़ी हुई है, शादी करनी होगी। यह करना होगा। इसके लिए धन्धा करें, पैसा इकठ्ठा करें। चिन्ताओं की टोकरी सदैव सिर पर रहती। बहू-बेटी में ममता हो जाती। ऐसे सबके साथ रहते हुए, सब पेपर सामने होते हुए नष्टोमोहा रहें। यह सैम्पुल आप सबका है। आपको बुद्धि में अगर रहता बाबा यह प्रवृत्ति तेरी है तो सदा बेफिकर रहते। ऐसे कमल फूल का प्रैक्टिकल मिसाल आप लोग हैं।
गृहस्थी है उसके लिए धन्धा भी ज़रूर करना पड़ता, आज धन्धा अच्छा चलता, कल नहीं चलता। कई प्रकार के पेपर आपके सामने आते, अज्ञान में तो मनुष्य को धन्धे में अगर घाटा जो जाये तो शॉक आ जाता परन्तु ज्ञानवान कहते यह तो ड्रामा है। फिकरातों के बीच रहते बेफिकर रहना। निरसंकल्प रहना, ये सैम्पुल आप हैं। जो कमाते हुए भी अनासक्त रहते वही सैम्पुल बनते हैं। आज का धन्धा-धोरी भी क्या है? आज नौकरी कैसी है, कल कैसी है। यह अप-डाउन रोज़ होता। परन्तु यह सब होते भी नथिंगन्यू। अज्ञानियों में टेशन रहता और हम कहते नो टेन्शन बट अटेन्शन। समाज में रहते समाज को निभाना भी और समाज की गाली भी खाना, कभी समाज दुश्मन बनेगा, कभी कहेगा बहुत अच्छा। यह तो पेपर आयेंगे ही। इन सबको पार करते हुए चलना यह है आप सबका सैम्पुल।
अब आओ ब्राह्मणों की दुनिया में, यहाँ भी कई पेपर आते। जायेंगे सर्विस करने, सर्विस अच्छी हुई तो खुशी होगी। नहीं हुई तो दिलशिकस्त होंगे। कभी-कभी आपस में भी मित्र के बजाय परममित्र बन जाते। यह संस्कारों का भी बहुत कड़ा पेपर है। किसी को मित्र बनाना तो सहज है परन्तु परममित्र को मित्र बनाना यही मीठी-मीठी पढ़ाई है।

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