दूसरों को माफ करें और हिसाब -किताब साफ करें

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आज आप एक होमवर्क करिए। पहला, अपने जीवन की प्राथमिकता अपने कर्म और अपने संस्कारों को बनाएं। लोग हमेशा हमारे साथ परफेक्ट व्यवहार नहीं करेंगे। लेकिन याद रखिए, वो तमाम बातें या लोग हमारे साथ नहीं जाने वाले हैं, जो उन्होंने आज किया वो भी साथ नहीं जाने वाला है। लेकि न उनके बारे में हमने जो आज सोचा वो भी नहीं साथ जाने वाला है। क्या ये संभव है कि कोई हमारे साथ गलत करे और हम उनके लिए अच्छा सोचें? क्या ये संभव है कि कोई हमारे साथ गलत करें हम उनको दुआएं दें? इस पर विचार करें क्योंकि इसी से आपका जीवन बदलेगा।
चलिए आज थोड़ा आत्म विश्लेषण करते हैं। एक बार देखिए कि आपने कितनी बातें पकडक़र रखी हुई हैं। ‘इसने वो किया, इसने उस दिन मेरे साथ ऐसा किया, उसने पिछले साल ऐसा किया, उसने उस दिन बुलाया था, ठीक से बात नहीं की, ” उस दिन उसने फोन नहीं किया…”। ऐसी न जाने कितनी सारी बातें हैं, जिन्हें हमने मन में पकडक़र रखा हुआ है। अब अपने आप से पूछिए कि इसमें से कौन सी ऐसी बात है, जो मेरे साथ आगे जाने लायक है। अगर नहीं है तो खत्म कब क रना होगा? शरीर तो कभी भी छूट सकता है। इसका मतलब येे नहीं कि हम सारा दिन सोचते रहें कि मैं मरने वाला हूँ, नहीं। इसका मतलब है कि हम सदा तैयार रहते हैं कि आत्मा किसी भी क्षण शरीर छोड़ सकती है। इसलिए मुझे जो कुछ यहां छोडऩा है। वो अभी छोडऩा है। मुझे समय नहीं मिलेगा बीच में छोडऩे के लिए। अगर मैंने शरीर छोडऩे से पहले उन बातों को नहीं छोड़ा, तो वो बातें मेरे साथ जाती हैं। और नया भाग्य उन बातों के साथ शुरू होता है।
इसीलिए पंडित जी कहते हैं वैसे तो सब कुछ अच्छा है लेकिन ये साल बहुत भारी है। ये चार साल बहुत भारी हैं, फिर अगला साल बहुत भारी है। ये जो सारे भारी साल आते हैं ये वो वाले साल होते हैं, जो हम भारी बातों को पकडक़र लाए थे। क्योंकि उन बातों को खत्म करने का हमें समय ही नहीं मिला। अगर खत्म करने का समय मिला तो हमने खत्म नहीं किया। क्योंकि जिस बात को हम खत्म नहीं कर पाए, उन्हें साथ जाते समय भी खत्म नहीं कर पाएंगे। ये निश्चित है।
संस्कार जाते समय पैदा नहीं किए जाते। वो जीते हुए हमारे पास होने चाहिए। लेकिन उसके लिए हर रोज़ परमात्मा का जो सबसे बड़ा तोहफा हमें मिलता है वो है ज्ञान। जैसे हमारी सबसे बड़ी गिफ्ट जो हमारे बच्चों को मिलती है, वो होती है हमारी राय, हमारी समझ, हमारे अनुभव। आप अपने बच्चों को क्या कहते हैं गलती मत कर, मेरे अनुभव से सीख ले। वो ऐसे प्यार से सुनता है फिर वो अपनी करने लग जाता है। परमात्मा हमें ज्ञान देते हैं लेकिन ज्ञान के साथ हमें चाहिए शक्ति। उस ज्ञान को धारण करने के लिए। क्या ये संभव है कि कोई हमारे साथ गलत करे हम उनको दुआएं दें?
ये सुनने में थोड़ा अव्यावहारिक लग सकता है। पर गहराई से चिंतन करने पर आपको जवाब मिल जाएगा। सामने वाले ने आपके साथ गलत किया, लेकिन उसके रिटर्न में क्या हमने दुुआएं देकर श्रेष्ठ कर्म किया? हमने ऊपर तौर पर कोई जवाब नहीं दिया। मतलब गलत नहीं बोला, पर क्या मन में भी गलत नहीं सोचा? इससे भी आगे की बात कि क्या आप उससे दु:खी नहीं हुए, परेशान नहीं हुए, दर्द नहीं हुआ, और सबसे ज़रूरी बात कि क्या उसको शुभभावना और दुआएं देकर श्रेष्ठ कर्म किया। क्या ये संभव है। इसका अभ्यास अभी से करें। आंखे बंद करें एक मिनट के लिए और सीधा बैठें। उस आत्मा को सामने लेकर आएं। चेहरा नहीं लाना, रिश्ता भी नहीं, सिर्फ आत्मा है वो। मैं आत्मा हूँ, वो आत्मा है। इन्होंने मेरे साथ ऐसा क्यों किया। मेरे पिछले कर्मों का इनके साथ हिसाब-किताब था। आज मुझ आत्मा को उस हिसाब – किताब को बदलना है।
हमेशा याद रखना है गांठें अगर मन में बनाकर रखीं और जब आत्मा शरीर छोड़ेगी तो गांठे साथ ही जाएंगी। वो जो आज हमें तंग कर रहे हैं ये वो ही हैं, जिनके साथ पिछली बार हम गांठें खोलकर नहीं आए थे। इसलिए तो वो हमारे सामने आए हैं। अगर हम इस बार भी गांठें नहीं खोलेंगे, अगर इस बार भी हम दुआएं देकर हिसाब-किताब को ठीक नहीं करेंगे तो हम फिर मिलेंगे और जब हम फिर मिलेंगे तो मुश्किलें इस बार से भी ज्य़ादा बढ़ी हुई होंगी। हिसाब-किताब कैरी फॉरवर्ड-कैरी फॉरवर्ड होता जा रहा है। खोलो उसको एक सेकंड में पूर्ण विराम लगाओ और खत्म क रो। गलती चाहे कितनी भी बड़ी हो। दुआ और क्षमा एक संकल्प है ना।

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