परमात्म ऊर्जा

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मास्टर बीजरूप की स्थिति में स्थित रहने का अभ्यास करते-करते सहज इस स्मृति में अपने आपको स्थित कर सकते हो? जैसे विस्तार और वाणी में सहज ही आ जाते हो, वैसे ही वाणी से परे विस्तार के बजाय सार में स्थित हो सकते हो? हद के जादूगर विस्तार को समाने की शक्ति दिखाते हैं। तो आप बेहद के जादूगर विस्तार को नहीं समा सकते हो? कोई भी आत्मा सामने आवे, साप्ताहिक कोर्स एक सेकण्ड में किसको दे सकते हो? अर्थात् साप्ताहिक कोर्स से जो भी आत्माओं में आत्मिक शक्ति व सम्बन्ध की शक्ति भरने चाहते हो वह एक सेकण्ड में कोई भी आत्मा में भर सकते हो व यह अन्तिम स्टेज है? जैसे कोई भी व्यक्ति दर्पण के सामने खड़े होने से ही एक सेकण्ड में स्वयं का साक्षात्कार कर लेते हैं, वैसे आपके आत्मिक स्थिति, शक्ति रूपी दर्पण के आगे कोई भी आत्मा आवे तो क्या एक सेकण्ड में स्व स्वरूप का दर्शन व साक्षात्कार नहीं कर सकते हैं?
वह स्टेज बाप समान लाइट हाउस और माइट हाउस बनने के समीप अनुभव करते हो व अभी यह स्टेज बहुत दूर है? जबकि सम्भव समझते हो तो फिर अब तक ना होने का कारण क्या है? जो सम्भव है, लेकिन प्रैक्टिकल में अब नहीं है तो ज़रूर कोई कारण होगा। ढीलापन भी क्यों है? ऐसी स्थिति बनाने के लिए मुख्य कौन से अटेन्शन की कमी है? जब साइंस ने भी अनेक कार्य एक सेकण्ड में सिद्ध कर दिखाये हैं, सिर्फ स्विच ऑन और ऑफ करने की देरी होती है। तो यहाँ वह स्थिति क्यों नहीं बन पाती? मुख्य कौन-सा कारण है? दर्पण तो हो। दर्पण के सामने साक्षात्कार होने में कितना टाइम लगता है? अभी आप स्वयं ही विस्तार में ज्य़ादा जाते हो। जो स्वयं ही विस्तार में जाने वाले हैं वह और कोई को सार रूप में कैसे स्थित कर सकते? कोई भी बात देखते या सुनते हो तो बुद्धि को बहुत समय की आदत होने कारण विस्तार में जाने की कोशिश करते हो। जो भी देखा व सुना उसके सार को जानकर और सेकण्ड में समा देने का व परिवर्तन करने का अभ्यास कम है। क्रक्रक्यों, क्याञ्जञ्ज के विस्तार में ना चाहते भी चले जाते हो। इसलिए जैसे बीज में शक्ति अधिक होती है, वृक्ष में कम होती है, वृक्ष अर्थात् विस्तार। कोई भी चीज़ का विस्तार होगा तो शक्ति का भी विस्तार हो जाता। कोई भी बात के विस्तार में जाने से समय और संकल्प की शक्ति दोनों ही व्यर्थ चली जाती हैं। व्यर्थ जाने के कारण वह शक्ति नहीं रहती। इसलिए ऐसी श्रेष्ठ स्थिति बनाने के लिए सदा यह अभ्यास करो।

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