अम्बिकापुर : ब्रह्माकुमारीज़ संस्थान की प्रथम मुख्य प्रशासिका मातेश्वरी जगदम्बा का 59 वीं पुण्य स्मृति दिवस श्रद्धापूर्वक मनाई गयी

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अम्बिकापुर,छत्तीसगढ़: प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय द्वारा नव विश्व भवन चोपड़ापरा में ब्रह्माकुमारीज़ संस्थान की प्रथम मुख्य प्रशासिका मातेश्वरी जगदम्बा का 59 वीं पुण्य स्मृति दिवस श्रद्धापूर्वक मनाई गयी।
इस पुण्य स्मृति दिवस के अवसर पर सेवाकेन्द्र संचालिका बी,के, विद्या दीदी ने मातेश्वरी जगदम्बा के प्रति भोग लगाया और उनके छायाचित्र पर मालार्पण कर भावभीनी श्रद्धासुमन अर्पित किये।
सरगुजा संभाग की सेवाकेन्द्र संचालिका बी,के, विद्या दीदी मातेश्वरी जी जीवन की विशेषता सुनाते हुये कहा कि महज 16 वर्षीय कन्या संस्था की पहली मुख्य प्रशासिका बनी। मम्मा एक कुशल प्रशासक के साथ ही साथ वात्सल्य की देवी भी थी। उनके अन्दर अर्न्तमुर्खता और गम्भीरता की अदम्य शक्ति थी जो मम्मा को बहुत विशेष मनाया और सदा परमात्मा के आज्ञा को हाँ जी करके चलीं। उनकी बुद्धि बहुत ही विशाल और दुरानदेशी होने के कारण हर व्यक्ति को बहुत आसानी से समझकर उसके साथ वैसा ही व्यवहार करती थी जिसके कारण वो सभी के दिलो को जीत ली थी। वो हर कार्य एक्यूरेट और परफेक्ट करती थी और सभी को वैसा ही कार्य करना सिखाती थी। आगे उन्होंने बताया की मम्मा हर ब्रह्मावत्सों की पालना माँ बनकर की। मम्मा बहुत ही निर्भय, शक्ति स्वरूपा थी। उनमें अनासक्त भाव का गुण भी विद्यमान था किसी भी चीज में मन नहीं जाता था सदा प्रभु के याद में मगन रहती थी। वो सदैव स्वमान के नशे से भरपूर रहती थी एवं दिव्यगुणों से सम्पन्न, साक्षात् देवी थी। मम्मा सदा ही कहा करती थी हर घड़ी अन्तिम घडी जिसके कारण ही वो अल्पायु में ही सम्पन्न सम्पूर्ण बन गयी। मातेश्वरी जगदम्बा के गुण और नियम वर्तमान समय ब्रह्माकुमारी संस्था का सिद्धांत बन गया है जिसके मार्गदर्शन पर लाखों भाई- बहनें चलकर अपने जीवन को परिवर्तन कर समाज के लिये उदाहरणस्वरूप बन रहे है।
इस अवसर पर संस्था से जुडे लगभग 300 भाई- बहनों को मातेश्वरी जी के गुणों से सम्बन्धित वरदान दिया गया सभी वैसा बनने का संकल्प किये और अंत में ब्रह्माभोग स्वीकार किये।
इसी तारतम्य में अजीरमा प्रभु प्रेरणा भवन में भी कार्यक्रम आयोजित किया। वहाँ भी मातेश्वरी जगदम्बा के निमित्त भोग लगाया गया। ब्रह्मावत्सों ने मातेश्वरी जगदम्बा के छायाचित्र पर पुष्प अर्पित कर उनके लक्ष्य कदम पर चलने का प्रतिज्ञा किये।

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