आपने क्या कभी ये सोचा कि हम सभी जब कभी आराम से बैठें और साक्षी होकर अपने आप को देखें तो आप देखो जो भी आपके अन्दर विचार आते हैं, जो भी आपके अन्दर संकल्प चलते हैं वो सारे विचार और संकल्प परिस्थिति से, व्यक्ति से, वस्तु से या सामने वाले वातावरण से प्रभावित होकर चलते हैं। आपने जो देखा है, जो सुना है, जो पढ़ा है उसके आधार से सोचते हैं। तो क्या वो सही हो सकता है? अगर वो सही होता तो सभी के लिए सही होता। लेकिन कई बार आप देखते होंगे कि कई बार लोगों का ही बहुत सुन्दर अनुभव है कि जब हम ये वाली सारी चीज़ें सोच रहे होते हैं, बोल रहे होते हैं, देख रहे होते हैं तो उसमें हम ये पाते हैं कि हम उन बातों से प्रभावित होकर अपने आपको डिस्टर्ब करते हैं। ये सिद्ध करता है कि आज हम सभी गुलाम हैं। हरेक चीज़ के, हर एक वस्तु के गुलाम हैं, हर एक बात के गुलाम हैं। अपने आदतों के गुलाम हैं, तो जो गुलाम है वो आप सोचो कैसे जी रहा होगा! अगर इसका उल्टा कर दिया जाये कि हमारे संकल्पों से, हम जो संकल्प करें लोग वैसा सोचें। हम जो बोलें लोग वैसा बोलें, हम जो देखना चाहें लोग हमारी आँखों से वैसा ही देखना चाहें। तो कितना सुन्दर वातावरण बन जायेगा।
सिर्फ यही परमात्मा हमको सिखाते हैं कि हम बाहरी दुनिया के गुलाम हैं। हमको मालिक बनना है, गुलाम नहीं बनना है। मतलब बाहर की परिस्थिति जो आपको दिखा रही है वो आप देख रहे हैं। बाहर व्यक्ति जो आपको दिखा रहा है वो आप देख रहे हैं। अपने आपसे वो बात नहीं कर पा रहे हैं। यही है आदतों का, संस्कारों का, बातों का गुलाम होना। और ये आदत, संस्कारों और बातों का गुलाम होना बहुत आसान है। इसलिए हमको सबसे पहले इन सब बातों से बाहर निकलना बहुत ज़रूरी है। तो सबसे पहले आज हमने सोचा है, देखा है, उसके आधार से नहीं सोचना है लेकिन जो मैं हूँ उसके आधार से आपको सोचना है। आदत कोई भी बुरी नहीं है लेकिन उस आदत का हमारे ऊपर हावी हो जाना बहुत बुरी बात है। तो चलो ये वाले काम भी करके देख लेते हैं आज।