परमात्म पालना का प्रतिबिम्ब दादी प्रकाशमणि…

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जिनकी मुस्कान अनेकों के कष्ट हर लेती थी, जिनकी दृष्टि पाने के लिए लोगों के कदम रूक जाते थे, जिनके प्रेमपूर्ण सफल प्रशासन की चहुं ओर फैली खुशबू से आकर्षित हो सभी प्रशासनिक अधिकारी उनसे यह कला सीखना चाहते थे, जिनकी पवित्रता व सरलता पर स्वयं भगवान भी बलिहार जाते थे, जिन्होंने अनेकों को जीवन दान दिया, जिन्होंने प्यार देकर अनेकों को जीना सिखाया, जिनसे सबको सदैव परमात्म स्नेह, प्यार की पालना की महसूसता होती – ऐसी थीं महान दादी प्रकाशमणि।

जिनकी मुस्कान अनेकों के कष्ट हर लेती थी, जिनकी दृष्टि पाने के लिए लोगों के कदम रूक जाते थे, जिनके प्रेमपूर्ण सफल प्रशासन की चहुं ओर फैली खुशबू से आकर्षित हो सभी प्रशासनिक अधिकारी उनसे यह कला सीखना चाहते थे, जिनकी पवित्रता व सरलता पर स्वयं भगवान भी बलिहार जाते थे, जिन्होंने अनेकों को जीवन दान दिया, जिन्होंने प्यार देकर अनेकों को जीना सिखाया, जिनसे सबको सदैव परमात्म स्नेह, प्यार की पालना की महसूसता होती – ऐसी थीं महान दादी प्रकाशमणि।
तो इस धरा पर अनेक महानात्माओं का अविर्भाव हुआ और होता रहेगा, परन्तु वे एक ऐसी महानात्मा थीं जिन्होंने अनेकों को महान बनाया, लाखों लोगों को प्रभु-मिलन कराया और परमात्मा के महान कार्य का सफलता व कुशलता पूर्वक संचालन किया। आज भी प्रतिदिन अनेकों के मानस पटल पर उनकी छवि उभर आती है और 25 अगस्त को तो सारा ब्राह्मण परिवार उनके प्रेम व अपनेपन को स्मरण करके भाव विभोर हो जाता है। उनकी याद में निमित्त प्रकाश-स्तम्भ प्रतिदिन असंख्य ब्राह्मणों को योग की दिव्य अनुभूतियाँ कराता है।

एक कुशल प्रशासक:- कुशल प्रशासक के साथ वे समस्त ब्राह्मण परिवार की स्नेहमयी दादी भी थीं। आज उनकी अनुपस्थिति विशाल ब्राह्मण परिवार में एक रिक्तता का आभास कराती है। वे निर्मल, निष्काम व आत्मिक प्रेम की प्रतिमूर्ति थीं। प्यार बांटना उनका प्रमुख कत्र्तव्य था। जब लोगों से गलती भी हो जाती थी तो वे प्यार का प्रसाद देना नहीं भूलती थीं। उनकी शिक्षाओं में भी कल्याण का भाव व प्यार समाया होता था। वे चाहती थीं कि भगवान का ये परिवार पवित्रता व प्रेम से भरपूर हो।

स्नेह और प्रेम की मूरत:- बहुत वर्ष पहले की बात है। हमारा ये रूद्र ज्ञान यज्ञ बहुत छोटा था। प्रथम बार 45 पत्रकार हमारे एक छोटे से सम्मेलन में आये। हिस्ट्री हॉल में दादीजी ने शब्दों से उनका इतना भावपूर्ण सत्कार किया कि वे मंत्रमुग्ध हो गये, उनकी यात्रा की थकान उतर गई, उन्हें लगा कि दादी तो हमारी है और अगले ही दिन भारत के अनेक अखबारों में छपा-‘प्रेम की प्रतिमूर्ति- दादी प्रकाशमणि’।

चलता-फिरता फरिश्ता वो:- वे चलता-फिरता फरिश्ता थीं। प्रारंभ में वे यज्ञ के सभी विभागों में जाती थीं, उन्हें अपनापन देती थीं, सबसे पूछती थीं- कुछ चाहिए। उनके ये शब्द सुनकर सबकी चाहना ही लोप हो जाती थी। सभी आश्चर्यवत होकर उन्हें निहारने लगते थे। जब वे बीस हज़ार की सभा में पूछती थीं- बोलो क्या खाओगे, आइसक्रीम खाओगे? सभी उनकी उदारता व अपनेपन के समक्ष सिर झुका देते थे। सचमुच वे ही योग्य पात्र थीं इन महान आत्माओं के विशाल परिवार की मुखिया बनने के।
मुरली में रस भर देतीं:- हमने अत्यधिक सुख उस समय प्रतिदिन पाया, जब वे सवेरे भगवान के महावाक्य(मुरली) सुनाती थीं। उन्हें ये वरदान था। वे मुरली में ऐसा रस भर देतीं के भरी सभा में परम आनंद की लहर छा जाती। हमारा वो एक घण्टा जैसे कि पॉवरफुल योग में बीतता था। ज्ञान और योग का वो संगम हर आत्मा के लिए अति सुहावना होता।
बाबा ने दे दी थीं समस्त शक्तियां:- ये वृत्तांत पूर्णतया सत्य है दादी प्रकाशमणि के लिए। क्यों उन्हें भगवान इतना प्यार करता था जो अव्यक्त होते समय बाबा ने उनका हाथ पकडक़र उन्हें अपनी समस्त शक्तियाँ दे दी थी। क्योंकि वे निर्मल थीं, वे अनासक्त थीं, वे त्यागी व परोपकारी थीं। उनका चित्त सभी के लिए शुभ-भावनाओं से भरा था, वे निर्विकारी थीं। उन्होंने भगवान द्वारा रचित रूद्र यज्ञ को सफल बनाया था, उसमें आने वाले विघ्नों को समाप्त किया था। सचमुच वे ईश्वरीय यज्ञ रक्षक थीं। वे चाहती थीं कि प्रत्येक यज्ञ-वत्स संतुष्ट रहें, योगी बनकर रहें, व्यर्थ से मुक्त रहें। सब एक-दूसरे को सुख देते रहें, संतुष्ट करते रहें। सब यज्ञ सेवा से अपना भाग्य चमकाते रहें। हम यज्ञ-वत्स उनकी इन शुभ-कामनाओं को पूर्ण करके उनकी श्रेष्ठ पालना का रिर्टन देंगे।
हे विश्व की आधारमूर्त, आपको कोटि-कोटि नमन्! हे जहान के नूर, आपको बारंबार नमन्। हे अंसख्य आत्माओं के दिल के दीपक आपको शत्-शत् नमन्। सारा विश्व आपका ऋणी है। हम इस पुण्य स्मृति दिवस पर आपको श्रद्धा सुमन अर्पित करते हैं। हम अवश्य ही आप समान सच्चाई व निरहंकारिता को धारण करते हुए आपके सपनों को साकार करेंगे।

भगवान स्वयं उन्हें न केवल प्यार करते बल्कि उन्हें बहुत सम्मान भी देते

लोग तो भगवान को प्यार करते हैं। अनेक ब्रह्मावत्स भगवान का प्यार पाने के इंतज़ार में रहते हैं, परंतु हमने देखा, भगवान स्वयं उन्हें न केवल प्यार करते हैं बल्कि उन्हें बहुत सम्मान देते हैं। नि:संदेह दादीजी श्रेष्ठ योगी थीं, परमात्म -प्यार में मग्न रहने वाली थीं, परंतु बाबा का उनसे मिलन देखकर ‘अबू बेन अदेम’ की कहानी मानस पटल पर उभर आती थी। सुना होगा आपने -अबू के स्वप्न में एक फरिश्ता आया, जिसके हाथ मेेंं एक लिस्ट थी। अबू ने पूछा, ये क्या है? फरिश्ते ने उत्तर दिया, ये उन लोगों की लिस्ट है जो भगवान को बहुत प्यार करते हैं। अबू ने पूछा, इसमें मेरा नाम कहाँ हैं? ‘सबसे अंत में’ – यह कहकर फ रिश्ता लोप हो गया। दूसरी रात एक लिस्ट के साथ फरिश्ता पुन: प्रगट हुआ और अबू ने पुन: पूछा, आज किनकी लिस्ट है? फरिश्ते ने फरमाया कि ‘ये लिस्ट उनकी है जिन्हें भगवान बहुत प्यार करता है, इसमें सबसे ऊपर आपका ही नाम है’, यह कहकर फरिश्ता अदृश्य हो गया। यह सुनकर अबू- प्रेम में मग्न हो गया। इस कहानी को चरितार्थ होते हम दादी प्रकाशमणि में स्पष्ट देख सकते थे।

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