दादी ने विश्व परिवर्तन के अभियान को शिखर पर पहुंचाया…

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ऐसे तो संसार रूपी बेहद नाटक में हज़ारों मनुष्यात्माएं किरदार अदा कर फिर चली जाती हैं। लेकिन कुछेक आत्माओं का पार्ट विशेष रहता है। जो आत्मीय गुणों को साकार कर दूसरों की जीवन यात्रा में सहयोग प्रदान करते हैं। ऐसे विराट हृदयी दादी जी के पुण्य तिथि पर हमने यही देखा-समझा-जाना कि दादी के सानिध्य में आते उनकी निश्छल दृष्टि, निर्मल भावनाएं व खुशनुमा सूरत ने हमारे हृदय को स्पर्श किया। यह अनुभव विश्व की लाखों आत्माओं का है चाहे वो उनसे कितनी बार भी मिली होंगी। दादी की निर्णय शक्ति जबरदस्त रही। उनके व्यक्तित्व में यह विशेष बात थी कि जिस भी सेवा कार्य में उन्होंने उम्मीद रखी उसका प्रारूप उसी तरह बन गया। बात 90 के दशक की है। जब ज्ञानसरोवर के निर्माण का कार्य आरंभ करना था। तब दादी ने मधुबन के भाईयों मध्य यह बात रखी कि इस कार्य को कौन सम्भालेगा। यज्ञ इतिहास में यह पहला ऐसा विशाल प्रोजेक्ट था। इस प्रकार के कंस्ट्रक्शन का इससे पूर्व किसी को अनुभव नहीं था। बस परमात्मा के विश्व परिवर्तन के कार्य को विशालता प्रदान करने के लिए प्रथम नींव डाली जा रही थी। ऐसे में दादी ने मुझे इस कार्य को क्रियान्वित करने का सुअवसर प्रदान किया।
संस्थान के महासचिव ब्र.कु. निर्वैर ने कहा कि आपको ज्ञान सरोवर के निर्माण कार्य को देखना है। मुझे इस प्रकार के कार्य के बारे में कुछ पता नहीं था, कैसे होगा, बस ईश्वरीय कार्य की उस बेहद योजना में हमारी विशेषताओं की अंगुली लगाने का भाग्य बाबा से प्राप्त हुआ। दादी की निर्णय शक्ति व विश्वास के साथ उम्मीद रखने का यह मेरे जीवन का अनुभव था।
परमात्मा के विशाल परिवर्तन के कार्य को आगे बढ़ाने में दादी का पार्ट कितना अहम था यह शब्दों में बताना कठिन है। लेकिन दादी विश्व में ईश्वरीय पताका फहराने के निमित रहीं।
दादी हर एक की विशेषता को एक सूत्र में पिरोकर यज्ञ सेवा के कार्य में लगाने में माहिर थीं। किसी की भी कमी को खत्म करना और उस आत्मा में खुशी का बल भरकर सेवा में लगाना, ऐसे दादी जैसा कुशल प्रशासक मैंने कोई नहीं देखा। दादी ने जब से परमात्मा के कार्य को आगे बढ़ाने का जिम्मा लिया उनके जीवन में एक बात स्पष्ट रही कि दूसरे आगे बढ़ें, बस यही उनके व्यक्तित्व की विशेषता रही या ताकत रही इस विशाल संगठन को बनाने में। कार्य कितना भी बड़ा हो उसे पर्वत से राईं बना देना तथा निश्चिंत रहना उनकी आत्मिक ऊर्जा की परिचायक थी। सेवा साथियों के उमंग-उत्साह को बनाये रखना यह उनकी खूबी थी। हम पढ़ा करते थे श्रेष्ठ लीडर वह जो स्वयं लाइट रहे और साथियों को भी लाइट रखे। यह क्वालिटी दादी के व्यक्तित्व से नज़र आती थी।
एक बार जब ज्ञानसरोवर के निर्माण कार्य में किसी कारणवश रूकावट आई। दादी ने कहा कि योग करो, सब रूकावटें खत्म हो जाएंगी। सचमुच सबने योग किया और रूकावट ऐसे खत्म हो गई जैसे कि थी ही नहीं। दादी की ईश्वर के प्रति जबरदस्त आस्था एवं विश्वास उनकी शक्सियत को हर क्षेत्र में निखारता नज़र आता रहा। ईश्वरीय कार्य में कई विघ्न, रूकावटें व समस्याएं आईं परन्तु एक परमात्मा में आस्था रूपी शस्त्र के सामने सबकुछ नाकामयाब रहे। दादी की संकल्प शक्ति में दृढ़ता सदा झलकते देखी। मिलिनियम मिनट फॉर पीस का प्रोजेक्ट, ग्लोबल पीस जैसे विश्व व्यापी सेवा कार्यों को इतना सुचारू रूप से सफलता की मंजि़ल तक पहुंचाना यह दादी जी की ही हिम्मत व विश्वास का प्रतिफल था। इन सेवाओं से ही विश्व में ईश्वरीय कार्य का परदा खुला। दादी को क्रविश्व शांतिदूतञ्ज के सम्मान से नवाज़ा गया।
दादी के व्यक्तित्व में सबके प्रति शुभ व कल्याण की भावना कूट-कूटकर भरी हुई नज़र आती थी चाहे कैसा भी व्यक्ति सामने आये उनमें उम्मीदें जगाना तथा विश्वास भरना जैसे कि उनका नैचुरल गुण था। दादी के सम्मुख जो भी आया वह खाली हाथ नहीं लौटा। जो भी उनसे मिला वह उन्हें आज तक भुला नहीं पाया।
एक बार मैं दादी के साथ बैठा हुआ था, इतने में ही एक भाई यज्ञ कारोबार के सिलसिले में दादी से बात करने आया और किसी बात के लिए कुछ ऊंचे आवाज़ में बात करके चला गया। मैंने देखा दादी के शांति एवं सौम्यता की कांति लिए चेहरे पर रिंचक मात्र भी अंतर नहीं आया। दूसरे दिन क्लास के बाद दादी जब आंगन में बैठे थे तो वहाँ से वही भाई निकल रहा था तो दादी ने उन्हें बुलाकर बड़े ही स्नेह व विनम्रता से कहा कि दादी ने आपकी बात समझ ली है आप निश्चिंत होकर अपने कार्य में जुट जाओ। हमने देखा कि दादी के निर्मल चित्त पर किसी की भी गलती ठहरती नहीं थी। कार्य के पहले व कार्य के बाद भी वही न्यारेपन व प्यारेपन का सुंदर बैलेंस दिखाई देता था। नो इफेक्ट और नो डिफेक्ट। ऐसी प्रभु रत्न दादी की पुण्य तिथि पर हमारे दिल से यही उद्गार निकलते हैं कि हे निर्मल, निर्मान, निर्माण की धनी आपको शत्-शत् श्रद्धासुमन अर्पित।

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