साकार बाबा का स्नेही आकार लिया दादी ने

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बाबा का शिक्षा देने का तरीका ही निराला था। वे कभी गलती करने वाले को उनकी गलती बुलाकर नहीं बताते थे। सबकुछ बाबा मुरली में सुना देते थे। जिसने ऐसा किया होता उसे समझ आ जाता था कि ये मेरे लिए है। वैसे ही दादी ने उसी परमात्मा को अपनाया इसीलिए जैसे कहते थे कि ‘मेरा बाबा’, वैसे ही सभी कहते थे ‘मेरी दादी’

साकार बाबा इस बात पर बहुत ध्यान देते थे कि हर बच्चा, मुरली(ईश्वरीय महावाक्य) बहुत ध्यान से सुने। यदि मुरली सुनते समय किसी बच्चे को उबासी आ जाती थी तो बाबा तुरंत कहते थे कि इसको उठाओ, नहीं तो वायुमण्डल पर बुरा प्रभाव पड़ेगा। बाबा मिसाल देते थे कि जैसे सीप पर जल की बूंद गिरती है तो मोती बन जाती है, इसी प्रकार आपकी बुद्धि पर भी ये ज्ञानामृत की बूंदें पड़ रही हैं, एक-एक बूंद ज्ञान-मोती का रूप धारण करती जा रही हैं। अत: हमारे में इतने मोती बाबा डालते हैं, भरपूर करते हैं मोतियों से, तो हमारा इतना ध्यान होना चाहिए। बाबा के सामने मुरली सुनने बैठे बच्चों में से, यदि किसी ने बाबा की मधुर शिक्षाएं सुनकर चेहरे द्वारा प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की तो बाबा कहते थे, यह कौन बुद्धू सामने बैठा है? इतना ध्यान बाबा बच्चों पर देते थे। बाबा का प्यार भी भरपूर था तो शिक्षायें भी भरपूर देते थे। मान लो, किसी बच्चे ने कोई गलती कर दी तो बाबा उसे व्यक्तिगत रूप से बुलाकर गलती नहीं सुनाते थे। मुरली में ही सब सुना देते थे कि महारथी बच्चे भी ऐसे-ऐसे करते हैं, बाबा के पास रिपोर्ट आती है। गलती करने वाला तो समझ जाता था कि यह बात मुरली में मेरे लिए आई है। मुरली के बाद, बाबा के कमरे में हम बहनें और भाई जाते थे जिसे चेम्बर के नाम से जाना जाता था। बाबा अपनी गद्दी पर विष्णु मुआफिक लेट-से जाते थे। मान लो, बाबा ने मुरली जिस बच्चे के लिए चलाई, वह भी बाबा के सामने चेम्बर में आ गया तो उसका मन तो अंदर से खा रहा होता था कि बाबा अभी भी कुछ कह न दें, पर बाबा कभी नहीं कहते थे। जो कहना होता था, मुरली में ही कह देते थे। यदि वह हिम्मत करके बाबा के बहुत करीब भी चला जाये तो भी बाबा और ही प्यार करते थे। मुरली के बाद उस बात को कभी नहीं दोहराते थे कि बच्चे, तुमने अमुक गलती की है। फिर वह बच्चा भी भूल जाता था। इस प्रकार बाबा बहुत प्यार करते थे, गलती करने वाला बेधडक़ होकर बाबा के सामने जा सकता था, पर उसको स्वयं ही इतना एहसास हो जाता था कि भविष्य में उस भूल को कभी नहीं दोहराता था। बाबा हँसा-बहला कर उस बात को समाप्त कर देते थे, पर वह बच्चा पूरा बदल जाता था।

दादी जी दिल में किसी की, कोई बात नहीं रखती थीं
ऐसा ही दादी जी का स्वभाव था। यदि किसी छोटी बहन ने दादी जी को सुनाया कि आज मुझे बहुत रोना आया, फीलिंग आई आदि-आदि तो दादी भी उसकी बात बड़ी बहन को सुनाकर उल्हना नहीं देती थीं कि तुमने छोटी बहन के साथ ऐसा-वैसा क्यों किया। हाँ, दादी जी उस छोटी बहन को ऐसा प्यार देती थीं जो उसके मन को पूरा ठीक कर देती थीं। पर बड़ी बहन को बुलाए, फिर कहे, तुमसे छोटी बहन नाराज़ है, क्या करती हो, कभी नहीं। दादी क्लास कराती थीं, सब कायदे-कानून समझाती थीं, पर व्यक्तिगत इस प्रकार, सीधा नहीं कहती थीं कि तुमने ऐसा किया है। इस प्रकार, दादी भी दिल में कुछ नहीं रखती थीं। क्योंकि दिल में कोई भी बात घर कर जाए तो खुशी गुम हो जाती है। बाबा ने कहा है, जीवन भले जाए पर खुशी न जाए।

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