समय क्या इशारा कर रहा… उसे समझें

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अब जो बाकी का समय है उसमें से एक है अव्यक्त से अव्यक्त का मिलन, और साथ ही साथ जो बाबा कहते निराकारी मिलन। तो अपने आप को, समय को देखते हुए तैयार करना है कि मुझे अपनी स्थिति किस तरह की बनानी है।
अब समय के इशारे को तो आप सभी भी देख रहे हैं, महसूस कर रहे हैं कि समय बहुत तीव्र गति से आगे बढ़ रहा है। जिस तरह से समय रहते ही बच्चों को अव्यक्त बनाने का जो बाबा का संकल्प है उस कारण से ही बाबा ने अपना साकार का पार्ट बंद किया। क्योंकि बाबा जानते हैं अगर मैं नीचे जाता रहूँगा ये बच्चे इतने में रहेंगे कि बाबा तो आता है ना, बाबा तो आता है ना। तो अव्यक्त होने का पुरूषार्थ नहीं करेंगे। इसलिए बाबा ने अब ये जो साकार मुलाकात, या साकार में अव्यक्त मुलाकात को बंद किया है, वो इसलिए कि बाबा चाहते हैं कि अब बच्चे अव्यक्त में अव्यक्त मिलन करें। और जितने इसके अभ्यासी हम बनेंगे उतना ही ये सहजता से अंतिम समय से पहले स्वयं को तैयार कर सकेंगे। इसलिए बाबा ने पहले 33 साल तो साकार में मिलन किया। यानी ब्रह्मा बाबा के द्वारा शिव बाबा का मिलन होता रहा। वो साकार में साकार मिलन था।
फिर उसके बाद जैसे ही ब्रह्मा बाबा अव्यक्त हुए तो साकार में अव्यक्त मिलन चला। 49 वर्ष साकार में अव्यक्त मिलन चला। और अब जो बाकी का समय है उसमें से एक है अव्यक्त से अव्यक्त का मिलन, और साथ ही साथ जो बाबा कहते निराकारी मिलन। तो अपने आप को, समय को देखते हुए तैयार करना है कि मुझे अपनी स्थिति किस तरह की बनानी है। मैं समय के इशारे में बाहर के समय की बात तो नहीं कहूंगी क्योंकि वो तो मेरे से आप ज्य़ादा अच्छे से जानते हैं कि बाहर समय के अन्दर क्या हो रहा है।
चाहे जो अंतिम समय के सारे नज़ारे कहो, जो बातें हैं वो तो प्रैक्टिकल में दिखाई दे रही हैं। लेकिन अब समय हमें क्या इशारा दे रहा है? समय के इशारे को अगर हमने नहीं समझा और अपनी स्थिति उस अनुसार नहीं बनाई तो उसके बाद तो भगवान भी कुछ नहीं कर सकता। इसलिए बाबा का आना बंद होना अब ये बाबा का इशारा है कि अब अव्यक्त में अव्यक्त मिलन करो। और फिर निराकार से निराकार मिलन करो। उसके लिए बाबा की मुरलियों में हम कई बार ये सुनते हैं कि बच्चे अभी ऐसा अभ्यास बढ़ाओ अपना, जो साकारी, आकारी, निराकारी, इसमें आना-जाना बहुत सहज हो जाये। उसके लिए जैसे बाबा हर अव्यक्त मुरली के बाद हम बच्चों को ड्रिल कराते हैं। ये ड्रिल क्यों कराते हैं? बाबा अभ्यास करा रहा है कि अंतिम समय में अगर ये अभ्यास होगा तो सहज ये अभ्यास खींचेगा। अभ्यास हमें उस स्थिति में खींचेगा। जिस तरह किसी व्यक्ति को कोई बात का अभ्यास होता है तो न चाहते हुए भी समय पर वो अभ्यास उसको खींच लेता है।
मिसाल के रूप में, जैसे दुनिया में आप देखते हो कि किसी को झूठ बोलने का बहुत अभ्यास होता है। बात-बात में झूठ बोलना है। तो जब समय आता है तो भी उसके अन्दर से कोई न कोई झूठ ही निकल जाता है। फिर अगर उसको याद दिलायें कि आपने ऐसा क्यों कहा सत्य बोल देते तो क्या होता! तो क्या कहते कि अगर झूठ बोला तो क्या हुआ? माना इतना झूठ बोलने का अभ्यास है उसको। तो वो अभ्यास बार-बार उसको खींचता है और उसी ट्रेंड में डाल देता है।
ठीक इसी तरह ही बाबा भी हम बच्चों को ये जो ड्रील कराते हैं और ये कहते हैं कि बच्चे एक सेकण्ड में अशरीरी हो जाओ, अभ्यास करो। क्योंकि अंतिम समय जो आयेगा, पेपर एक सेकण्ड का होगा और उस एक सेकण्ड के पेपर में ही अगर मुझे अशरीरी होने का अभ्यास होगा तो जैसे ही वो अंतिम घड़ी आयेगी तो हम सहज निराकारी होकर उड़ जायेंगे। और पास विद ऑनर हो जायेंगे। तो इसीलिए हमें ये अभ्यास डेवलप करना बहुत ज़रूरी है।
जैसे-जैसे समय आगे बढ़ता जाता है वैसे-वैसे हमारा अशरीरीपन का अभ्यास बढऩा चाहिए या कम होना चाहिए? बढऩा चाहिए ना। लेकिन हाँ दुनिया की परिस्थितियां भी ऐसी आ रही हैं जो क्या कर देती हैं? हिला देती हैं। और उस समय भूल जाते हैं कि अशरीरी होना है। तो स्मृति और विस्मृति का खेल होगा बस अंतिम समय।

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