माउंट आबू : ब्रह्माकुमारीज़ संस्थान के ज्ञान सरोवर में समाज सेवा प्रभाग द्वारा “समृद्ध एवं सशक्त समाज की कुंजी – अध्यात्म” विषय पर सम्मेलन संपन्न

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माउंट आबू-ज्ञान सरोवर,राजस्थान: गत 18 से 22 जुलाई, 2024 तक चले सम्मेलन में विभिन्न अध्यात्मिक विषयों पर चर्चा के तहत समाज में सशक्तिकरण के लिए आध्यात्मिक दृष्टिकोण के महत्व पर बल दिया गया। विभिन्न आध्यात्मिक विचारकों और विशेषज्ञों ने अपने अनुभवों और दृष्टिकोण को साझा किया, जिनसे समृद्ध और सशक्त समाज के लिए नए दिशानिर्देश उत्पन्न हुए। सम्मेलन के माध्यम से उपस्थित लोगों ने अपने आत्मिक और मानवीय विकास के लिए साझा की गई जानकारियों से लाभ उठाया। आध्यात्मिक ज्ञान को समाज में प्रसारित करने’ लोगों को समाज सेवा में सक्रिय रूप से शामिल होने की प्रेरणा मिली। जो समाज में सामूहिक संघर्षों के समाधान में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के साथ आध्यात्मिक दृष्टिकोण से समृद्ध समाज के निर्माण में मदद करते हैं।

स्वागत सत्र:-
स्वागत सत्र में प्रभाग के राष्ट्रीय संयोजक बी.के. अवतार भाई ने कहा कि हमारा समाज एक समय पर समृद्ध व सशक्त था, जहां आध्यात्मिकता, दिव्य संस्कृति का महत्व था। लेकिन कुरीतियों, विकारी प्रवृत्तियों ने समाज को प्रभावित कर उसे अधोगति में ला दिया। अब आध्यात्मिकता को फिर से अपनाकर समाज को सुधारने की आवश्यकता है। बिना आध्यात्मिक जागरूकता के समाज सुधार के प्रयास पूर्णतः सफल नहीं हो सकते।

राजयोग प्रशिक्षका बी के शिवलीला बहन ने कहा कि समृद्ध और सशक्त समाज का मतलब सिर्फ आर्थिक समृद्धता नहीं होना चाहिए, बल्कि सात्विकता को अपनाकर समाज में आदर्श प्रस्तुत करना है। राजयोग के अभ्यास द्वारा ही मन को सशक्त व स्वयं को समृद्ध बना कर समाज से उत्कृष्ट संबंध स्थापित कर सकते हैं।

सरजीव पटेल (चेयरमेन, इंदौर जूनियर चेम्बर चेरिटेबल ट्रस्ट) ने कहा कि भारत की पहचान सोने की चिड़िया की तरह है, जिसे हमें बनाए रखने की जिम्मेदारी है। आध्यात्मिकता ही समाज को वास्तविक रूप से सशक्त व समृद्ध बना सकती है। आध्यात्मिक विकास के बिना मानवता का सम्मान और समाज की स्थिति समय के साथ विघटित होती जा रही है। इसलिए, आध्यात्मिक बल व सजगता के बिना समाज को सुधारना असंभव होगा।

प्रभाग की चंडीगढ़ क्षेत्रीय संयोजिका बी.के. सुमन बहन ने कहा कि दुनिया के वर्तमान समय को देखते हुए समाज का सकारात्मक बदलाव जरूरी है। समाज सेवा के माध्यम से समाज को सशक्त, सम्पन्न व समृद्ध बनाया जा सकेगा।

प्रभाग की राष्ट्रीय अध्यक्षा राजयोगिनी संतोष दीदी ने कहा कि समाज सेवा के साथ-साथ आध्यात्मिकता को जोड़ने से धरती स्वर्ग बन सकती है। कर्मों से ही समाज का उत्थान व पतन होता है। हमें खुद को बदलकर दूसरों के लिए आदर्श बनना चाहिए। कर्मों से दूसरों को श्रेष्ठ बनाने, हिम्मत बढ़ाने की प्रेरणा दी जा सकेगी।  

मंच का संचालन बी के अंकिता बहन (अजमेर) ने किया। बी के नीलम बहन (श्रीनगर गढ़वाल) ने मेडिटेशन कमेंट्री के द्वारा योग कराया।

उदघाटन सत्र:-

उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत ने कहा कि ब्रह्माकुमारीज संस्थान के ईश्वरीय ज्ञान से लोग नए दृष्टिकोण से जीने की प्रेरणा पाते हैं। इस संस्थान के माध्यम से कई भाई-बहनों ने अपना जीवन समर्पित किया है। संस्थान सिखाता है कि समाज को सुधारने से पहले स्वयं का सुधार आवश्यक है। यहां सेवा करने वाले लोग बाहरी दुनिया के बुराइयों से प्रभाव मुक्त हैं।

संगठन की संयुक्त मुख्य प्रशासिका राजयोगिनी सुदेश दीदी ने कहा कि समाज सेवक समाज, विश्व और ईश्वरीय कार्यों में अपना जीवन समर्पित करते हैं। प्रत्येक समाज सेवक परमात्मा के बाग़ में चुने हुए एक फूल की तरह होते हैं, जो सकारात्मकता फैलाते हैं। आज समाज अनेक नकारात्मक आदतों के कारण दूषित हो रहा है। आत्मिक शक्ति की कमी के कारण लोग अपने जीवन में दुःखदायी आचरण में फंस जाते हैं। सच्चे आनंद के लिए आत्मिक शक्ति का अनुभव जरूरी है, परिवर्तन आत्मा से शुरू होता है। खुशी, दुःख, दर्द और भूख सब आत्मा अनुभव करती है। संस्कारों को बदलना जरूरी है। जैसे बर्तन में पानी भरने के लिए उसका ढक्कन खोलना पड़ता है, मानसिक प्रदूषण से बचने के लिए मन को शुद्ध रखना जरूरी है। अगर जीवन में अत्यधिक दुःख महसूस हो रहा है, तो इसका मतलब है कि हमने आत्मा को ठीक से नहीं समझा है। असली आत्मिक विकास व समाज सेवा का सही उपाय तब होता है जब हमारा संबंध परमात्मा से जुड़ता है।

महाराष्ट्र, अमरावती जेल अधीक्षक श्रीमती कीर्ति चिंतामणि ने कहा कि ब्रह्माकुमारीज के ज्ञान को टीवी पर सुनते ही हमेशा भावुक हो जाती थी। हमने शिवानी बहन को सुनकर सीखा कि संकल्प से सिद्धि मिलती है और इसलिए अपने हर काम को शुद्ध संकल्पों के साथ किया जाना चाहिए। हमने नकारात्मक परिस्थितियों में भी यह सोचा कि उन्हें लोगों से दुआएं मिलें। इसके लिए उन्होंने कारागार में बंदियों के मानसिक सुधार पर काम किया, जो केवल ब्रह्माकुमारी बहनों की प्रेरणा से संभव हुआ। उनका सौभाग्य रहा कि उन्हें स्वर्ग तुल्य ज्ञान सरोवर में आने का अवसर प्राप्त हुआ।

प्रभाग की अध्यक्षा बी.के. संतोष दीदी ने कहा कि आध्यात्मिकता से समृद्ध और सशक्त समाज कैसे बना सकता है, यह विषय बहुत महत्वपूर्ण है। आत्मबल होना जरूरी है समृद्धि के लिए। आध्यात्मिकता हमें यह सिखाती है कि अपनी कर्मेंद्रियों पर नियंत्रण रखने से ही हम सशक्त होते हैं। आज के मानव दूसरों पर अपनी स्वाधीनता थोपना चाहते हैं, लेकिन हमारी खुद की इन्द्रियां बहुमुखी होकर धोखा दे रही हैं। इसके लिए आंतरिक उन्मुखता और नियंत्रण की आवश्यकता है। आध्यात्मिकता हमें अच्छे और मर्यादित रूप से व्यवहार करने की शिक्षा देती है। यह सिखाती है कि हमें खुद को पहले देखना चाहिए, फिर दूसरों को। इससे हमारे जीवन में शांति और समृद्धि आती है।

समाज, आध्यात्मिकता और मूल्य विषय पर उद्घाटन सत्र में प्रभाग के उपाध्यक्ष बी.के. प्रेम भाई न कहा कि आमजन में यह धारणा है कि अध्यात्म हमारा विषय नहीं है। इतिहास के पन्नों को पलटकर देखने पर पाया गया है कि लोग सेवा के नाम पर धर्मशालाएँ, तालाब, विद्यालय बनाते रहे हैं, फिर भी समाज में दुःख बढ़ते गए, गरीबी बढ़ी। मनुष्य ने शास्त्र पुराण पढ़े, फिर भी चरित्र में गिरावट आई, नशा बढ़ा, अन्य अशुद्धियाँ बढ़ी। अब भी बीमारियां बढ़ रही हैं, जीवनशैली की बिगड़ती वजह से। ब्रह्माकुमारी संस्था ईश्वरीय मत पर सरल रीति से जीवन जीने की राह दिखाती है। इसकी विद्या से हम स्वयं को समझ सकते हैं, परमात्मा को जान सकते हैं। यहां ध्यान रखा जाता है कि आत्मा को गुणों से समृद्ध और चारित्रिक रूप से श्रेष्ठ बनाना है। इसलिए, सामाजिक परिवर्तन की जिम्मेदारी उठाने वालों को विरोधों का सामना करना पड़ता है, लेकिन धीरे-धीरे विरोध समाप्त होने से परिवर्तन की राह स्वतः ही आसान होती है।

प्रभाग की दिल्ली जोन की क्षेत्रीय संयोजिका बी के आशा बहन ने कहा कि आध्यात्मिकता का सार है स्वयं को जानना, अर्थात आत्मा को समझना, उसमें छिपी हुई शक्तियों को पहचान कर उसे उभारना। सभी के गुण व विशेषताओं को समझ कर उनसे व्यवहार करना। प्रेम, शांति और आनंद के सागर परमात्मा से संबंध जोड़कर उसी अनुरूप व्यवहार करना। आध्यात्मिकता सिखाती है कि परिवार में किसी का स्वभाव क्रोध का हो, तो उसके साथ भी प्रेम और शांति से व्यवहार करना चाहिए। जीवन में हमारे मूल्यों को सजाने से हमारा प्रभाव समाज में फैलेगा और एक दिन ऐसा आएगा जब समाज में न कोई भूखा होगा, न कोई बीमार होगा, न कोई अस्पताल होगा। आज हम जीवन के हर क्षेत्र में जीवन-मूल्यों की आवश्यकता महसूस करते हैं। यदि सारे गुण हमारे अन्दर होंगे तभी हम बेहतर समाज की कल्पना साकार कर सकेंगे।

प्रभाग के राष्ट्रीय संयोजक बी.के. अवतार भाई ने कहा कि समाज और सेवा एक दूसरे के पूरक हैं। सेवकों ने समाज में उसी प्रकार की सेवाओं का आविष्कार किया जो आवश्यक थी। परंपरागत मूल्यों के साथ समाज पूर्ण रूप से मूल्यनिष्ठ था। सभी गुणों का समावेश था, लेकिन धरातल पर कुत्सित विचारधाराओं के कारण नैतिक मूल्यों में गिरावट आई। इसे समाप्त करने के लिए आध्यात्मिक बल की आवश्यकता है।

मंच का संचालन प्रभाग की अतिरिक्त राष्ट्रीय संयोजिका बी के वंदना दीदी ने किया। कार्यक्रम के अंत में बी के सीता बहन ने मेडिटेशन कमेंट्री के माध्यम से योग कराया। मुख्यालय संयोजक बी के बीरेंद्र भाई ने कार्यक्रम में पधारे सभी भाई-बहनों, मेहमानों के प्रति धन्यवाद ज्ञापित किया।

व्याख्यान सत्र 1: 19 जुलाई 2024, सायं 04.30 बजे (विषय- अतीत से आजादी)

राजयोग प्रशिक्षिका बी.के. पूनम बहन ने कहा कि जैसे-जैसे महंगे मोबाइल का उपयोग सस्ती सी सिम के बिना अव्यावहारिक हो जाता है ठीक उसी प्रकार विशालकाय शरीर बिना आत्मा के बेकार है। इसलिए आत्मा को सशक्त बनाना बहुत ही आवश्यक है। उन्होंने कहा कि हमें अपने वर्तमान को स्वीकार करने की, बीती हुई बातों से मुक्त होने की आवश्यकता है। शिकायत करने की बजाय समस्याओं के समाधान करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। जीने के लिये हमारे पास केवल आज है लेकिन हम पुरानी घटनाएं, पुरानी बातें, पुराने सम्बन्ध और पुराने संस्कारों से परेशान हो रहे हैं। अपने वर्तमान को खुशी से जीने के लिये बीती हुई बातों पर पूर्ण विराम लगा देना चाहिये। जिसका स्वभाव सरल है, उसकी सब समस्याएं भी सरल हो जाती है ।

कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि कच्छ गुजरात से आए लाइफ स्किल्स डायनेमिक मेडिटेशन संस्थापक पंडित देवज्योति शर्मा ने कहा कि जो व्यक्ति ईश्वर में विश्वास रखता है, उसके लिए ईश्वर हमेशा हाजिर होते हैं। उन्हें लगता है कि यह संस्थान विश्व का सर्वश्रेष्ठ संस्थान है, जहाँ आध्यात्मिकता के माध्यम से मानसिक रूप से स्वस्थ बनाया जा सकता है। उन्होंने इसे उदाहरण से स्पष्ट किया कि यहाँ के ज्ञान और योग की विधि से व्यक्ति तनाव मुक्त होता है और मानसिक रोगों से मुक्ति पा सकता है। उन्हें ब्रह्माकुमारीज के ज्ञान सरोवर परिसर में
गहन शान्ति की अनुभूति हुई।

राजयोग प्रशिक्षिका बी.के. मीना बहन ने कहा कि हम सभी परमात्मा की कृपा से इस सभागार में एकत्र हुए हैं। उन्होंने मानव जीवन के तीन कालों के बारे में बताया – भूतकाल, वर्तमान और भविष्य। भूतकाल को याद करने की कोई वैल्यू नहीं होती, वह केवल एक कैंसल चेक होता है। हमें आगामी वक्त पर निर्भर रहने की बजाय वर्तमान को महत्व देना चाहिए।

राजयोग प्रशिक्षिका बी.के. तारा बहन ने कहा कि बीती बातों को भूलने के लिए हमें अपने मन को निर्मल और शुद्ध बनाना चाहिए। साफ मन वाले व्यक्ति हमेशा दूसरों में गुण देखते हैं और सभी को एक परिवार के रूप में देखते हैं।  जब हमारे में कल्याण और रहम की भावना होती है, तब हम किसी के अवगुणों पर ध्यान नहीं देते। परमात्मा के संग में रहकर ही मन साफ होता है  मेडिटेशन का महत्व भी बताया और कहा कि यह हमें परमात्मा के संग का अनुभव कराता है।

मंच संचालन मिर्जापुर से आई बी के बिंदु बहन ने किया। कार्यक्रम के अंत में सिरसा हरियाणा से आई राजयोग प्रशिक्षिका बी के प्रीती बहन ने मेडिटेशन कमेंट्री के द्वारा योग कराया।

खुला सत्र 1: 19 जुलाई 2024, सायं 06.15 बजे (विषय- समाज सेवा में नैतिक मूल्यों का समावेश)

खेल प्रभात के राष्ट्रीय संयोजक बीके मेहरचंद भाई ने कहा कि मानव जीवन प्रभू का दिया अनमोल उपहार है। इसकी शोभा मूल्यवान आध्यात्मिक गुणों में है। यदि जीवन में मूल्य नहीं होता, तो वह नीरस हो जाता है। नम्रता, शालीनता, सरलता, सच्चाई, सफाई, ईमानदारी, मधुरता, हर्षितमुखता, गुणग्राहकता जैसे अनेक गुण हैं। इन सभी गुणों का समाजिक कार्य में उपयोग किया जाए तो विश्वस्त रूप से वह कार्य सफल होता है।

मोटिवेशनल स्पीकर बी.के. गिरीश भाई ने कहा कि आजकल लोग साधन सम्पन्न होने के बावजूद भी अक्सर प्यार, सम्मान और अपनेपन की कमी महसूस करते हैं। मानसिक तनाव को दूर करने के लिए कई लोग गलत तरीके अपनाते हैं जैसे शराब पीना, सिगरेट सेवन या अन्य हानिकारक आदतें। समाज में इस तरह के मानसिक बीमारियों को समाप्त करने के लिए समाज सेवा की महत्वपूर्ण आवश्यकता है। यहाँ तक कि उन सेवाओं की भी जरूरत है जो तनाव, निराशा और घृणा जैसी मानसिक समस्याओं का समाधान कर सके। इसके लिए कोई भी व्यक्ति समाज सेवी बन सकता है, जरूरत है केवल उसके जीवन में समर्पण की। समाज की सेवा के लिए धन की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि बिना धन के भी हम समाज में खुशियाँ, आनंद और शांति बिखेर सकते हैं।

पुणे से आए जीवन प्रकाश योजना अध्यक्ष रमणलाल लूंकड़ ने अपने अनुभव को साझा करते हुए बताया कि उन्हें ब्रह्माकुमारीज के परिसर में आकर बहुत आश्चर्य हुआ। यहाँ के लोग अपनी-अपनी जिम्मेदारियों को समर्पित भाव से निभाते हैं और किसी भी प्रकार का निजी स्वार्थ उनमें नहीं दिखाई देता। उन्होंने ब्रह्माकुमारीज संस्था से राजयोग के विषय में महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त की, जिससे उन्हें यह अनुभव हुआ कि जीवन का आधार राजयोग होने पर हम अपने जीवन को श्रेष्ठ बना सकते हैं और समाज के नए निर्माण में अपना सहयोग दे सकते हैं। इससे स्पष्ट होता है कि राजयोग न केवल हमारे व्यक्तिगत जीवन को सकारात्मक बनाने में मदद करता है, बल्कि यह समाज के लिए भी एक महत्वपूर्ण योगदान हो सकता है।

संगठन के खेल प्रभाग के राष्ट्रीय संयोजक
बी.के. मेहर चंद भाई ने कहा कि केवल स्थूल सेवाएं करने से ही समाज को उसकी सच्ची उन्नति नहीं मिल सकती। उन्होंने सत्य ज्ञान की महत्वाकांक्षा और नैतिक मूल्यों के साथ सम्पन्नता की आवश्यकता पर भी जोर दिया। उन्होंने कहा कि कुछ संतों ने अपने पूर्व जीवन में दुःख और असफलता का सामना किया है, लेकिन उनके संत बनने के बाद उन्होंने समाज को सही राह दिखाने का काम किया है। इससे उन्होंने दर्शाया कि वास्तविक पुण्य का अधिकारी वही होता है जो अपने जीवन में दिव्यता, गुणों और मूल्यों से भरपूर होता है।

मंच संचालन राजयोग प्रशिक्षिका बी. के. सरिता बहन (पश्चिम विहार, दिल्ली) ने किया।

व्याख्यान सत्र 2: 20 जुलाई 2024, प्रातः 10.00 बजे (विषय- संकट में संयम)

भोपाल, समाज सेवा प्रभाग जोनल कोऑर्डिनेटर बी.के. शैलजा बहन ने कहा कि समाज में स्थिरता और सशक्तता के लिए हमें अपनी आत्मा की शक्तियों को जागृत करने की आवश्यकता होती है। उन्होंने स्पष्ट किया कि आंतरिक शांति और ईश्वरीय ज्ञान के माध्यम से ही हम समाज की सेवा कर सकते हैं और समस्याओं का समाधान ढूंढ सकते हैं। जीवन में अनिश्चितता और अस्थिरता के समय में भी हमें आत्मनिर्भर बनना चाहिए। शक्तिशाली, स्थिर बनने के लिए राजयोग व आत्मज्ञान का अभ्यास अत्यंत महत्वपूर्ण है। इससे हम समस्याओं का समाधान करने में समर्थ होते हैं और समाज में अपना योगदान दे सकते हैं।

दृष्टि उत्थान ट्रस्ट संस्थापक श्रीमती शालू दुग्गल जी ने कहा कि विचार में संकट के समय में शांति प्राप्त करने की महत्वपूर्ण बातें यहाँ सीखने को मिलती हैं। उन्होंने बच्चों का एक उदाहरण देकर समझाया कि जब उन्हें एबीसीडी पढ़ना सिखाया जाता है, तो वह इसे खुशी-खुशी करते हैं। उसी तरह, जीवन में भी हमें आत्मनिर्भर और आंतरिक शक्तियों से युक्त होने की आवश्यकता है, जिससे हम संकटों का सामना कर सकें। ईश्वरीय ज्ञान, सरल राजयोग के माध्यम से हम अपनी आत्मा को शांत करके संकटों का सामना कर सकते हैं। यह ज्ञान हमें शांति, समर्थता और संघर्ष के समय में सही दिशा देने में मदद करता है। संकट के समय हमें दूसरों पर दोष नहीं देना चाहिए, बल्कि आत्मनिर्भरता व सहयोग की भावना से समस्याओं का सामना करना चाहिए।

कच्छ गुजरात समाज सेवा प्रभाव के क्षेत्रीय संयोजक बी के बाबू भाई कच्छ गुजरात ने कहा कि हमारे जीवन में अनेक संकटों रूपी तूफान आते हैं। लेकिन परमात्मा की याद से अर्जित आत्मबल से उनको दूर किया जा सकता है । समाज सेवा के लिये भी हमारे मन में यह भाव अवश्य होना चाहिये कि एक समाज सेवक कल्याणकारी होता है, निःस्वार्थी होता है, वह परमात्मा का प्रतिनिधि है। इस दृष्टि से एक समाज सेवक अपनी जिम्मेदारियों को सरलता से निभा सकता है।

दिल्ली अखिल भारतीय रचनात्मक समाज के राष्ट्रीय अध्यक्ष विभूति कुमार मिश्रा ने जीवन के सुख-दुःख के महत्व को समझाया व संकट के समय में धैर्य और सत्य के महत्व को उजागर किया है। हर किसी को संकटों से निपटने के लिए सकारात्मक विचार और सत्य के पालन की आवश्यकता होती है। समाज सेवक होना आसान नहीं है, क्योंकि उन्हें संकटों का सामना करना पड़ता है और इस समय में धैर्य बनाए रखने की आवश्यकता होती है।

डॉ. प्रेम मसंद ने कहा कि आत्म-जागरूकता के बिना हम संकटों से नहीं उभर सकते। उन्होंने चिकित्सा विज्ञान के माध्यम से युवावस्था में होने वाले मानसिक संकट के ऊपर तथा उनसे होने वाले नुकसान पर भी जानकारी दी। उन्होंने जीवन में विवेक को जागरूक रखने की महत्वपूर्णता और संकट के समय में सफलता के अवसर तलाशने की जरूरत को उजागर किया।  

मंच का संचालन चरखी दादरी, हरियाणा से पधारे सुनील भाई ने किया तथा ओ आर सी दिल्ली से आये बी के दीपेश भाई ने सभी का धन्यवाद ज्ञापन किया।

खुला सत्र 2: 20 जुलाई 2024, सायं 04.30 बजे (विषय- समाज की समृद्धि में अध्यात्म की भूमिका)

मोटिवेशनल स्पीकर बी के गिरीश भाई ने कहा कि धर्म और अध्यात्म का मुख्य उद्देश्य मानवता को एकजुट करना है, न कि उसे विभाजित करना। रोग या बुराई का कोई धर्म नहीं होता, बल्कि हमने अच्छी चीजों को धर्म में बांट दिया है। आविष्कार मानव जीवन को सुगम बनाने का उद्देश्य रखते हैं। आध्यात्मिकता के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण भी अत्यधिक आवश्यक है। आध्यात्मिकता का मुख्य उद्देश्य मानव जीवन को शांति, प्रेम, सुख की दिशा में ले जाना है। धर्म और विज्ञान को मिलाकर सकारात्मक दृष्टिकोण से आध्यात्मिकता को अपनाकर, हम समृद्ध और संतुलित समाज की दिशा में अग्रसर हो सकते हैं।

समाजसेवी अर्चना मेंहदीरत्ता (चण्डीगढ़) ने कहा कि हर व्यक्ति चाहे तो समाज सेवा कर सकता है लेकिन मन में जोश और जुनून जगाना पड़ता है। ब्रह्माकुमारीज संस्थान मानव जीवन में नैतिक मूल्यों को जागृत करने की बहुमूल्य समाज सेवा कर रहा है जिनका योगदान अतुलनीय है।

ट्रांस यूनियन सीआईबीआईएल लिमिटेड के
डिप्टी वाइस प्रेसिडेंट पीयूष धोका (मुम्बई) ने कहा कि ब्रह्माकुमारीज संस्थान के प्रांगण में प्रवेश करने के बाद अनेक आध्यात्मिक अनुभव होने लगते हैं। इस संस्थान से जो आध्यात्मिकता की प्यास पूरी होती है, उससे हमारी जीवन यात्रा बहुत ही सुखद हो जाती है । संसार के दूषित वातावरण में शांतिपूर्वक कार्य करना अत्यन्त ही चुनौतीपूर्ण है लेकिन जब अध्यात्म का संग हो तो यह सरल हो जाता है। राजयोग ही एक ऐसा साधन है जो हमारा परमात्मा से सम्बन्ध जोड़कर हमें सर्व शक्तियों से भरपूर करता है।

रोटरी इंटरनेशनल असिस्टेंट गवर्नर बी.के. राकेश भाई (इंदौर) ने कहा कि एक समाजसेवी दुनिया को बेहतर बनाने में यथा सम्भव अपना योगदान देता है और इस कार्य में परमात्मा अवश्य उसकी मदद करता है । यदि आध्यात्म को अपनाकर परमात्मा से सम्बन्ध जोड़ लिया जाता है तो धीरे धीरे संस्कारों का शुद्धिकरण होने लगता है। शुद्ध संस्कारों के साथ समाज सेवा करने से और अधिक बेहतर परिणाम मिलते हैं। इसलिये समाज को समृद्ध बनाने के लिये जीवन में अध्यात्म का बहुत महत्व है।

प्रभाग की अतिरिक्त राष्ट्रीय संयोजिका बी के वंदना दीदी ने कहा कि आज का इंसान अपने जीवन में धन कमाने के पीछे अपना अनमोल समय गंवा रहा है। उस धन का उपयोग वह स्वयं इतना नहीं कर पाता है जितना उनके परिजन करते हैं। जिस धन को हम कमा कर उनका सुख न भोग सके, वह धन व्यर्थ है । वास्तविक धन है दिव्य गुणों का धन, नैतिक मूल्यों का धन जिससे सम्पन्न बनकर आत्मा अपना जीवन अधिक श्रेष्ठ और मूल्यवान बना सकती है । इसके लिये प्रतिदिन राजयोग का अभ्यास आवश्यक है।

समापन सत्र: 20 जुलाई 2024, सायं 06.15 बजे (विषय- समाज सेवा एवं समर्पण भाव)

प्रभाग के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बी के प्रेम भाई ने अपने वक्तव्य में कहा कि समाज सेवा वैश्विक होती है। यह व्यक्ति को समाज परिवर्तक और समाज सुधारक बनाता है।समाज सुधार का मुख्य उद्देश्य समाज की विकृतियों में सुधार लाना होता है, जिसमें सेवा का कार्य मानवीय और ईश्वरीय प्रेरणा से किया जाता है।  वास्तविक समाज सुधार में व्यक्ति का महत्वपूर्ण योगदान होता है। जब व्यक्ति स्वयं सुधरता है तो समाज भी स्वतः ही सुधरता है। ऐसे तो सेवाओं की सीमायें निर्धारित है लेकिन ईश्वरीय प्रेरणा से की गई सेवा सम्पूर्ण विश्व तक अपना प्रभाव छोड़ती है। आत्मशुद्धि की धारणा से व्यक्ति स्वयं लाभान्वित होता है और उसके साथ-साथ समाज भी लाभान्वित होता है।

रोटरी इंटरनेशनल के पूर्व असिस्टेंट गवर्नर कृष्णा गम्भीर (करनाल) ने कहा कि ज्ञान सरोवर के प्रांगण में प्रवेश करते ही एक अलौकिक ऊर्जा का आभास होता है। यहां आकर लगता है जैसे कि खुशियों की लहरें चल रही हैं। यहां कोई भी अपनी खुशियों को समेटता नहीं बल्कि बिखेरता है। मुस्कुराहटें सबके चेहरों पर नजर आती है। सकारात्मक ऊर्जा का आदान-प्रदान होता है। मुझे यहां आकर ऐसा महसूस हुआ कि हमें अब सही मार्ग मिल गया है। एक बेहतर जीवन जीने के लिये ईश्वरीय ज्ञान बहुत महत्वपूर्ण है। जीवन में कुछ भी आसान नहीं होता लेकिन प्रयास और अभ्यास उसे सरल बनाता है। ब्रह्माकुमारीज के इस प्रांगण में आकर ऐसा लगता है जैसे हम स्वर्ग में आ गये। जीवन एक बहता पानी है जो लौटकर नहीं आता है। यदि आज हमें सही मार्ग मिल गया है तो अपने अन्धकारमय अतीत को कोसने के बदले अपने उज्ज्वल भविष्य की ओर कदम बढ़ाने चाहिये।

प्रभाग के कार्यकारी सदस्य बी के. लक्ष्मीचन्द भाई रुड़की ने कहा कि समाज सेवा के लिये समर्पण भाव आवश्यक है लेकिन किसके प्रति समर्पण आवश्यक है यह जानकारी होना आवश्यक है। हम कोई भी सेवा करते हैं, वह परमात्मा के प्रति समर्पण करना चाहिये। सबसे मुख्य समर्पण भाव है स्वयं को आत्मा समझना। जब हम स्वयं को आत्मा समझ कर परमात्मा के प्रति समर्पित भाव जागृत करते हैं तो हर कार्य सम्भव हो जाता है। किसी भी कार्य की सफलता का आधार संकल्प शक्ति है । हमारा प्रत्येक संकल्प वाइब्रेशन के रूप में प्रकृति में फैलता है । सकारात्मक संकल्प प्रकृति में फैलकर वैसा ही वातावरण हमारे चारों तरफ बनाता है। जब हम मुस्कुराते हैं तो प्रकृति भी मुस्कुराती है। यह भी समाज सेवा का अभिन्न अंग है। जो संकल्प हम बार बार करते हैं, वह हमारा अवचेतन मन ग्रहण कर लेता है और वैसा ही वातावरण का निर्माण करना प्रारम्भ कर देता है। इसलिये यह ध्यान रखना आवश्यक है कि हमें नकारात्मक संकल्प नहीं करना चाहिये । सकारात्मक संकल्पों से पूरे ब्रह्माण्ड की सकारात्मक ऊर्जा हमारी ओर प्रवाहित होने लगती है। इसलिये हम कोई भी प्रकार की समाज सेवा करते हैं तो सर्वप्रथम स्वयं को आत्मा समझ कर परमात्मा के प्रति अपना समर्पण भाव प्रकट करना चाहिये ।  

प्रभाग के सदस्य बी.के राजेन्द्र भाई (मुम्बई) ने कहा कि सभी के जीवन में चुनौतियां आती है लेकिन जब से मैंने ईश्वरीय ज्ञान सुनना और धारण करना प्रारम्भ किया, तब से मुझे कोई भी चुनौती प्रभावित नहीं करती। राजयोग ने मेरे जीवन और दिनचर्या को पूर्ण रूप से बदल दिया है।

शिक्षा प्रभाग की उपाध्यक्ष बी.के. शीलू दीदी ने कहा कि समाज सेवा समर्पण भाव के बिना असंभव है। समर्पण भाव बहुत ऊँचा गुण है। ब्रह्माकुमारीज संस्थान का हर सेवाधारी समर्पण भाव से सेवा करता है। यहां हर सेवाधारी ईश्वरीय सेवाधारी है। यहां बर्तन साफ करने वाले से लेकर भाषण करने वाला हर व्यक्ति ईश्वरीय सेवाधारी ही कहलाता है। हाथ की प्रत्येक अंगूली में एक समान बल नहीं होता लेकिन जब वे आपस में मिल जाती है तो सभी अंगुलियों में एक समान बल आ जाता है। यही एकता समाज के लिये भी आवश्यक है। समाज सेवक के मन में दया भाव के साथ साथ देने की भावना होनी चाहिये। किसी मंदिर के निर्माण हेतु लोग दान देते हैं, लेकिन यदि समाज के उत्थान के लिये अपने विकारों का दान दे दिया जाये तो समाज को श्रेष्ठ बनाने में बहुत महान योगदान दिया जा सकता है।

कार्यक्रम के अंत में वरिष्ठ राजयोगी प्रशिक्षक बी.के.सूर्य भाई ने प्रश्न-उत्तर सत्र में सम्मेलन सहभागियों के प्रश्नो का समाधान किया। अमरावती से आये कल्चरल ग्रुप ने अपने नृत्य-नाटिका के माध्यम से गीता के भगवान को स्पष्ट किया।  

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