आप, हम सभी को एक बार अपने मन की ओर नज़र दौड़ानी है और नज़र दौड़ाकर ये देखना है कि हम सबका जीवन क्या प्रामाणिक है, ऑथेंटिक है, माना रियल है, कहीं हम दोहरी जि़ंदगी तो नहीं जीते? दोहरी जि़ंदगी का मतलब है – जैसे कोई भी कर्म हम जो करते हैं उस कर्म में और हमारे अन्दर की भावना है दोनों में देखो कितना अन्तर है। अगर कर्म में दोहरापन नहीं है तो हमारे बंधन बंध ही नहीं सकते। उदाहरण के लिए हम सभी कोई भी जो कर्म कर रहे हैं उस कर्म में सबकुछ औपचारिक है, फॉर्मल है, एकदम कैजुअल है। उदाहरण के लिए जब आप सुबह-सुबह घर से बाहर निकलो और बाहर आपको ऐसे ही किसी को देखकर अच्छा लगे या सामने कोई व्यक्ति ऐसा मिल जाये, आपने उसको नमस्ते कर लिया, या उसके साथ थोड़ी बातचीत कर ली और बाद में कहा कि आपसे मिलकर बड़ी खुशी हुई। लेकिन जैसे ही वो व्यक्ति आपसे थोड़ा-सा भी दूर नहीं गया होगा कि हमारे मन में दूसरी बात आई कि सुबह-सुबह इसी का चेहरा देखना था!
ऐसे ही दिनभर के जो टास्क हैं हमारे, चाहे वो ज्ञानी है, चाहे अज्ञानी है, चाहे वो धर्म का मर्म जानने वाला है, चाहे साधारण है, चाहे श्रेष्ठ है, सबकी जीवन में बंधन का एक ही कारण है, वो है जीवन का ऑथेंटिक या रियल न होना का मतलब है- ना हमने रियल किसी से प्रेम किया, न ही रियल घृणा की। और न ही रियल में हमने किसी के साथ कुछ क्षमा भी किया। मान्यता सिर्फ इतनी है, समझदारी इतनी है कि हम सब जीवन में क्यों नहीं आगे बढ़ पा रहे हैं, क्योंकि जीवन में हर चीज़ औपचारिक है, फॉर्मल है। तो ये औपचारिक और फॉर्मल चीज़ को अगर आपको हटाना है, जीवन को प्रामाणिक बनाना है तो सबसे पहले अपने आपको रियलिटी में ले आयें। वास्तविकता में ले आयें। क्या सचमुच मैं इसको नमस्ते कर रहा हूँ? एक उदाहरण है, बहुत अच्छा धन्ना सेठ का। एक बार धन्ना सेठ मार्केट से गुज़र रहे थे। उनको हर कोई कहता नमस्ते धन्ना सेठ। तो वो कहते, हाँ जी कह देंगे। फिर आगे बढ़े थोड़ा तो फिर किसी ने कहा कि नमस्ते धन्ना सेठ, तो कहते कि हाँ जी उसको हम कह देंगे। फिर ऐसे ही तीन-चार और जन गुज़रे तो उन सबको भी धन्ना सेठ ने यही बोला कि हाँ उसको हम कह देंगे। तो एक व्यक्ति ये सारी बातें सुन रहा था धन्ना सेठ की और जब धन्ना सेठ और वो दोनों दुकान पर पहुंचे, क्योंकि वो बड़े व्यापारी थे, बहुत बड़े सेठ थे तो कहा जाता है कि जब वो व्यक्ति पहुंचा तो उसने कहा कि जब आपको कोई नमस्ते कर रहा था तो आप बार-बार ये क्यों कह रहे थे कि मैं उससे कह दूंगा। तो उन्होंने अपनी तिजौरी खोली उस व्यक्ति के सामने और तिजौरी को खोलकर कहा कि वो मेरे को नमस्ते नहीं कर रहे थे इस तिजौरी को नमस्ते कर रहे थे। इसीलिए हमने कहा कि हम उसको कह देंगे। तो ये हम सबकी भी कहानी है। हम सबको कोई रियल नमस्ते नहीं कर रहा है। फॉर्मल नमस्ते कर रहा है। चाहे वो पद को नमस्ते कर रहा है। चाहे किसी प्रतिष्ठा को नमस्ते कर रहा है तो ये आत्मा को नमस्ते नहीं कर रहा है। आत्मा को प्यार नहीं कर रहा है। आत्मा के साथ क्षमा और दया की भावना नहीं है। इसीलिए दया दृष्टि के लिए जैसे दुनिया में कहा जाता है ना कि किसी के साथ जीवन जीया, प्यार किया तो मर मिटे, या किसी भी चीज़ के लिए कहा कि पूरी तरह से उनके साथ गुस्सा किया तो शूट कर दिया, मार दिया। लेकिन कुछ भी हमारा सबकुछ औपचारिक है, माना फॉर्मल है। तो आप सोचो जीवन कैसे अच्छा अनुभव होगा। क्योंकि जीवन में तो दो पहलू चल रहे हैं ना।
इसलिए दो पहलू के कारण ही हम सबका जीवन आज खुशनुमा पूरी तरह से नहीं है। खुशनुमा जीवन के लिए सच में एकज जि़ंदगी जियो, पॉवरफुल जि़ंदगी जियो। उस जि़ंदगी में मिलावट न हो। मिश्रण न हो। तब देखो जीवन का मज़ा कितना अच्छा आता है।