एक शिक्षक कक्षा में पढ़ा रहे थे। तभी एक छात्र ने उनसे सवाल पूछा यदि हम कुछ नया और कुछ अच्छा करना चाहें, परंतु समाज उसका विरोध करे तो हमें क्या करना चाहिए? शिक्षक ने थोड़ी देर कुछ सोचा और बोले बालक में इस प्रश्न का उत्तर कल दूंगा।
अगले दिन शिक्षक सभी छात्रों को नदी तट पर ले गए। उनके हाथ में तीन डंडियां थीं। उन्होंने छात्रों से कहा आज हम एक प्रयोग करेंगे और मछली पकडऩे वाली इन तीन डंडियों को देखो और सभी डंडियां एक ही लकड़ी से बनी हैं।
इसके बाद शिक्षक ने कल वाले छात्र को बुलाया जिसने उनसे सवाल पूछा था। शिक्षक ने छात्र से कहा ये लो इस लकड़ी की डंडी से मछली पकड़ो। तभी छात्र ने डंडी से बंधे कांटे में थोड़ा आटा लगाया और वह कांटा पानी में डाल दिया। कुछ देर बाद में ही एक बड़ी मछली कांटे में फंस गई और यह देख शिक्षक बोले बालक जल्दी से अपनी पूरी ताकत से मछली को बाहर की ओर खींचो।
छात्र ने, शिक्षक ने जैसा कहा वैसा ही किया पर मछली भी अपनी पूरी ताकत से भागने की कोशिश करने लगी जिससे वह डंडी दो टुकड़ों में टूट गई। यह देख शिक्षक छात्र से बोले कोई बात नहीं बालक तुम ये दूसरी डंडी लो और फिर से प्रयास करो। छात्र ने फिर दूसरे डंडी के कांटे पर थोड़ा आटा लगाकर कांटा पानी में डाला।
अब इस बार मछली वापस कांटे में फंसी तभी शिक्षक बोले आराम से और एकदम हल्के हाथ से कांटे को पानी से ऊपर खींचो। छात्र ने ऐसा ही किया पर मछली ने इतनी ज़ोर से झटका दिया कि वह डंडी ही छात्र के हाथ से छूट गई। तभी शिक्षक ने तीसरी डंडी छात्र के हाथ में थमाते हुए कहा एक बार फिर से तुम प्रयत्न करो। पर इस बार तुम ना अधिक ज़ोर लगाना और ना ही कम। जितनी शक्ति से कांटे में अटकी मछली खुद को पानी के अंदर की ओर खींचे तुम उतनी ही ताकत से लकड़ी की डंडी को भी बाहर की ओर खींचना और फिर देखना कुछ ही देर में मछली ताकत लगाने से खुद ही थक जाएगी और तब तुम आसानी से उसे बाहर निकाल सकते हो। छात्र ने वैसा ही किया और इस बार मछली पकड़ में आ गई।
छात्र गुरू का संकेत समझ गया कि हम जब भी कुछ अच्छा काम करते हैं तब यह समाज उसका तिरस्कार या नकारता ज़रूर है इसीलिए हमें उनको नकारते हुए अपने काम और लक्ष्य की ओर बढ़ते रहना चाहिए।