अपने पास खज़ाने का सिर्फ उपयोग करना ही नहीं किन्तु उचित समय पर, उचित खज़ाने को यूज़ करने की कला आ जाये तो हम कैसी भी चुनौतियों को अवसर में बदल कर सफल हो सकते हैं। उसके लिए हमें हर वक्त उसे धारदार बनाना है जैसे किसी औज़ार को धारदार बनाया जाता है ना!
बाबा ने प्रतिदिन हम बच्चों को ज्ञान मुरलियों में अनेक रूप से चुनौतियां क्या-क्या आयेंगी,समय अनुसार उसके लिए भी सावधान किया है और कैसे उन चुनौतियों को पार करना चाहिए, उसके उपाय क्या हैं, ये उपाय भी हमें मुरलियों में स्पष्ट बताये हैं। लेकिन फिर भी वर्तमान समय के हिसाब से अगर देखा जाये तो समय बहुत तीव्रगति से आगे बढ़ रहा है। इसीलिए अंतिम समय की ओर… जैसे ये समय भाग रहा है ऐसे अनेक आत्माओं के अंतिम हिसाब-किताब भी समय से पहले खत्म होने ही चाहिए। तो इसीलिए बाबा ने हमको पहले से सावधान किया था कि क्रबच्चे चारों ओर से पेपर आयेंगेञ्ज और वो चारों ओर से जो पेपर आयेंगे यही पेपर तो चुनौतियां हैं। कभी कौन-सी चुनौती सामने आयेगी, कभी कौन-सी चुनौती सामने आयेगी। इन चुनौतियों के आधार से हमें उसको पार करने की विधि जो बाबा ने बताई है, मैं विशेष उन पर अटेन्शन खींचवाऊँगी क्योंकि ये तो ज़रूर है कि समय के हिसाब से हर एक की चुनौती तो अपनी-अपनी होती है। उन चुनौतियों के विस्तार में अगर हम जायेंगे तो चुनौतियों की कभी समाप्ति होनी नहीं है। किसी के पास शारीरिक हिसाब की चुनौती आती है, किसी के पास वर्तमान समय में धन की चुनौती आती है। किसी के पास मन की चुनौती आती है। क्योंकि आज मानसिक परेशानियाँ इतनी बढ़ती जा रही हैं। कई प्रकार की बीमारियाँ और वो भी खास करके मानसिक तौर की बीमारियाँ।
चाहे तन हो, मन हो, धन हो, तीनों से अलग-अलग। इसी तरह समय की अपनी चुनौती होती है, परिस्थितियों की अपनी चुनौती होती है तो इसलिए ज्ञान का प्रैक्टिकल एप्लीकेशन, जहाँ पर जो ज्ञान की बातें विशेष रूप से यूज़ कर सकें, उल्टा न कर दें। कभी किसी के घर में किसी व्यक्ति की टांग टूट जाये और हम कह दें कि ड्रामा बहुत कल्याणकारी है तो उल्टा हो जायेगा ना! इसे हम अंदर में ही समझ सकते हैं कि इसमें ज़रूर कोई कल्याण समाया होगा। और इसी भाव को लिए हुए उसकी प्यार से सेवा करें। उस सेवा से उनका हृदय पिघल सकता है। और वो बाबा कि ओर आगे आयेगा। बाकी अगर उसके मँुह पर ही कह दें कि आपकी टांग टूटी इसमें बहुत कल्याण है तो ज्ञान सुनने वाला होगा तो भी क्या कहेगा? आपका ज्ञान ऐसा है जो सहानुभूति के बजाय और ही किसी को चोट पहुँचाये! भावार्थ ये है कि उस समय उसको आत्मरूप में देख करके आत्मा के प्रति सबसे बड़ी सम्पति जो बाबा कहते हैं जो आपके पास है, वो सम्पत्ति है सहानुभूति की। उस समय उस आत्मा की प्यार से सेवा करें तो कई प्रकार के जो बंधन हैं वो समाप्त हो जायेंगे और सरलता से उनके मन में भी ये भावना जागृत होगी, जिससे वो भी पिघल जायें और देखने वाले भी पिघल जायें। इतनी सेवा तो इस दुनिया के अन्दर और कोई नहीं कर सकते। ये ब्रह्माकुमारियों का ज्ञान जो है, दिल की सेवा की भावना को जागृत करता है। तो जब आत्मिक रूप से देखेंगे, उसकी सेवा करेंगे तो कई प्रकार के बन्धन धीरे-धीरे समाप्त होते जायेंगे, क्योंकि आने वाले समय में हो सकता है यही बंधन यदि विकराल रूप लेगा तो बहुत बड़े विघ्न या चुनौती आपके सामने होगी।
इसलिए प्यार से, आत्मिक भावना से, आत्मिक वृत्ति से उसको देखते हुए, शुभभावना-शुभकामना प्रवाहित करते हुए, नि:स्वार्थ भाव, बिना किसी अपेक्षा के हम सेवा करें और फिर उसका रिज़ल्ट देखो। इसी तरह जीवन के अन्दर कोई साइडसीन आ जाये लेकिन वो साईडसीन हमें चुनौती महसूस हो रही हो, ऐसे समय पर ड्रामा का ज्ञान यूज़ करो कि ये भी ड्रामा का एक हिस्सा है। और उसको समझते हुए- इसमें भी कोई कल्याण समाया हुआ है
कर्म सिद्धान्त को समझो कि ये अन्तिम समय के हिसाब चुक्तु हो रहे हैं। और हमें हल्के हो जाना है। अशरीरी पन का अभ्यास करते हुए जितना सहजता से, सरलता से। वो कर्म का हिसाब चुक्तु हो उतना अच्छा है। ये क्यों ऐसा कर रहा है? ये क्यों करता है ऐसा? ऐसा नहीं होना चाहिए। बाबा कहें क्वेशचन नहीं। फूल स्टाप। फूल स्टाप लगाना आना चाहिए। ये समाधान की विधि है। तो इसलिए कहाँ-कहाँ आत्मभिमानी स्थिति काम करती है। कहाँ ड्रामा का ज्ञान काम करता है। तो कहाँ पर हमें बिन्दु लगाना ये समझ, येे मेच्युरिटी हमारे अन्दर ले आती है। तो बिन्दु लगाओ। और बिन्दु लगाकर शान्त हो जाओ, धैर्यता से उस चुनौती को पार करो। गंभीर होकर उस चुनौती को पार करो। बिन्द़ु लगाने के बाद क्वेशचन मार्क वाला टेढ़ा रास्ता नहीं अपनाना चाहिए। ये क्यों हुआ? क्या हुआ? कैसे हुआ? कहाँ हुआ? कब हुआ? क्यों किया उसने ऐसा? ये रास्ता नहीं अपनाओ। बाबा ने कहा कि ये और ही अन्दर उलझन क्रियेट करेगी। और हमारे मन को अस्थिर कर देगा। विचलित कर देगा। चुनौती के समय अगर विचलित हो गया – मन। तो और भी चुनौती कॉम्पिलिकेटेड स्वरूप धारण कर लेती है। इसलिए बिन्दी लगाओ और आगे बढ़ो। बिन्दी लगाओ शांत रहो, गंभीर मूर्त बनो, धैर्यता को अपनाओ समय को अपना कार्य करने दो। मैं ही सब ठीक कर दँू ये नहीं होता है। इसलिए बिन्दु लगाओ, बिन्दु बनो और बिन्दु बाप को याद करो। ये बहुत सुन्दर विधि है। दूसरी विधि है – बाबा ने हम बच्चों को एक बहुत सुन्दर खज़ाना दिया है। और वो खज़ाना है – सर्वशक्तिवान की सर्व शक्तियों का खज़ाना। गुणों का खज़ाना हमें प्राप्त है। बाबा की एक मुरली मुझे याद आती है कि चुनौती के वक्त अगर सही शक्ति का प्रयोग किया गया तो अष्ट की माला में आ जायेंगे। यानि क्रपासविद् ऑनरञ्ज हो जायेगे। इसलिए सर्वशक्तिमान का सर्वशक्तियों का खज़ाना हमें मिला है। अब जो प्रॉबलम हमें आती है जो चुनौती हमें आती है। उस समय कौन सी शक्ति का प्रयोग करना है। कहाँ सहन शक्ति का प्रयोग करना है। कहाँ समाने की शक्ति का प्रयोग करना है। और उसका प्रयोग करते हुए हम सहजता से, उसको पार करें। जो कहावत है कि साँप भी मर जाये और लाठी भी न टुटे। इस तरह उस शक्ति का प्रयोग करते हुए, शक्ति स्वरूप बने। बाबा ने कहा है – बच्चे आप सभी को भुजाओं में, अष्ट अस्त्र-शस्त्र मिले हैं शक्तियों के रूप में। उसी का तो गायन पूजन हो रहा है। जो चुनौती जो प्रॉबलम आपके सामने आती है तो उस समय पहले 2 मिनट साइलेंस में रहकर के सोचो कि कौन सी शक्ति का मुझे प्रयोग करना है। और एैसे समय पर उस शक्ति को इमजऱ् करो या आह्वान करो। बाबा ने ये भी हम बच्चों को गारटी दी है – बच्चे जब ये आप बाबा को कहेंगे, बाबा आज मुझे इस शक्ति का प्रयोग करना है तो हुजुर भी हाजिर हो जायेंगे उस शक्ति के साथ। सर्वशक्तिमान बाबा आपके मदद के लिए हाजि़र हो जायेंगे। आह्वाहन तो करो। क्योंकि हम अपने मन का साइलेन्स में नहीं ले जाते और सोचते नहीं है कि इस समय कौन सी शक्ति का प्रयोग करना है। तो हम गलत ज़गह पर गलत बातों का प्रयोग कर लेते हैं जिससे वो चुनौती और विकराल रूप धारण कर लेती है। तो इसलिए बाबा कहें थोड़ा तत्काल रिएक्टिव होने के बजाय। तत्काल रियेक्शन में आने के बजाय। थोड़ा शान्ति से सोचो कि इस समय मुझे कौन सी शक्ति का आह्वान करना है। और आप बाबा को याद करके उस शक्ति का आह्वाहन करो। वो आयेगा। लेकिन होता क्या है? वहाँ शक्ति का प्रयोग करने के बजाय कोई-कोई न कमजोरी ज़रूर घुस जाती है। और उसका प्रयोग हो जाता है। और उसमें भी खास करके किसका प्रयोग हो जाता है? घुस्सा आ जाता है। अब घुस्सा आ गया और घुस्से का प्रयोग हो गया तो वो चुनौती बड़ा स्वरूप लेगी या कम होगा? बड़ा स्वरूप धारण कर लेती है। फिर उसको हैडल करना बहुत मुश्किल होगा। फिर उसको पार करना बहुत मुश्किल होगा। कई बार बाबा के बच्चे मधुबन में भी आते हैं। कई बार हम उनको पूछते हैं बाबा के पास आये हैं तो बाबा को गिफ्ट देकर जा रहे हैं? तो क्या कहते हैं? हाँ यहाँ हम आज से ये हमारी कमज़ोरी दान करके जा रहे हैं। कमज़ोरी दान करके जाते हैं बाबा कहते हैं बच्चे किचड़ा मुझे दे दो। तो हमने बाबा लिखकर सारा किचड़ा दान कर दिया। करते हैं ना ऐसा कई लोग? लेकिन सोचने की बात है कि मान लो यहाँ एकदम अंधेरा हो। एकदम अंधेरा। और कोई व्यक्ति आकर कहे – ये अंधेरे को निकालो। अंधेरा निकलेगा? अंधेरा निकलेगा नहीं। क्यों। क्योंकि अंधेरे का कोई स्त्रोत नहीं है। लेकिन ये अंधेरा क्यों आया, प्रकाश का आभाव यहीं तो अंधेरा है। प्रकाश का आभाव। प्रकाश जगाओ तो अंधेरा अपने आप समाप्त हो जाता है। अंधेरे को निकालने की मेहनत नहीं करो। प्रकाश को जलाओ यह सहज, सरल है। तो अंधेरा अपने आप दूर हो जायेगा। ठीक इसी तरह जीवन के अंदर ये कमी कमजोरी आयी है तो क्यों आयी है? कमी कमज़ोरी को निकालने का प्रयत्न नहीं करो। क्योंकि वो निकलेगी नहीं। वो अंधेरा है। आप अगर बाबा को लिख करके भी देकर जायेंगे ना कि बाबा आज से मैं ये कमज़ोरी मैं आपको दान देकर के जाती हँू। लेकिन यहाँ से जाने के बाद जैसे ही कोई स्थिति आयेगी। तो क्या होगा, वो कमज़ोरी वापिस आ जाती है। फिर व्यक्ति उदास हो जाता है, निराश हो जाता है। बाबा के कमरे में लिखकर, देकर के आये। पता नहीं बाबा की मदद क्यों नही मिलती है? क्योंकि कमज़ोरी को निकाला नहीं जाता है। कमजोरी क्यों आयी, शक्ति आभाव। यही कमज़ोरी है। जिस तरह अंधेरा क्यों आया? प्रकाश का अभाव यही अंधेरा है। अंधेरे का अपना स्त्रोत नहीं है। प्रकाश का स्त्रोत है। ठीक इसी तरह शक्ति का स्त्रोत है। शक्ति का स्त्रोत है सर्वशक्तिमान। अंधेरे का कोई स्त्रोत नहीं है। लेकिन शक्ति का अभाव(अंधेरा) यही कमज़ोरी है जीवन में। अब कोई व्यक्ति का हाथ हिल रहा हो। आप उसको कहो – हाथ नहीं हिलाओ-हाथ नहीं हिलाओ। अरे कमजोरी है ना। हाथ तो हिलेगा ही। हिलेगा ही लेकिन आप उसको टॉनिक दो। विटामिन दो। ऐसी चीज़े दो जो शक्ति उसके अन्दर जनरेट करें। तो शक्ति जैसे आने लगेेगी तो हाथ अपने आप हिलना बन्द हो जायेगा। स्थिर हो जायेगा। ऐसे आज हमारा मन आज ऐसे हिलता रहता है। ये करो, ये करो। ऐसा करो, वैसा करो। ये करना चाहिए वो करना चाहिए। कितना मनुष्य निर्णय (जजमेंट) नहीं ले पाता। इतना मन डगमगाता (माइंड वेवरिंग)है। ये शक्ति का प्रयोग करूँ, ये शक्ति का प्रयोग करूँ। माइंड वेवरिंग माना इतना मन कमज़ोर है। वो कमज़ोर है और आप बाबा को कहो कि बाबा हमने ये कमज़ोरी आपको दे दिया। ऐसे कमज़ोरी निकल जायेगी क्या? नहीं। इसलिए बाबा कहते है – अमृतवेले बैठो, बाबा को याद करो। सर्वशक्तिमान के रूप में याद करो। और बाबा से शक्ति का आह्वाहन करो। सहजता से। माँगने की ज़रूरत नहीं है। लेकिन जिस तरह से आप बाहर धूप में खड़े रहो तो सूर्य से माँगते नहीं हो कि हे सूर्य देवता तुम्हारी गर्माइस मुझे दे। आप खड़े रहो मिलेगी। ठीक इसी तरह बाबा से भी माँगने की ज़रूरत नहीं है। आप मन को बाबा में एकाग्र करो। पावरफुल योग की स्थिति में, आत्मभिमानी स्थिति में बैठो और प्यार से बाबा को याद करके सर्वशक्तिमान से शक्ति का आह्वाहन करो। जैसे-जैसे शक्ति का आह्वाहन करते जायेंगे, वो कमज़ोरी भरती जायेगी। आत्मा सशक्त होती जायेगी। और जैसे-जैसे आत्मा सशक्त होने लगेगी। वैसे ही क्या होगा? वो कमज़ोरी समाप्त हो जायेगी। क्योंकि प्रकाश आया शक्ति आयी। लाइट और माइट की किरणें अपने अन्दर लेते जाओ। जैसे-जैसे लाइट और माइट की किरणें अपने अन्दर आती जायेगी। अन्दर की कमज़ोरी, अंधेरा समाप्त होता जायेगा। रोज़ अमृतवेले पहले अपने अन्दर देखो। कौन सी शक्ति का अभाव है जिस कारण ये कमज़ोरी है। मान लो किसी के अन्दर घुस्सा है। अब घुस्से की कमज़ोरी क्यों है? तो देखो पहले, क्या सहन शक्ति की कमी के कारण घुस्सा आता है, सहन नहीं होता है इसलिए घुस्सा आता है। क्या धैर्यता की शक्ति की कमी है इसलिए घुस्सा आता है। कई लोग होते है अधीर्य, जल्दी करो-जल्दी करो। और कोई जल्दी नहीं करता है तो उसको बहुत घुस्सा आता है। तो धैर्यता की कमी के कारण घुस्सा आता है या शांति की शक्ति की कमी। शांति की शक्ति के कमी के कारण छोटी-छोटी बातों पर घुस्सा आता है। देखो। खुद का अवलोकन करो। मेरे अन्दर कौन सी शक्ति का अभाव है। जिस कारण ये कमजोरी है। और फिर अमृतवेले बैठ करके अगर मानलो अगर धैर्यता की शक्ति की कमी है इसलिए घुस्सा आता है तो धैर्यता की शक्ति का अह्वान करो, बाबा से। बाबा मेरे अन्दर धैर्यता की शक्ति भरते जा रहे हैं और मैं आत्मा अन्दर से धैर्यता से सशक्त हो रही हँू। ये ह$फ्ते तक ये प्रयोग करो। अमृतवेले। आह्वान करो। आप देखेंगे एक सप्ताह के बाद वो धैर्यता आपके अन्दर इस तरह समाने लगेगी जैसे कि आप उससे शक्तिशाली हो गये। सहन शक्ति की कमी है तो दूसरे ह$फ्ते सहन शक्ति का आह्वान करो। एक-एक ह$फ्ता एक-एक शक्ति का आह्वान करो। 52 ह$फ्ते आते है ना साल में। 52 शक्तियों का आह्वान करेंगे तो साल के बाद क्या होगा? सम्पूर्णता आयेगी या नहीं आयेगी? सम्पूर्णता सहजता से आ जायेगी। स्वयं को सशक्त कर सकेंगे। बाबा की एक मुरली मुझे याद आती है जिसमें बाबा ने कहा था कि ये कमज़ोरी के संस्कार को क्या करना चाहिए? अगर कमज़ोरी के संस्कार को मिटाना है। बाबा ने अपने सम्पूर्णता के स्वरूप में उसको मजऱ् कर दो। सम्पूर्णता के स्वरूप में उसको मजऱ् करो। क्योंकि 5000 साल तक ये मजऱ् हो जाये। क्योंकि ये खत्म नहीं होगा कमज़ोरी के संस्कार। 5000 साल के बाद उसको उभरना तो है ना। तो जब रिल घुमेगी तो उभरेगा। लेकिन इतना उसको मजऱ् करो, सम्पूर्णता की स्थिति में । तो एक हफ्ता एक-एक शक्ति का आह्वान करो। और देखो बाबा आपको अमृतवेले महसूस करो कि बाबा का वरदानी हाथ मेरे सिर पर है और बाबा मेेरे अन्दर वो शक्ति भरता जा रहा है। और सचमुच आप एक हफ्ते के बाद स्वयं को महसूस करेंगे कि जो छोटी-छोटी बातें जो पहले सहन नहीं होती थी अब आप उसको साधारण (नॉर्मल) ले लेंगे। आपको घुस्सा कहाँ गायब हो जायेगा आपको खुद भी पता नहीं चलेंगा क्योंकि आत्मा ताकत वाली हो गयी । तो आने वाले समय में बाबा ने कहा है कि आत्मा का सशक्त करना ज़रूरी है। क्यों सशक्त करना ज़रूरी है क्योंकि यही कमज़ोरी के संस्कार मिटाया नहीं उसको मजऱ् नहीं किया, सम्पूर्णता के स्वरूप में तो ये इतना विकराल रूप लेगा जो आपको पासविद् ऑनर होने नहीं देगा। माला का मणका बनने नहीं देगा। सतयुगी राज्य घराने में प्रवेश होने नहीं देगा। इसीलिए बाबा कहे स्वयं को अभी से (अभी समय है) फिर भी। अभी बाबा बाप रूप में ही है। अभी धर्मराज नहीं बना है। कम से कम अभी से हम अपने आप को सशक्त करें। तो समय पर कौन सी शक्ति का प्रयोग करना है वो सहज हो जायेगा। और हर चुनौतियों को पार करना आसान हो जायेगा। शक्तिशाली आत्मा जो होती है कैसे भी चुनौती उसके सामने कैसी भी चुनौती उसके सामने आये। उसको क्या करेगी? सहजता से पार कर देगी। इसलिए शक्तियों का आह्वान अभी से करो। तीसरी बात जो बाबा कहते हैं कि चुनौतियों के समय कोई भी बात के विस्तार में नहीं जाओ। खोद-खोद, अच्छा क्या हुआ फिर? अच्छा क्या हुआ? आगे क्या हुआ? उसने क्या कहाँ? क्या करना है जान करके हमें। ये विस्तार में जाओ ही नहीं, सार स्वरूप बन जाओ। जितना विस्तार में गये। वो ऐसा मकड़ी का जाला है जिसमें फँस जायेंगे आप। जैसे कहा जाता है – मकड़ी अपने ही बनाये हुए जाले में फँसती है और मर जाती है। ठीक इसी तरह कोई भी बात की जानकारी आज की दुनिया में लेने जैसे है ही नहीं। वो आपको उलझा देगी। इसलिए ये इन्ट्रेस्ट भी नहीं रखो, अच्छा फिर क्या हुआ? उसने क्या कहाँ? ऐसे क्या हुआ? जितनी जानकारी हासिल करने का प्रत्यन करेंगे। जितना विस्तार में जायेंगे। उतना क्या होगा? वो एक ऐसा जाला है जिसके अन्दर आप खुद ही फँस के दम तोड़ेंगे। इसीलिए कोई भी बात के विस्तार में नहीं जाओ। कोई सुनाने भी आये। तो कहो जाने दो अभी समय नहीं है। अभी समय हमारा पुरूषार्थ का है। पुरुषार्थ करें। है ना। इसलिए बाबा कहे – विस्तार में नहीं सार स्वरूप हो जाओ। सार में शक्ति है। विस्तार में कमजोरी ही है। इसलिए सार स्वरूप बन करके उसको समाप्त करो। क्या करना है। कोई सुनाने भी आये तो कहो छोड़ो। बाबा भी कहते हैं ना छोड़ो तो छूटो। पकडऩे जायेंगे, चिपक जायेंगे। इसलिए कोई भी बात के विस्तार में नहीं जाना, न उसमें इन्ट्रेस्ट लेना है। और एक बात जैसे कहा अगर कोई भी विघ्र आता है। आप देख रहे हो ये विघ्र है। बाबा ने हमें सबसे सहज युक्ति बताई है कि बच्चे डबल लाइट होकर उड़ जाओ। डबल लाइट बन जाओ। जितना आप डबल लाइर्ट रहेंगे वो विघ्र आपको छू नहीं सकेगा। आप हल्के होकर के उड़ जाओ। बाबा के पास वतन में जाकर बैठ जाओ। और बाबा के साथ जब वतन में जाकर बैठ जायेंगे तो बाबा टेककेयर करेगा। उस विघ्र को समाप्त कर देगा। कहा जाता है जब भी कोई विघ्र आता है ना तो अपने लग्न के अग्र को तेज करो। जितनी बाबा के साथ की लग्र की अग्र तेज होगी वो विघ्र भस्म हो जाये। इसलिए डबल लाइट बन करके सहजता से बाबा के पास जाकर बैठ जाओ। बाबा उसको समाप्त कर देगा। आपको करना नहीं पड़ेगा। आप खाली बाबा के पास चले जाओ। बाबा के कुछ दिनों पहले वरदान में बात आयी थी जिसमें बाबा कहा – ऊँचे आसन में जा करके बैठ जाओ। बाबा के पास जाकर बैठना सबसे ऊँचा आसन है। तो माया उतनी ऊँचाई तक पहुँच नहीं सकती है। जब पहुँच ही नहीं सकती है तो नीचे कितनी देर चक्कर लगायेगी। आप ऊपर होंगे वो नीचे ही चली जायेगी। खत्म हो जायेगी। आपको छूने की हिम्मत नहीं कर सकेगी। और आप सहज ही विजय बन जायेंगे। अमृतवेले, इसीलिए बाबा कहते हैं विजय का वरदान, विजय का तिलक अपने मस्तक पर लगा लो, बाबा से। मैं विजय भव आत्मा हँू…। बाबा ने एक मुरली में कहा था कि क्रबच्चे जो है जैसे है मेरे हैंञ्ज। बाबा ने हमें स्वीकार किया है। हम जो हैं, जैसे हैं वैसे बाबा ने हमें स्वीकार किया है। तो जब बाबा ने हमें स्वीकार किया है। तो बाबा के पास जा करके बैठ जाओ। बाबा का वरदानी हाथ अपने सिर पर महसूस करो। जैसे बाबा विजय का तिलक भाल पर दे रहे हैं ये अनुभव करो और आप खुद महसूस करेंगे वो विघ्र भले आये लेकिन कहाँ समाप्त हो गया पता नहीं क्योंकि आप विजयी रत्न हो। और इस तरह एक विघ्र के ऊपर विजय रत्न बनते जायेंगे। तो कोई विघ्र क्या करेगा। कोई चुनौती आपको हरा नहीं सकती। इसलिए कहा जाता है – चुनौती हर एक सामने आती है लेकिन किसी-किसी के लिए यही चुनौती अवसर के द्वार खोलती है। किसी – किसी के लिए यही चुनौती अवसर के द्वार बंद करती है और खूब पछाड़ती है। किसके लिए ये अवसर के द्वार खोलती है किसको ये पछाड़ती है। चुनौती के वक्त जो अपने मन को शान्त रख सकते हैं और सही निर्णय ले सकते हैं। उसके लिए अवसर के द्वार खुलते हैं। लेकिन चुनौती के वक्त जो बहुत टेन्शन में रहता है। कन्फ्युज रहता है और सही निर्णय नहीं ले पाता है। स्वार्थ वश या किसी बात के प्रभाव वश अगर निर्णय लिया तो वो द्वार बन्द हो जायेंगे। और वो पछाडऩे वाला अनुभव करेंगे। बाद में फिर अ$फसोस करना पड़ता है। क्या करें? उस वक्त मेरे ध्यान में ये बात आयी नहीं। ये फलाने ने मेरे को ऐसा कहा इसलिए मैंने ऐसा किया। बाबा कहे कि तुमको किसी और के ऊपर ब्लेम डालने की ज़रूरत नहीं है। वास्तव में तुम खुद कितना कन्फुज था। कितने तनाव में था। इसलिए गलत निर्णय लिया। इसलिए आज तुमको पछड़ती है इसलिए चुनौती के वक्त अपने मन को शांत रखो, क्लीयर रखो। दादी जानकी हमेशा कहती थी(तीन शब्द कहती थी) – क्रक्लीन, क्लीयर और प्योरञ्ज। माइड को क्लीन रखो, स्वच्छ रखो। व्यर्थ बातों से भरो नहीं उसको अस्वच्छ नहीं करो। निगेटिव बातों से अस्वच्छ नहीं करो। बुद्धि को क्लीयर रखो। स्पष्ट। क्लीयर होना चाहिए बुद्धि। $कन्फ्यूज नहीं होनी चाहिए। और दिल प्योर। तो मन स्वच्छ, बुद्धि स्पष्ट और दिन निर्मल(पवित्र)। जितना निर्मल और पवित्र रहेगा उतनी हर चुनौती को पार करना आसान होगा। दुनिया के अन्दर लोगो के सामने तभी अनेक प्रकार की चुनौती बढ़ जाती है। जब देहभिमान वश वो चलते हैं। इसीलिए जितना हम निर्माण होकर चलेंगे, निमित्त बन करके चलेंगे, बाबा करनकरावणहार ये समझते हुए चलेंगे उनता प्राब्लमस् खत्म हो जायेगी। चुनौतियाँ पिछल जायेगी। वो आपके सामने आ नहीं सकेगी। बाकि एक चुनौती जो वर्तमान समय में अपना सिर ऊँचा कर रही है। हर ब्राह्मणों के लिए। ध्यान देने योग्य बात है। और वो है आज के समय में अनेक अपने आप को भगवान कहलाने वाले आयेंगे। बाबा मेरे में आता है। मम्मा मेरे में आती है। दादीयाँ मेरे में आती है। ये बहुत बड़ी चुनौती है। परख शक्ति नहीं होगी तो क्या होगा? फँस जायेंगे। शास्त्रों में एक बात आती है। कौन सी बात आती है? पोंड्रिक की कहानी आती है जो आपने सुनी होगी। पोंड्रिक अर्थात् एक असुर था। जिसके पास ऐसी शक्ति थी कि वो कोई भी रूप धारण कर सकता था। और इसीलिए कहा जाता है कि उसने श्री कृष्ण का रूप धारण कर लिया और श्री कृष्ण द्वारिका से कहीं बाहर गये हुए थे। उस समय पण्डरिक श्री कृ ष्ण का रूप धारण करके वहाँ आकर बैठ गया। और सारे नगर में द्वारका में सब लोग यही समझने श्रीकृष्ण आ गये। द्वारिकाधीश आ गये। द्वारिकाधीश – द्वारिकाधीश करके उसकी जयजयकार भी बुला दिया गया। और सचमुच में जब श्रीकृष्ण आये। तो उसने उसको फ्रोड बना दिया। उसका फ्रोड सिद्ध कर दिया। लेकिन अन्त में सत्य, सत्य ही रहता है। ठीक इसी समय अभी जैसे-जैसे अंतिम समय की ओर आगे बढ़ते हैं। ये बहुत बड़ी चुनौती ब्राह्मणों के लिए है क्योंकि अब तीसरी बार यह झाड़ हिलने वाला है। कच्चे बच्चे सब जायेंगे। अच्छे – अच्छे बच्चे, ये शब्द कई बार साकार मुरली में सुना होगा। अच्छे – अच्छे बच्चे भी जायेंगे। उसमें आश्चर्य नहीं हो सकता है क्योंकि परख शक्ति की कमी। उस पोंड्रिक को पहचान नहीं सके। जो कहते रहे बाबा-मम्मा आते हैं। हमें अच्छी पालन दे रहे हैं। इतनी अच्छी ज्ञान की बातें सुनाते हैं। अरे अच्छे बातें क्या सुनाते हैं। अव्यक्त मुरली का ही अध्ययन कर करके सुना रहे हैं। कौन सी नयी गुह्य बात सुनाई ? अगर भगवान को आना ही था। तीसरा रथ लेना ही था। तो इतना बड़ा यज्ञ जो भगवान ने बनाया, इतना विशाल वट वृक्ष जो बनाया। क्या यहाँ उसको तीसरा कोई रथ ही नहीं मिला! जो उसको बाहर वाले कोई आत्मा के अन्दर आना पड़े। सोचने की बात है। क्या यहाँ कोई पवित्र आत्माएँ है हि नहीं। जिस धरनी को भगवान ने अपनी शक्ति से सींचा है। पवित्रता की शक्ति से सींचा है। बाबा मधुबन के अलावा कहीं और आया है? बाबा ने कहा हाँ जहाँ मधुबन बनायेंगे वहाँ बाबा आयेंगे। जानकी दादी एक बार बहुत पीछे बाबा के लगे थे। बाबा एक बार लण्डन आ जाओ। एक बार लण्डन आ जाओ। बाबा ने उस समय ये बात कहीं थी। जहाँ मधुबन होगा वहाँ बाबा आयेगा। अब आज भगवान नगर-नगर घुम रहा है। इतना बड़ा एम्पायर खड़ा किया भगवान ने। उसको सींचा, पालन किया, बड़ा किया। और आज उसका कोई असतित्व नहीं है। ऐसा हो सकता है कभी? विवेक को यूज़ करने की बात है। अगर कोई भी अगर कहें कि हमारे पास भगवान आता है। ये तो निश्चय की परीक्षा है ना। यहीं तो निश्चय को हिलाने वाली बात है। और ऐसे कच्चे जो होंगे वो तो झडऩे ही है। क्योंकि झाड़ बहुत वृद्धि को प्राप्त कर चुका है। भगवान को वर्सा किनको देना है? निश्चय बुद्धि विजयन्ती। संशयबुद्धि विनशंती। जिसको बाबा से यहाँ संशय आया तभी तो वहाँ गया, देखने तो जाये। तब देखने गया उसको निश्चयबुद्धि कहेंगे या सशंय बुद्धि कहेंगे। तो वो तो जायेगा ही। देखने गया ना तो जायेगा ही। इसलिए सबसे बड़ी चुनौती आज के युग में अगर यही है कि जो कहते हैं यहाँ बाबा आया, मम्मा आयी, दादीयाँ आयी। तीसरा रथ भगवान ने ले लिया है। अरे तीसरा रथ लेना ही था तो भगवान ने समेटना क्यों चालू किया था। मुझे याद आता है जब हम पहले बार आये मधुबन में, हिस्ट्री हॉल में बाबा मिलता था। छोटा सा परिवार था। और एक बाद एक बाबा मिलता था। एक दिन छोड़ कर बाबा मिलता था। उसके बाद जैसे-जैसे वृद्धि हुई। मेडिटेशन हॉल बना। हर दो दिन छोड़ कर बाबा आता रहा। दो दिन छोड़ा। उसके बाद जब ओमशान्ति भवन बना। तो ह$फ्ते में एक दिन आता था बाबा। जब हिस्ट्री हॉल में मिला तो एक-एक को आधा-आधा घण्टा। हम लोगो का आधा-आधा घण्टा बाबा ने वरदान ही दिये थे। इतना पालना दिया। फिर जब मेडिटेशन रूप में आने लगा बाबा। तो परिवार-परिवार को मिलता रह बाबा। उसके बाद जब ओम्शान्ति भवन में आने लगा बाबा तो सेण्टर-सेण्टर को मिलने लगा बाबा। और जब शान्तिवन आये। तो ज़ोन-ज़ोन को मिला और ज़ोन-ज़ोन के बाद भाईयों, माताऐं, टीचर्स, बहनें और परिवार वाले। भाईयों, कुमारों को, कुमारीयों को, माताओं को और टीचर्स को। ये पाँच ग्रुप में बाबा मिलता था। और फिर होल सेल में। भारत वाले और विदेश वाले। ये हो गया। और फिर बाबा देश-विदेश के बच्चों के बाबा एक साथ मिलते रहे। अगर बाबा को तीसरा रथ लेना ही था तो समटना क्यों चालू किया? और उसी समय से बाबा ने कहा था कि बच्चे ये व्यक्त मिलन। कब तक। अव्यक्त बापदादा का व्यक्त में मिलन कब तक। बाबा ने यहाँ तक इशारा दिया था कि बच्चे अव्यक्त बनकर के अव्यक्त मिलन मनाओ। जितनी देर तक मिलन मनाना चाहे मिलन माना सकते हो। जब बाबा ने पहले से ही हमारे अन्दर ये बीजारोपण किया कि बच्चे, बाबा कब तब आता रहेगा, आप लोग ऊपर आओ। जब हम ऊपर जायेंगे तब ही हमारी स्थिति बनेगी। अगर बाबा ही नीचे आता रहेगा तो स्थिति कभी नहीं बनेगी। इसलिए बाबा ने कहा था, बच्चे आप ऊपर आओ और आप ऊपर आयेंगे तो आपकी स्थिति बनती जायेगी। फरिश्ते स्थिति बनेगी, वहां से निराकारी स्टेज में जाना आसान होगा। क्योंकि ब्राह्मण सो, देवता सो, फरिश्ता। तो ब्राह्मण सो फरिश्ता बनना है। अगर बाबा ही नीचे आयेंगे तो फरिश्ता कब बनेंगे। इसीलिए ये विधि है। लेकिन माया अपना पौंड्रिक का रूप धारण करके आयेंगी। अगर पहचाना नहीं तो क्या होगा? खींच ले जायेगी। और जब लास्ट में सत्यता सामने आयेगी। तब कितना पश्चाताप होगा सोचने की बात है। ये सबसे बड़ी चुनौती आज यज्ञ के सामने है। हर एक ब्राह्मण के सामने है कि आपके पास भी लोग आयेंगे कि बाबा ने तीसरा रथ लिया है, वहाँ बहुत अच्छी पालना बाबा दे रहे हैं। वहाँ चलो। वहाँ चलो। चले जायेंगे? चले जायेंगे? माया खीचेंगी बहुत ज़ोर से। क्या करेंगे? अरे माया को थप्पड़ मारो अभी। बाप को अपनी पीठ नहीं दिखाओ नहीं तो जो बाबा हमें हमेशा कहते रहे। आश्चर्यवत् सुनन्ती, कथन्ती और भागन्ती। ऐसा बनना है क्या? ऐसा बनना है? नहीं बनना है। हम बाबा के सच्चे-सच्चे बच्चे हैं। सच्चे हीरे हैं। सच्चे हीरे हैं ना सभी? तो सच्चे हीरे कभी बाबा को पीठ भी दिखा सकता है? नहीं। माया को अभी तलाक देना है, बाबा को तलाक देेने का विचार भी नहीं आना चाहिए। ये है निश्चय बुद्धि विजयन्ती। वो आपको कहेंगे आप रोज़-रोज़ क्लास करो। रोज़ मुरली सुनो। वहाँ जाओ क्लास में, रोज़ अमृतवेले करो। अरे अगर बाबा वहाँ आता है साकार ब्रह्मा बाबा थे तो रोज़ क्लास कराया कि नहीं कराया। कि बाबा ने कहा फलाने सतसंग में जाओ क्लास करने के लिए। कभी कहाँ ऐसे। तो वो व्यक्ति अगर ऐसे कहता है रोज़ वहां जाओ क्लास करो। जब बाबा आता है तब मिलन मनाने यहाँ आओ। तो इसका मतलब उनके पास रोज़ का इतना भण्डार है ही नहीं उसके पास। तभी वो रोज़ मुरली सुनने के लिए आपको कहेंगे वहाँ जाओ। अमृतवेले करने के लिए वहाँ जाओ। सेंटर पर जाओ और मिलन मनाने के लिए खाली यहाँ आओ। तो समझ सकते हैं कि उनके पास ज्ञान का खज़ाना कितना है और अव्यक्त मुरली का अध्ययन कर करके अगर कुछ बातें सुनाई भी। कौन सी गुह्य बात सुनाई? और सबसे बड़ी बात अगर भगवान को तीसरा रथ लेना था तो लास्ट में 2017 में बाबा को पूछा गया कि बाबा अभी आगे। बाबा ने कहा समाप्ति वर्ष। समाप्ति वर्ष क्यों कहता था 2017 में या तो उसी समय बता देता बाबा तीसरा रथ ये है। कह देता था? कह देता था? नहीं कहा। समाप्ति कर दिया बाबा ने। और ये जो समय दिया है बाबा ने वो विशेष जिन आत्माओं को अभी भी थोड़ी कमी-कमज़ोरी अपने में है। उसको पुरूषार्थ करके बाबा की लिफ्ट की गि$फ्ट देने के लिए बाबा ने खास रखी है। तीसरे रथ का कभी बाबा ने कभी वर्णन किया ही नहीं। किया ही नहीं। इसलिए माया के इस भ्रम में कभी फँसना नहीं है। फँसना है किसी को? फँसना है? नहीं फँसना है। याद रखना ये पौंड्रिक है और पौंड्रिक कौन था? असुर था। जो अपने आपको भगवान बना करके बैठा दिया। तो ऐसे पौंड्रिक के पीछे अपने जीवन को नष्ट नहीं करना है। सबसे बड़ी चुनौती यही है। ठीक है? याद रखेंगे? ओम् शान्ति।