आबू रोड: 86 वर्षीय ब्रह्माकुमारीज़ के महासचिव राजयोगी निर्वैर भाई का देवलोकगमन

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86 वर्षीय ब्रह्माकुमारीज़ के महासचिव राजयोगी निर्वैर भाई का देवलोकगमन

 कुछ समय से चल रहे थे अस्वस्थ, अहमदाबाद के अपोलो हॉस्पिटल में ली अंतिम सांस
– 55 साल से संस्थान में समर्पित रूप से दे रहे थे सेवाएं
– नौ साल तक भारतीय नौसेना में दी सेवा
– 22 सितंबर को सुबह 10 बजे आबू रोड के मुक्तिधाम में होगा अंतिम संस्कार

आबू रोड।,राजस्थान: ब्रह्माकुमारीज़ संस्थान के महासचिव 86 वर्षीय राजयोगी बीके निर्वैर भाई का देवलोकगमन हो गया। अहमदाबाद के अपोलो हॉस्पिटल में गुरुवार रात 11.30 बजे अंतिम सांस ली। वे कुछ समय से बीमार चल रहे थे। उनके निधन से ब्रह्माकुमारीज़ परिवार में शोक की लहर है। देश-विदेश में स्थित सेवाकेंद्रों पर ध्यान-साधना का दौर चल रहा है। उनकी पार्थिक देह को अंतिम दर्शन के लिए मुख्यालय शांतिवन के कॉन्फ्रेंस हॉल में शुक्रवार सुबह 9 बजे से लोगोंं के दर्शनार्थ रखा गया। वहीं 21 दिसंबर को माउंट आबू स्थित पांडव भवन, ज्ञान सरोवर, ग्लोबल हॉस्पिटल, म्यूजियम की यात्रा करते हुए 22 सितंबर को सुबह 10 बजे आबू रोड मुक्तिधाम में अंतिम संस्कार किया जाएगा। पार्थिव शरीर शांतिवन आने पर संस्थान प्रमुख राजयोगिनी दादी रतनमोहिनी, संयुक्त मुख्य प्रशासिका बीके मुन्नी, बीके शशि, अतिरिक्त महासचिव बीके बृजमोहन, मीडिया प्रमुख बीके करुणा, कार्यकारी सचिव बीके मृत्युंजय, अमेरिका से आयी बीके गायत्री समेत सैकड़ों लोगों ने पुष्पांजलि अर्पित की।

मीडिया निदेशक बीके करुणा भाई ने बताया कि बीके निर्वैर भाई के फेफड़ों में इन्फेक्शन होने पर 5-6 दिन पहले अहमदाबाद के अपोलो हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया था, जहां पर गुरुवार रात में अचानक अटैक आने से निधन हो गया। उनके निधन की सूचना मिलते ही देशभर से संस्थान के वरिष्ठ ब्रह्माकुमार भाई-बहनों का शांतिवन पहुंचना शुरू हो गया है।
एक वर्ष की उम्र में मां का छूटा साथ-
पंजाब के गुरदासपुर में 20 नवंबर 1938 को अकाली परिवार जन्मे बीके निर्वैर भाई का बचपन से ही धर्म-अध्यात्म के प्रति विशेष लगाव लगा। आपकी पारिवारिक पृष्ठभूमि संभ्रांत के साथ आध्यात्मिकता से ओत-प्रोत रही। एक वर्ष की उम्र में ही आपके जीवन से माँ का साया उठ गया। इसके बाद भाईयों ने परवरिश की। होश संभाला ही नहीं था कि तब नौ वर्ष की उम्र में 15 अगस्त, 1947 में देश की आजादी की ख़बर सुनी और पिता भी पुराने शरीर से मुक्त होकर इस दुनिया से विदा हो गए। तीन भाइयों में सबसे छोटे राजयोगी निर्वैर भाई के पालन-पोषण में किसी भी तरह की कोई कमी नहीं आयी और भाइयों ने माता-पिता का प्यार देकर बड़ा किया। उनका जन्म भले ही अकाली परिवार में हुआ परन्तु उनके जीवन का झुकाव आध्यात्मिकता के प्रति लगातार बढ़ता रहा। 

लगातार बदलता रहा स्कूल- 

आपकी प्रारम्भिक शिक्षा कई स्कूलों में हुई। लगातार उनके स्कूल बदलते रहे। प्राइमरी से लेकर दसवीं तक उर्दू में पढ़ाई पूरी हुई। प्रथम कक्षा पंगाला और फिर कक्षा दो से लेकर चौथी क्लास तक ओजनवाला स्कूल में हुई। फिर इसके बाद पांचवी से लेकर आगे तक मुकेरिया के एंग्लो संस्कृति हाई स्कूल में अध्ययन कार्य पूरा हुआ। बचपन से ही मेधावी होने के कारण उन्हें चौथी क्लास से स्कॉलरशिप मिलने लगी थी। 

किताबों ने मोड़ा ज़िन्दगी का रुख़-

राजयोगी निर्वैर के बड़े भाई की घर में ही बड़ी लाइब्रेरी थी। उनके बड़े भाई उन्हें पढ़ने के लिए ज्ञानवर्धक किताबें दिया करते थे परन्तु इनका मन स्वामी रामतीर्थ की किताबें पढ़कर ही तृप्त हो जाता था। हाई स्कूल की पढ़ाई के दौरान स्वामी विवेकानंद की किताबों से ज्यादा लगाव बढ़ गया। इस पर उन्होंने स्वामी विवेकानंद के बताए चार प्रकार के योग को बड़ी बारीकी से अध्ययन करते और प्रातः काल अभ्यास करते थे। यहाँ से ही आध्यात्मिकता के प्रति झुकाव लगातार बढ़ता गया।

बोर्डिंग में हुई पढ़ाई, घोड़े से जाते थे स्कूल
आपकी स्कूली शिक्षा बोर्डिंग में रहकर हुई। सन् 1953 में शिक्षण के दौरान उन्हें स्कूल घोड़े और साइकिल से जाना बेहद पसन्द था। इनका स्वभाव अन्य लड़कों से स्वभाव बिल्कुल अलग था। जल्दी सो जाना और जल्दी उठना बचपन से ही आदतों में शुमार था। हमेशा सीखने की आदत और अच्छा करने का जज्बा मकसद था। 16 वर्ष की उम्र में नेवी में इलेक्ट्रॉनिक इंजीनियर पद के लिए चयन हो गया और इन्टेसिव के लिए विशाखापट्नम चले गए। सन् 1955 में कुछ महीने रहने के बाद फिर वे लोनावाला चले गए और वहाँ डेढ़ वर्ष तक रहकर पानी के जहाज में हर तरह की ट्रेनिंग ली। इसके बाद गुजरात के जामनगर में ट्रांसफर हो गया। जामनगर में रहकर प्रशिक्षण लेते रहे और इन्टेसिव पूरी हो गई। जहाज में ही रडार से लेकर सारी चीजों का बारीकी से प्रशिक्षण लेकर इलेक्ट्रॉनिक के क्षेत्र में पारंगत हो गए थे।
पुणे में ली इंजीनियरिंग की ट्रेनिंग
इसी दौरान पुणे के इंजीनियरिंग कॉलेज में जहाज की सभी चीजों को बड़ी गहनता से देखते हुए प्रशिक्षण लिया। रहने से खाने-पीने तक सारी चीजों को बारीकी से समझा और देखा। फिर तो हर एक चीज में प्रवीण हो गए थे क्योंकि नेवी में इस बात की गहन ट्रेनिंग दी जाती है कि यदि आप जहाज में किन्हीं कारणों से अकेले हो गए तो भी जहाज को डूबने नहीं देना है। उस जमाने में भी नेवी में शानदार व्यवस्था थी। इसके साथ रडार की पूर्ण जानकारी होने के कारण रडार कन्ट्रोल रूम की भी जिम्मेवारी दी गई।
1960 में ब्रह्मा बाबा से मिलने के बाद बदल गई जीवन की दिशा-
वर्ष 1959 की बात है। पंजाब में ब्रह्माकुमारीज़ सेवाकेंद्र की शुरुआत हुई। अध्यात्म और योग में रुचि होने के कारण आप संस्थान से जुड़ गए और नियमित रूप से आध्यात्मिक सत्संग में भाग लेने लगे। लेकिन माउंट आबू में वर्ष 1960 में संस्थापक ब्रह्मा बाबा से मिलने के बाद आपके जीवन की दिशा बदल गई। तभी आपने निश्चय कर लिया कि अब पूरा जीवन समाजसेवा और विश्व कल्याण के लिए समर्पित करना है। इसके बाद आपने भारतीय नौसेवा से इस्तीफा देकर पूरी माउंट आबू आए और यहीं के होकर रह गए। आप पिछले 55 साल से अपनी सेवाएं दे रहे थे। 

और मिल गई नेवी से छुट्‌टी-

एक बार अपना अनुभव सुनाते हुए बीके निर्वैर भाई ने बताया था कि बाबा ने कहा था कि प्रतिदिन आठ घंटा योग करने से असम्भव भी सम्भव हो जाता है। उस समय हमने एक महीने तक प्रतिदिन आठ घंटा योग किया और नेवी से छुट्टी मिल गई। तब बाबा ने मुझे 1969 में माउंट आबू में म्यूजियम बनाने की सेवा दी। बाबा के देहावसान के बाद में 1970 से माउंट आबू में आकर पूर्ण रूप से समर्पित हो गया। उसके बाद धीरे-धीरे दादी प्रकाशमणि तथा दीदी मनमोहिनी के साथ ईश्वरीय सेवाओं को आगे बढ़ाने का अवसर मिला। इसके बाद संस्था की गतिविधियों और इसे वैश्विक स्तर पर सेवा करने के अवसर मिलते रहे।  
गंभीर व्यक्तित्व के थे धनी-
सेवा के प्रति लगन, समर्पण और तीक्ष्ण बुद्धि के चलते कुछ ही समय में ब्रह्मा बाबा ने आपको महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां सौंपी। इस तरह आपको जीवन में जो भी जिम्मेदारी मिली उसे पूरे मनोभाव और लगन से निभाया। सेवा-साधना के पथ पर आगे बढ़ते हुए आप संस्थान के महासचिव बने। आपके समर्पण भाव का ही कमाल है कि ब्रह्माकुमारीज़ में मुख्य पदों पर नारी शक्ति होने के बाद भी आपको संस्थान की अहम जिम्मेदारी सौंपी गई। आपके दिशा-निर्देश और मार्गदर्शन में देश-विदेश में बड़े स्तर पर सेवाओं को नया आयाम दिया गया। आप गंभीर स्वभाव के धनी थे। कोई भी ब्रह्माकुमार भाई-बहनें आपके पास किसी तरह की समस्या लेकर जाते तो आप उसका उचित रूप से समाधान देते थे।
संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय में आयोजित सम्मेलन में लिया भाग-
वर्ष 1982 में बीके निर्वैर भाई ने संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय में आयोजित निरस्त्रीकरण (SSOD) पर दूसरे विशेष सत्र में विश्व विद्यालय का प्रतिनिधित्व किया। जहां उन्होंने आधिकारिक तौर पर संयुक्त राष्ट्र महासचिव जेवियर पेरेज़ डी कुएलर और अन्य गणमान्य व्यक्तियों से मुलाकात की। इसके अलावा मुख्यालय शांतिवन में हर वर्ष होने वाली राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय सम्मेलनों की अध्यक्षता की।  
विभिन्न पुरस्कारों से नवाजा गया-
– वर्ष 1999 में इंटरनेशनल पेंगुइन पब्लिशिंग हाउस द्वारा ‘राइजिंग पर्सनालिटीज ऑफ इंडिया अवॉर्ड
– वर्ष 2001 में गुजरात के राज्यपाल द्वारा गुजरात गौरव पुरस्कार के तहत ‘मोरारजी देसाई शांति शिक्षा अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार से नवाजा गया।
– इसके अलावा समय प्रति समय कई सामाजिक संस्थाओं द्वारा आपको सम्मान किया गया।
मुख्यालय के मैनेजमेंट में रही अहम भूमिका-
वर्ष 1974 से लेकर आज तक ब्रह्माकुमारीज़ के मुख्यालय के शांतिवन परिसर, मनमोहिनीवन, आनंद सरोवर, मान सरोवर, ज्ञान सरोवर के निर्माण से लेकर मैनेजमेंट में आपकी अहम भूमिका रही। आपके कुशल मार्गदर्शन में अनेक ऐतिहासिक कार्य किए गए।
ग्लोबल हॉस्पिटल के थे ट्रस्टी-
ग्लोबल हॉस्पिटल की स्थापना और संचालन में आपने शुरू से अब तक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। आप हॉस्पिटल के मुख्य ट्रस्टी थे। साथ ही आपके ही मार्गदर्शन में 50 एकड़ में बनने वाले ग्लोबल मल्टीस्पेशलिटी हॉस्पिटल का हाल ही में भूमिपूजन किया गया था।
….लगा शरीर से अलग हो रहा हूँ
जब मैं ईश्वरीय ज्ञान से नहीं जुड़ा था तब में स्वामी रामतीर्थ तथा स्वामी विवेकानन्द द्वारा बताये गये योग करता था। एक दिन मैं योग कर रहा था इतने में मुझे लगा कि मैं शरीर से अलग हो रहा हूँ। यह मेरे लिए ज़िन्दगी के अमूल्य क्षण थे। उसी समय संकल्प आया कि क्या मैं वापस आऊंगा या नहीं तब तक मैं पुनः चेतना में आ गया यह ज़िन्दगी का महत्वपूर्ण पल पनडुब्बी में लम्बे समय अन्दर रहता पड़ता था। उस दौरान मेरी पोस्टिंग मुम्बई हो गयी थी।

 प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से मुलाकात करते हुए


प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से मुलाकात करते हुए

वैकुण्ठी यात्रा का यह रहेगा कार्यक्रमः शांतिवन से प्रातः 8 बजे प्रस्थान, 9 बजे ज्ञान सरोवर आगमन, 10 बजे ज्ञान सरोवर से प्रस्थान, 10.15 बजे हास्पिटल आगमन, 11 बजे हास्पिटल से प्रस्थान, 11.15 बजे पांडव भवन, 1.45 म्यूजियम, 3.00 बजे मनमोहिनीवन से शांतिवन आगमन।  

Let us all be together for the last rites of our Respected Rajyogi Nirwair Bhai Sahab’s mortal coil. 

21 September 9am to 2pm – LIVE Telecast of Last Journey of Madhuban

Hindi LIVE Linkhttps://www.youtube.com/live/5hYqpaxQN-o

English LIVE Linkhttps://www.youtube.com/live/5Ks5yck7M_s

22 September 9.30am to 1pm – LIVE Telecast of Last Rites:

Hindi LiVE Linkhttps://www.youtube.com/live/RZiOxD7UWSQ

English LIVE Linkhttps://www.youtube.com/live/_DCmLLZ88_4

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