हम सभी समाज के वो हिस्से हैं जिसे कभी काटा नहीं जा सकता, अलग नहीं किया नहीं जा सकता। उसको अलग तरीके से देखा नहीं जा सकता। लेकिन इतने सारे समाज में वर्ग हैं, इतने सारे लोग समाज में काम कर रहे हैं सभी अपने-अपने घरों में, अपने-अपने कामों में, अपने-अपने ऑफिस में व्यस्त हैं। लेकिन जि़ंदगी के कुछ ऐसे निर्णय होते हैं जो शुरु में कुछ वर्षों के बाद लेने पड़तेे हैं लेकिन वो निर्णय लेने में कई बार जल्दी होती है तो कई बार देर हो जाती है। लेकिन कई जो इस निर्णय को जल्दी ले लेते हैं वो जीवन में शायद वो कुछ कर पाते हैं जो उनको करना चाहिए। लेकिन कई बार निर्णय लेने में देरी हो जाती है और वो निर्णय सही है, गलत है का फैसला भी हम शायद अंतद्र्वंद्व की स्थिति में करते हैं। वो निर्णय जो हम लेते हैं उससे हम कई बार मात भी खा जाते हैं। तो आज का जो विषय है इसी गूढ़ प्रश्न को लेकर है कि निर्णय आखिर ले कौन सकता है।
आध्यात्मिकता एक साइलेन्स है। जब हम गहरी शांति के साथ बैठकर किसी भी चीज़ को सोचते हैं, महसूस करते हैं तो हमको बहुत सारे प्रश्नों का हल मिलता है। अगर पूरी दुनिया को थोड़ा-सा दूर से देखते हैं कि हर कोई किसी न किसी बन्धन से
जकड़ा हुआ है या जुड़ा हुआ है। बन्धन से जकड़ा ही होता है खैर जुड़ा तो होता नहीं। और जब भी कोई व्यक्ति कोई कार्य कर रहा होता है तो कोई न कोई उसका मोटिव होता है, कोई न कोई उद्देश्य होता है, कोई न कोई ज़रूरत होती है, कोई न कोई नियत होती है उसी आधार से जुड़ता है तो व्यक्ति जब ये सब कर रहा होता है तो किसी न किसी के लिए कर रहा होता है। एक सोच, एक संकल्प चला कि इस दुनिया में कन्फयूज़ कौन है और शक्तिशाली कौन है! दोनों को हम अलग-अलग दायरों से चेक करते हैं। इस दुनिया में शक्तिशाली वो है जो इंसान निर्बंधन है, बंधनमुक्त है मन से। तन से नहीं भी हो सकता है लेकिन मन से तो खैर हो ही सकता है। तो जो व्यक्ति बंधनमुक्त है वो हमेशा बंधनमुक्त है।
मतलब जिस व्यक्ति के दिल में इस दुनिया का कोई भी व्यक्ति, कोई वैभव, कोई पदार्थ, उसके किसी भी चीज़ के लिए आड़े नहीं आता हो,वो व्यक्ति बहुत शक्तिशाली है। लेकिन जिस भी व्यक्ति को इस दुनिया में आगे बढऩे का भाव है, मन करता है, बहुत कुछ उमंग-उत्साह लेने का मन करता है, कहीं कुछ जुड़ाव है, आसक्ति है, आकर्षण है, बहुत गहरा लगाव है वो व्यक्ति कभी भी इस दुनिया में एक निष्पक्ष रूप से निर्णय लेने में असमर्थ होता है। वो क्यों, क्योंकि किसी भी व्यक्ति का किसी भी स्थिति में चाहे वो माता से लगाव हो, पिता से, वस्तु से, घर से, परिवार से, बिजनेस से वो व्यक्ति कभी भी कोई निर्णय लेने में असक्षम है। उसको डर है वो हमेशा अपने पूर्वाग्रह की स्थिति से त्रस्त और तनाव ग्रस्त रहता है कि क्या होगा। सबसे पहले उसको अपनी फैमिली, अपना बैकग्राउंड याद आता है। बाद में उसको समाज और सोसाइटी की स्थिति याद आती है।
तो आप पूरी दुनिया को ऐसे ऑब्ज़र्व करके देखें, बड़े ध्यान से देखेंगे तो आपको पता चलेगा कि चाहे वो आध्यात्मिकता के क्षेत्र में ही क्यों न हो। चाहे वो कितना ही गहराई से आत्मा को जानता हो, समझता हो लेकिन समझने के बावजूद भी अगर उसके निर्णय लेने में कहीं असक्षम स्थिति है तो उसका कारण है आसक्ति, आकर्षण। कहीं न कहीं गहरा लगाव। और वो लगाव उसको निर्णय लेने नहीं देता। अगर निर्णय लेता भी है तो वो झुकाव वाला लेता है, एक तरफा लेता है और हमेशा अपने आप को फंसा हुआ महसूस करता है। तो खुशी का जो दायरा है वो बंट जाता है। खुशी कभी बांटी नहीं जाती। खुशी का कभी बंटवारा नहीं होता। लेकिन मैंने आपकी खुशी के लिए किया, मैंने इस बात के लिए किया, नहीं। कहते हैं समाज एक सोशल फैक्ट है। इंग्लिश में कहावत है सोसाइटी के सोशल फैक्ट। मतलब सामाजिक तथ्य क्या कहता है हर कोई समाज को जि़म्मेदार ठहराता है। लेकिन समाज हमसे है, हम समाज से नहीं। तो हमारा निर्णय समाज निर्धारित करता है।
हम अगर समाज के दायरों को देखकर निर्णय लेने लग गये तो अपने कल्याण को भूल जायेंगे। समाज के कल्याण को भूल जायेंगे, देश के कल्याण को भूल जायेंगे और स्थिति बदल जायेगी। आज समाज डिसाइड कर रहा है हमें निर्णय लेने में। माना जो हमारा खुद का समाज है, जिनके बीच में हम रहते हैं, पलते हैं, बढ़ते हैं वो लोग हमारे लिए निर्णय लेते हैं और हम भी उनके लिए निर्णय लेते हैं इसलिए पूरी जि़ंदगी दु:खी रहते हैं।
तो निर्णय इस दुनिया में वो ले सकता है जो निष्पक्ष हो, जो बंधनमुक्त हो, जो अपने आपको कल्याणकारी भाव से रखता हो, जो कल्याणकारी सोच वाला हो, जो बेहद की सोच वाला हो वो व्यक्ति कभी भी इस दुनिया में असफल नहीं हो सकता। इसीलिए अगर निर्णय लेना है तो बेहद की सोच और बेहद के कल्याण की बात को लेकर आगे बढ़ें और जीवन में सफल हों।