जीवन का उत्सव दीपोत्सव

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जब हमारी आत्मा की ज्योति जग जाती है यानी कि जब हम सर्व इच्छाओं से परे हो जाते हैं तब हमारी स्थिति शांत और स्थिर हो जाती है। उसके प्रतिफल हम दूसरे का दीप जलाने के योग्य बन जाते हैं। परिणामस्वरूप न तो हमारे से गलत कर्म होता है और न ही हमारे अन्दर किसी के प्रति नफरत , ईर्ष्या और द्वेष होता है। जिस कारण हमारा हर दिन दीपावली उत्सव में बीतता है। इस आध्यात्मिकता को आप भी सोचें, समझें और जीवन में हर दिन उत्सव की तरह मनायें।

कहा जाता है कि राम नवमी राम का जन्म दिवस है और नवरात्रे, राम नवमी के बाद जो अगला त्योहार हम सबके बीच में पधारेगा या आता है या आयेगा उसको हम दीपोत्सव या दीपावली कहते हैं। एक जीवन का उत्सव कब शुरू होता है, हमारे जीवन का जब एक-एक पल खुशियों में बीते, शांति में बीते, प्रेम में बीते तब वो जीवन एक उत्सव की तरह दिखाई देता है। जीवन नीरस क्यों है? या जीवन में इतनी सारी बाधायें क्यों आती हैं? तो कहा जाता है कि इच्छायें मनुष्य की सबसे बड़ी दुश्मन हैं। कहा जाता है कि कोई एक विनाशी इच्छा पूर्ण होगी तो अनेक इच्छायें जन्म ले लेंगी। और फिर इच्छाओं के चक्र में मकड़ी के जाल मुआफिक हम फंसते जायेंगे। छूटना भी चाहेंगे लेकिन छूट नहीं सकेंगे। तो हमारे जो अतृप्ति का कारण है, अतृप्ति का आधार है, कारण और आधार दोनों हैं- वो है हमारी इच्छायें। कहा जाता है कि वर्तमान समय में विश्व में चारों तरफ इच्छायें बढ़ रही हैं। इच्छाओं के वश आत्मायें बहुत परेशान हैं। इसलिए परमात्मा आकर हम बच्चों को वैराग्य दिलाते हैं।
अब यहाँ वैराग्य का अर्थ ये नहीं है कि आपको जीना नहीं है, घरबार छोड़ देना है, बाहर चले जाना है, बिल्कुल नहीं। वैराग्य का यहाँ अर्थ है कि जैसे जब हमारी बुद्धि को कोई बात समझ में आ जाती है कि इस दुनिया में जो चीज़ें हमारे पास हैं उनका आज नहीं तो कल जाना तय है। जब जाना तय है तो इसका ज्ञान, इसकी समझ मुझे उस चीज़ से जुडऩा सिखाती तो है लेकिन साथ-साथ डिटैच होना भी सिखाती है। तो ये चीज़ जब हम समझ जाते हैं तो हम इस दुनिया में रहते हुए भी बेहद के वैरागी होते हैं। बेहद के वैरागी का अर्थ संसार में हैं, सारी चीज़ों को यूज़ भी कर रहे हैं लेकिन डिटैच भी हैं, उससे अलग भी फील कर रहे हैं। इसी से खुशी का अनुभव होता है। अब आपने कभी ये घटना सुनी होगी कि सीता जी वो जब वनवास गये तो कहा जाता है कि उसके पहले की एक कड़ी और उसमें जुड़ जाती है कि जब रावण के यहाँ से सीता जी को लाया तो उनको अग्नि परीक्षा देनी पड़ी। और एक बार नहीं दो बार देनी पड़ी।
ऐसे ही घरों में हमारी स्थिति है कि जब कोई बार-बार हमारी बुद्धि को, हमारे मन को टॉचर्र करता है, बार-बार कोई कुछ बोलता है तो उस समय हमारी बुद्धि में पूरी दुनिया के लिए वैराग्य आता है। अगर हम अन्दर से इतने सच्चे, साफ हों भी तो भी दुनिया उस बात को स्वीकार न करे। तो जो वैराग्य पैदा होता है अब वो वैराग्य क्षणिक भी हो सकता है और लम्बे समय का भी हो सकता है।
तो सीता जी को ये दिखाया गया कि जब वो वन में गये, और वहाँ पर एक साधारण जीवन जीना शुरू किया, सभी के बीच में रहना शुरू किया तो व्यक्ति राजसी ठाठ से साधारण जीवन में कब आता है? वो राजसी ठाठ में था लेकिन फिर भी अगर वहाँ ये सारी बातें चल रही हों तो उसका सुख तो नहीं ले पा रहा है ना! तो नॉर्मल जीवन में आने का मतलब है, साधारण जीवन में आने का मतलब है कि सबके बीच में रहते हुए सबको सबकुछ देते हुए एक स्वावलंबी और एक निर्विकारीपन और एक हर्षितमुख वाला जीवन जीना शुरू किया। जिसमें दिखाया जाता है कि उनके दो बच्चे थे लव और कुश। बच्चा तो एक ही था। लेकिन कहा जाता है कि एक खो गया तो कुश से उन्होंने एक बच्चा पैदा कर दिया। तो ये दिखाया गया कि जब हमारे अन्दर वैराग्य आता है तो हमारी खुशी बढ़ जाती है। और उसी खुशी के दो पहलू दिखाये लव और कुश। लव माना लव, प्यार, कुश माना खुशी। और वो खुशी लम्बे समय की है। इसीलिए सीता को विदेही भी कहते हैं, बिना देह के।
तो आप देखो, जब तक हम सभी भी बिना देह का नहीं बनेंगे, बार-बार इस देह से डिटैच नहीं होंगे, बार-बार इस देह से अलग नहीं होंगे तब तक हमारी बुद्धि से इच्छायें नहीं जायेंगी। और शरीर का भान जितना अधिक होगा उतना इच्छायें भी प्रबल होती जायेंगी। तो हमारे जीवन में उत्सव कैसे आयेगा? इसीलिए दीपावली का पर्व पूरी तरह से इसी का आधार है। जब हम पूरी तरह से इस दुनिया से डिटैच होते हैं, सारा कुछ करते हुए यहाँ अनुभव करते हैं तो उस स्थिति में हमारे अन्दर उत्सव का माहौल पैदा होता है। हमारा हर पल, हर क्षण, उत्सव होता है। क्योंकि आत्मा की ज्योति आज जग गई, आत्मा जागृत हो गई, जागी हुई अवस्था में है तो उससे कोई भी गलत कर्म नहीं हो रहा है। जब गलत कर्म नहीं हो रहा है तो उसका हमेशा दीपावली का पर्व मनाया जा रहा है।
परमात्मा आकर हम बच्चों से इसी तरह के आधार की बात कर रहे हैं कि दीपावली का पर्व एक दिन क्यों, हर दिन क्यों नहीं? और हर दिन दीपावली का पर्व मनाने के लिए सबसे पहले इस बात का बहुत ध्यान रखना है कि मैं कितना जगा हुआ हूँ। इसलिए उसका यादगार दिखाते हैं कि रावण को राम ने जब मारा या रावण पर राम ने जब विजय प्राप्त की माना बुराई पर अच्छाई की जब विजय हुई तब जाके दीपोत्सव मनाया गया। दीपावली का त्योहार, जब उनका आगमन हुआ आयोध्या में तो ये हमारी स्थिति ही तो है, जब हम विकारों को जीत लेते हैं, रावण माना विकारों को जीत लेते हैं, एक-एक इच्छाओं से परे हो जाते हैं तो हमारा जीवन उत्सव बन जाता है। और वो उत्सव हर पल हमको खुशी और शांति देता है। तो चलो हर पल राम बनें। रावण पर विजय प्राप्त करते हुए राम बनें। और राम बनकर उत्सव को दीपोत्सव में मनायें। हमेशा आत्मा की ज्योति जगाकर रखें, विकारों से दूर रहें और जीवन को खुशहाल बनायें।

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