चार शब्द… स्थिति के यथार्थ मर्म को समझें

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महावाक्य व मुरली सुनते हुए अक्सर हम चार शब्द सुनते हैं जिसकी प्रैक्टिस हम सभी भी करते हैं लेकिन उन चारों शब्दों को वास्तविक अर्थ में न समझने के कारण हम उन्हें एक ही समझ लेते हैं। इसको जानकर और उसके भावार्थ व गहराई को समझकर पुरूषार्थ करें तो उसकी अनुभूति करने में हमें मदद मिलेगी। एक है विदेही स्थिति, दूसरा आत्म-अभिमानी स्थिति, तीसरा अशरीरी स्थिति और चौथा देही-अभिमानी स्थिति।

विदेही स्थिति : विदेही स्थिति का अलग-अलग शब्दों में इस्तेमाल किया जाता है। विदेही शब्द का अर्थ है निराकारी स्वरूप। जैसे कहते हैं ‘विदेही बाप’ माना जिन्हें अपनी देह नहीं है। तो उन्हें कहते हैं विदेही बाप। हमको भी विदेही बनना है। शरीर को भूलना है। हमें विदेही बनना है माना बाप समान निराकारी बनना है। जैसे बाप निराकार है, वैसे ही हम भी निराकार हैं, उस स्थिति का अनुभव करना।

अशरीरी स्थिति : अशरीरी का अर्थ है शरीर में होते भी शरीर का भान न रहे। स्थूल में रहते हुए शरीर की फीलिंग न रहे। बाबा हमेशा कहते हैं ”विदेही बाप अपने बच्चों को विदेही बनाने आये हैं।” यह कभी नहीं कहेंगे कि ”अशरीरी बाप अपने बच्चों को अशरीरी बनाने आये हैं।” तो दोनों का अर्थ अलग-अलग है। विदेही माना निराकारी और अशरीरी माना देह की फीलिंग से परे।

आत्म-अभिमानी स्थिति : आत्म-अभिमानी अवस्था माना स्वयं को आत्मा समझना, आत्मा के गुणों को अनुभव करना, स्वयं को आत्मिक स्वरूप में स्थित करना और अनुभव करना। आत्मा के शुद्ध नशे में स्थित होना, ये है आत्म-अभिमानी स्थिति। जैसे आत्मा सतोगुणी है, सुख, शांति, प्रेम, आनंद, ज्ञान, शक्ति, पवित्रता। इन सभी गुणों में से एक-एक गुण लेकर उसकी गहराई को रियलाइज़ करना, देखना व समझना, इसी को आत्म-अभिमानी स्थिति कहा जाता है।

देही-अभिमानी स्थिति : देही-अभिमानी स्थिति माना इस शरीर में रहते भी स्वयं को इस शरीर का मालिक समझकर कर्म करना। अर्थात् स्वराज्य अधिकारी स्टेज। कर्म-इंद्रियों पर राज करना। कोई भी कर्मेन्द्रिय आपको वशीभूत नहीं कर सकती, आपको धोखा नहीं दे सकती। देह से सम्बंधित कोई भी प्रभाव आत्मा पर न हो बल्कि आत्मा की शुद्धता व पवित्रता का प्रभाव देह की सर्व कर्मेन्द्रियों पर हो। इसी को देही-अभिमानी स्थिति कहते हैं।

इस तरह बाबा के जो उच्चारे हुए महावाक्य व शब्द हैं, उनके भावार्थ को यथार्थ रीति से यदि समझें तो पुरूषार्थ में हमारी रुचि बनी रहेगी, उमंग बना रहेगा और अनुभूति होने से, उस स्थिति का रसास्वादन होने से हमें प्रसन्नता का अनुभव होगा। हम बाबा के उच्चारे हुए हर महावाक्य का, शब्दों का इस तरह से अनुभव कर अपने आप को भरपूर कर सर्वगुण संपन्न बन सकेंगे।

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