एक पिता को अपना सबसे छोटा बेटा बहुत अधिक प्रिय था। उस बच्चे को सांप ने डस लिया, जिससे उसकी मृत्यु हो गई। पिता इस दुख से अत्याधिक व्याकुल हो गया। उसने एक सपेरे (सांप पकड़ने वाले) को बुलाया। सपेरे ने सांप को पकड़ लिया, और बच्चे के पिता को दिखाया कि इस सांप ने काटा है।
पिता जब सांप को मारने वाला ही था, तभी सांप ने कहा– आप मुझे क्यों मारते हैं? पिता का जवाब था– तुमने ही मेरे पुत्र को मारा है, इसलिए मैं तुम्हें ही मारूंगा। सांप ने कहा– मैंने तो मृत्यु के आदेश का पालन किया था, दंड देना ही है तो मृत्यु को दंड दो।
पिता मृत्यु के पास गया और कहां–आखिर तुम कौन होती हो, मेरे पुत्र की मौत का आदेश देने वाली? मृत्यु ने कहा– मुझे समय ने ऐसा करने को कहा था, इसलिए मैंने आदेश दिया। पिता समय के पास गया और पूछा– आखिर तुम कौन होते हो, मेरे पुत्र की मौत का आदेश देने वाले? समय ने उत्तर दिया– मुझे कर्म ने ऐसा करने को कहा था। पिता कर्म के पास गया और पूछा कि वह कौन होता है, मेरे पुत्र की मौत का आदेश देने वाला? कर्म ने कहा–मैं तो जड़ हूं, करने वाला तो तुम्हारा पुत्र ही था। तुम उसी से जाकर पूछ लो कि सही हुआ या गलत?
पिता अपने पुत्र की आत्मा के पास गया और उससे पूछा कि जो हुआ वह सही था या गलत? आत्मा ने कहा– यह सभी लोग ठीक कह रहे हैं। मैंने ही ऐसा कर्म किया था, जिसका मुझे परिणाम प्राप्त हुआ। यदि मैं वह कर्म करता ही नहीं, तो उसका इस प्रकार से परिणाम उत्पन्न होता ही नहीं। जो हुआ है वह सही हुआ है।
हम जो कर्म करते हैं उसका परिणाम अंत में हमें ही भुगतना पड़ता है। हमारा कोई भी कर्म हो, चाहे वह हमें कहीं छिपकर ही क्यों ने किया हो, कभी ना कभी उसका परिणाम हमारे जीवन में आता ही है?
खुद के दोष दूसरों पर डालने से भाग्य नहीं बनता– कुदरत जब किसी के साथ किए गए धोखे की सजा किसी को देती है, तो याद रखें इंसान को बोलने के लायक तो दूर, रोने के काबिल भी नहीं छोड़ती। किसी भी मनुष्य जीवन में, जो भी घटना घटती है, वह उसके खुद के कर्म के फल स्वरुप की घटती है। लेकिन वह व्यक्ति ज्यादातर दूसरों के ऊपर ही दोषारोपण करता है। परमात्मा किसी का कभी भाग्य नहीं लिखता। जीवन के हर कदम पर, हमारी सोच, हमारा व्यवहार और हमारे कर्म ही हमारा भाग्य लिखते हैं।
हमारे कर्म ही हमारा भाग्य लिखते हैं– हमारे अपने कर्मों से ही हमारा भाग्य लिखा जाता है। जबकि कहा यह जाता है कि भगवान हमारे भाग्य लिखता है। दूसरा है– हमारे कर्म ही हमारा भाग्य लिखते हैं, इन दोनों में सत्य क्या है? एक छोटी सी गलत मान्यता हमारे जीवन जीने का तरीका बदल देती है। जब आप स्वयं अपना भाग्य बदलना चाहते हैं, तो आप किसके पास जाएंगे? स्वयं के पास या भगवान के पास? जैसे आप अपने बच्चों को शिक्षा देते हैं, सहयोग और शक्ति देते हैं, प्यार देते हैं और कहते हैं– बच्चे, मैं तुम्हारे साथ बैठा हूं। परंतु बच्चों का कर्म कौन करता है? दरअसल कर्म तो बच्चा ही करता है और उसका रिजल्ट भी बच्चों को ही मिलता है। तब क्या हम अपने बच्चों के कर्म का परिणाम रोक सकते हैं? परिणाम का सामना तो बच्चों को ही करना है।
आज जो भाग्य है, ये पुराने कर्मों का फल है– कर्मों का फल भोगना ही पड़ता है। परमात्म महावाक्य हैं– मैं किसी के भाग्य नहीं बनाता हूं, हर कोई अपना भाग्य खुद बनाता है। तुम आज जो कर रहे हो, उसका फल तुम्हें कल प्राप्त होगा और आज जो तुम्हारा भाग्य है वह तुम्हारे पहले किए गए कर्मों का फल है। कर्म ऐसे करो कि भगवान से नजर मिलाने में शर्म ना आए।
व्यक्ति के अच्छे या बुरे दोनो कर्मों की कीमत होती है। अंतर सिर्फ इतना है कि अच्छे कर्मों की कीमत मिलती है और बुरे कर्मों की कीमत चुकानी पड़ती है। पैर छूकर आशीर्वाद लेना बहुत सरल है, परंतु हमारे कर्म जब किसी के हृदय को छू जाए, तब उनके हृदय से हमारे लिए जो आशीष निकलते हैं वही सच्चा आशीर्वाद है।
मनुष्य जीवन कर्मों के हिसाब से चलता है– कहा जाता है कि मनुष्य जीवन कर्मों के हिसाब से चलता है। जैसे पृथ्वी गुरुत्वाकर्षण के आधार पर चलती है, वैसे ही मनुष्य आत्माओं का जीवन या आत्मा का जन्म-मरण के चक्कर में आना, कर्म सिद्धांत के आधार पर होता है। यही सृष्टि का नियम है। परंतु इस दुनिया का नियम है– कोई भी कर्म या गुनाह करते हैं, तो उसका कोई साथी या गवाह के आधार पर निर्णय करते हैं। लेकिन कर्म के आधार पर कोई प्रूफ नहीं चाहिए। कर्म तो फल है जिसे इंसान को हर हाल में काटना पड़ता ही है। इसलिए हमेशा अच्छे कर्म के बीज बोए ताकि कर्म की फसल अच्छी हो।
आत्मा के साथ दो चीज जाती है– कर्म और संस्कार– जो कर्म करता हुआ अपनी स्थिति में स्थित रहता है, वह ज्यादा पावरफुल होता है और जो कर्म छोड़ देता है तो उसे अपनी पावर का पता नहीं पड़ता क्योंकि हमारे जीवन में दो ही चीज सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है–हमारे कर्म और संस्कार। संस्कार से ही कर्म बनता है। यदि सोचे तो पाएंगे कि हमारे हर कर्म और संस्कार ही हमारी आत्मा में दर्ज़ होते जाते हैं। इसलिए हमेशा याद रहे कि आत्मा एक क्षण में इस शरीर को त्याग देती है और जब यह आत्मा शरीर को छोड़ेगी तो हमारे साथ अर्थात आत्मा के साथ केवल दो ही चीज जाएगी, हमारे किए हुए कर्म और संस्कार। बाकी जो कुछ भी यहां इकट्ठा किया है फिर चाहे वह मेहनत से की हुई धन दौलत हो, पढ़ाई हो, रिश्ते नाते हो या ऊंचे से ऊंचा अध्ययन, डिग्री आदि वह सब यहीं छूट जाएगा।
श्रेष्ठ कर्म का आधार है– श्रेष्ठ स्थिति– जिसके जितने श्रेष्ठ कर्म है, उसकी तकदीर की लकीर भी उतनी लंबी और स्पष्ट है। तकदीर बनाने का साधन ही है श्रेष्ठ कर्म। इसलिए श्रेष्ठ कर्मधारी ही बनो और पदमापदम भाग्यशाली की तकदीर प्राप्त करो। परंतु श्रेष्ठ कर्म का आधार है–श्रेष्ठ स्मृति। श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ परमात्मा की स्मृति में रहने से ही कर्म भी श्रेष्ठ ही होगा। इसलिए जितना चाहो उतना लंबी भाग्य की लकीर श्रेष्ठ कर्मों द्वारा स्वयं ही खींच सकते हो।
कर्म बिना पूछे और बिना बताए ही दस्तक देता है– यही सत्य है कि कर्म बिना पूछे और बिना बताए ही दस्तक देता है क्योंकि वह चेहरा और पता दोनों ही याद रखता है। परीक्षा हमेशा अकेले में होती है लेकिन उसका परिणाम सबके सामने होता है। इसलिए कोई भी कर्म करने से पहले, परिणाम जरूर विचार करें। हमारा भाग्य हमारे उन कर्मों का फल है जिन कर्मों को हमने अतीत में किया है। इसी तरह हम आज जो कर्म करेंगे, उसी से हमारा आने वाला कल निश्चित होगा। हमारे कर्मों की रील परमात्मा के पास सुरक्षित जमा हो रही है। इसलिए सोच समझकर कर्म करने हैं।
धन से अधिक कर्म की कमाई ज्यादा काम करती है– मनुष्य जीवन में उसके दो साक्षी है– एक अपना किया हुआ सत्कर्म और दूसरा परमात्मा। बाकी सब यही मिले हैं और यही छूट जाना है। अगर आप किसी की मदद करने योग्य है, तो अवश्य करें क्योंकि धन से अधिक कर्म की कमाई काम करती है। कर्म पर विश्वास रखिए, राशियों पर नहीं क्योंकि राशि तो राम और रावण की भी एक ही थी। लेकिन नियति ने उन्हें फल उनके कर्म अनुसार ही दिए।
ध्यान रहे कि किसी को धोखा देने वाला आपका हर कर्म नागिन की तरह बदला लेने के लिए आपका पीछा कई जन्म तक करता है। सही दिशा में किया गया कर्म मनुष्य का वर्तमान और भविष्य दोनों श्रेष्ठ बनाता है।