आपको ये बताते हुए बहुत खुशी हो रही है कि अगर कभी कोई बहुत अरसे से किसी के दर्शन के लिए प्यासा हो तो उसको देख कर उसका जी नहीं भरता, मन नहीं भरता। हमेशा मन करता है कि उसको देखता ही रहूं। इसी बात का, इसी भाव का एक बहुत सुंदर और अच्छा उदाहरण है कि जब दुनिया में भी कोई व्यक्ति किसी से मिल रहा होता है तो उसके अंदर इतने भाव होते हैं। और हम पिछले 87-88 सालों से वो जो परमात्मा है, वो जो हम सभी का रखवाला है, वो जो हम सभी का तारनहार है, जो हम सभी को देखता है, वो हमसे मिलने आता है। इसका मतलब, कहा जाता है न कि जब बच्चा किसी भी बात में चाहे कितना ही नालायक क्यों न हो, कितना ही नाकारा हो, फिर भी उसका पिता उससे मिलने के लिए उसके पास जाता ज़रूर है। चाहे भले अरसे से उससे बात न भी की हो, तो भी जाता है।
ऐसे ही हम सभी का मात-पिता वो परमात्मा शिव निराकार आज भी हम सब की पालना के लिए आते हैं और हम सभी बच्चों से भावपूर्ण बातें करते हैं जो हमारे दिल की बातें होती हैं। अब भक्ति में जिसको हमने याद तो किया, पूजा भी की, चढ़ावा भी चढ़ाये लेकिन डर से, भय से कि अगर मैं ये नहीं करूंगा तो ये हो जायेगा। तो आप सोचो हमारे अंदर तो चढ़ाने के पीछे सिर्फ भाव ये है कि अगर मैं ये नहीं करूंगा तो ये हो जायेगा। तो वो तो होगा। तो उसका मतलब मेरा भाव मिसिंग है। मेरे अंदर वो वाले भाव नहीं पनप रहे जैसा होना चाहिए।
अब परमात्मा कहते हैं तुम मेरे मर्जी से चलो, मेरे हिसाब से चलो। भक्ति में सबने कहा कि सब भगवान की मर्जी से होता है, तो इसका मतलब डर के कारण हम ये सब सोच रहे हैं, कर रहे हैं। अगर जो चीज़ डर से हो रही है, तो उस चीज़ में भाव तो नहीं होगा ना। तो हमने मूर्ति के लिए भावना रखी, हमने मंदिर के लिए भावना रखी, हमने और-और चीज़ों के लिए भावना रखी लेकिन परमात्मा के लिए हमारे अंदर कहां भावना थी! थोड़ी भी भावना नहीं थी। अगर भावना होती तो प्रेम वाली होनी चाहिए, श्रद्धा वाली होनी चाहिए। लेकिन भावना अगर थी तो कुछ संतों और महात्माओं के अंदर थी जिसमें आप सभी का नाम लेते हैं तो खुशी होती है लेकिन हमारे अंदर क्या भावना है लेने की भावना है, काम करवाने की भावना है कि मेरा ये काम हो जाये इसलिए परमात्मा को याद करना है। तो परमात्मा के लिए तो भावना नहीं हैं ना! नहीं तो हम सभी के लिए एक समान सोचते हैं। तो परमात्मा जब हम सबसे मिलन मनाने आते हैं ना तो हम सबको वैसा ही बनाने आते हैं। वो कहते हैं कि जैसे डॉक्टर का बच्चा डॉक्टर बनता है, इंजीनियर का बच्चा इंजीनियर बनता है वैसे ही मैं परमात्मा तुम बच्चों को अपने जैसा बनाने के लिए अवतरित होता हूँ। और ये कार्य 87 सालों से लगातार चल रहा है। हर पल, हर क्षण परमात्मा आकर हमें वो सबकुछ दे रहा है लेकिन वो मिलन मनाने की तैयारी भी तो हो ना। मन साफ हो, तन शुद्ध हो, सबके लिए अच्छा भाव हो, समाज के लिए एक जैसी स्थिति हो। जब ये सारा कुछ एक साथ होगा, तो हम सभी के अंदर वो पैदा होगा। और जब वो पैदा होगा तो स्थिति भी तो बनेगी ना।
जब इतने समय से, जब हम सब इतने सालों से परमात्मा के साथ जुड़े हैं, तो आप सोचो कि तैयारी भी तो वैसी होनी चाहिए ना। स्थिति के आधार से परिस्थिति बदलती है सब कहते हैं, लेकिन जो हमारा रहनुमा है, जो हम सबको इतना प्यार करता है, क्या उसको पाने जैसी स्थिति हमारी बनी है? अगर बनी है तो तैयारी है, और जिसकी तैयारी है, परमात्मा उसको उसी हिसाब से देखता है, वैसे ही प्यार देता है, वैसे ही सम्मान देता है, क्योंकि ज्ञान और भक्ति में थोड़ा-सा अंतर है, यहां पर परमात्मा हमसे सर्वस्व न्योछावर करवाता है। कहता है, तुम अपना तन, मन, धन, समय, संकल्प, शक्ति, बुद्धि सब कुछ मुझे दे दो ताकि मैं उसी हिसाब से तुम्हें सबकुछ दूं। दुनिया में कहा भी जाता है कि जो हमें भर-भर के देता है, उसको मैं गिन-गिन के याद करता हूँ। तो इसका मतलब क्या हुआ कि हमको भर के याद भी तो करना चाहिए ना।
तो वो मिलन की घड़ी जिसमें हर आत्मा तृप्त होती है चाहे वो थोड़ा पा ले, चाहे ज्य़ादा पा ले। लेकिन उसके लिए अपनी वृत्तियों को, अपने मन के भावों को एकदम शुद्ध और पवित्र बनाने का समय आ गया है। परमात्मा का मिलन पवित्रता के आधार से है, शुद्धता के आधार से है, पावनता के आधार से है। ये जितना ज्य़ादा हमारे अंदर होगा, उतना अच्छा मिलन हमारा परमात्मा के साथ होगा। और वो मिलन तृप्ति वाला होगा। तो क्या हम ये सब तैयारी कर रहे हैं? अगर कर रहे हैं तो बहुत अच्छा, नहीं तो शुरु कर दें। ताकि उस परम सुख का सुख ले सकें। उस सुख के सागर, प्रेम के सागर को अपने अंदर समा सकें। उनके जैसा बनके उनको हम एक गिफ्ट दे सकें। तो ऐसी तैयारी करते हुए हम सभी परमात्म मिलन के लिए तैयार हो जायें।