बंधन…मात्र एक ख्याल है

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कोई भी बंधन दरअसल बंधन नहीं है। उसको हमने बंधन समझा हुआ है। जैसे कोई वस्तु नहीं है बंधन, कोई व्यक्ति नहीं है बंधन, कोई पदार्थ नहीं है बंधन लेकिन मन में एक ख्याल के द्वारा उसको एक डोर से बांधा हुआ है।

सभी के अन्दर ये होता है कि वैराग्य कैसे आता है? जब हम किसी चीज़ को छोडऩे का प्रयास करते हैं तो आपको पता होना चाहिए कि जिस चीज़ को हम छोडऩा चाहते हैं उस चीज़ से हमारा अटैचमेंट या हमारा मोह हो जाता है। इसलिए वैराग्य लाने का तरीका है- अभ्यास। अब हम सभी इस संसार में हैं ना! और सभी लोग कहते हैं असार संसार है। संसार को मोह माया कह दिया। बहुत सारे ऐसे नाम देते हैं और उस पर हम रहते भी हैं। और जब बहुत सारे शास्त्रगत बातें करते हुए हम ये सोचते हैं कि हम इसमें रहते हुए उलझे हुए से हैं, इसको हम भूलना चाहते हैं, छोडऩा चाहते हैं तो कहा जाता है कि कोई भी संकल्प जब हम बिना खाये-पिये कर रहे होते हैं तो कहा जाता है कि वो संकल्प की जो रचना है वो आपको वही दिखाने लग जाती है।
उदाहरण के लिए जब आपको कभी फीवर हो जाये, शरीर आपका कमज़ोर हो जाये तो मन कल्पनाओं में उडऩे लग जाता है। क्योंकि शरीर की जो शक्ति है वो मन से अलग हो गई पूरी तरह से, आत्मा से अलग हो गई। अब वो बिस्तर पर लेटा हुआ भी ऐसे लगेगा कि जैसे मेरी खटिया उड़ रही है, क्योंकि ताकत नहीं है शरीर में। ऐसे ही लोगों ने उपवास किए, व्रत किए और ऐसे-ऐसे अभ्यास किए कि इस दुनिया से बिल्कुल कल्पनाओं में घूमना शुरू किया, बिल्कुल अलग। लेकिन एक गलत तरीका रहा। परमात्मा हमको बहुत सुन्दर तरीके से इस बात को सिखाते हैं कि इस असार संसार को हम जान गये हैं और समझते भी हैं, तो कोई भी बंधन दरअसल बंधन नहीं है। उसको हमने बंधन समझा हुआ है। जैसे कोई वस्तु नहीं है बंधन, कोई व्यक्ति नहीं है बंधन, कोई पदार्थ नहीं है बंधन लेकिन मन में एक ख्याल के द्वारा उसको एक डोर से बांधा हुआ है।
अब मन के ख्याल की ये डोर उस वस्तु, व्यक्ति और उससे बंधन की कल्पना के आधार से उसको बांध के रखती है। आपको पता है जो चीज़ है, जो वस्तु है, जो व्यक्ति है, वो भी आज नहीं तो कल जायेगा, निश्चित रूप से जायेगा। तो जो चीज़ जायेगी वो बंधन तो है ही नहीं! अब लोगों ने मोक्ष का जो द्वार बताया, वो यही कहा कि बंधनों से मुक्ति मोक्ष है, या मोक्ष पा जाओगे तो बंधनों से मुक्त हो जाओगे। लेकिन मोक्ष का सही आधार, सही तरीका तो ये होना चाहिए ना कि हम सभी सबसे पहले जाग जायें।
एक उदाहरण है, कहते हैं कि एक ऋषि के पास कोई व्यक्ति गया, उसने कहा कि मैं मोक्ष पाना चाहता हूँ। तो कहते हैं कि वो तो पाना बहुत आसान है, लेकिन उसके पहले मैं तुमको एक अभ्यास बताता हूँ, वो कर लो। वो अभ्यास था कि कहो कि क्रमैं भैंस हूँञ्ज। लेकिन तीन दिन खाये-पिये बिना ये करना है। तो जब उन्होंने ये अभ्यास करना शुरू किया, तीन दिन खाये-पिये बिना तो कहते हैं कि जब मन कोई भी संकल्प बार-बार उसी आधार से देते रहते हैं तो उस व्यक्ति का वैसा ही स्वरूप बना देता है। अब वैसे ही उपवास, व्रत किया हुआ व्यक्ति करे तो ऐसा लगता है कि ”मैं बन गया हूँ”।
तीन दिन जिस गुफा में अभ्यास कर रहे थे वहाँ से शोर मचाया, तो देखा उनके गुरू जी सामने आ गये। उन्होंने पूछा कि क्या हुआ? उसने कहा कि ”मैं तो भैंस बन गया हूँ, मेरी सींग आ गई है, मैं बाहर निकल नहीं पा रहा हूँ”। पूरी तरह से कल्पनाशील, एकदम मन स्वप्नों में डूब गया। जैसे कोई स्वप्न देखता है कि मैं तो यहाँ से निकल नहीं पा रहा हूँ। तो गुरू जी को हँसी आ गई। तो उस व्यक्ति ने पूछा है कि हँस क्यों रहे हैं गुरू जी? आपने ही तो बताया था कि ऐसा मुझे अभ्यास करना है, तभी मैं मुक्त होऊंगा। गुरू जी ने जाकर उसको थोड़ा-सा हिलाया, सहलाया, बताया तो जैसे ही वो जगा, नींद से उठा, तो उसको याद आया कि नहीं, मैं तो बाहर हूँ! ये तो मेरी कल्पना थी।
ऐसे हम सभी हैं। हम सभी अपनी-अपनी कल्पनाओं में इस संसार को बसाये हुए हैं। हमारे मन में एक बहुत बड़ा संसार हर समय बंधन के रूप में है। और वो बंधन हम सबको लगता है कि मैं यही हूँ, मैं बच्चा हूँ, मैं वस्तु हूँ, मैं व्यक्ति हूँ, मैं पदार्थ हूँ। तो जैसे ही हम जाग जाते हैं, जैसे ही वो नींद से जगा उसको सब भूल गया। वैसे ही जैसे हम इन सारी चीज़ों से जाग जाते हैं ना तो हम एकदम मुक्त अवस्था में आ जाते हैं। और यही स्थिति हम सबको लानी है, ताकि हम जीते जी हर पल, हर क्षण मुक्ति का अनुभव करें। और यही बंधनों से मुक्ति हम सबको दिलाएगा, हम सबका जागना।

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