संगमयुग का मूल्य धन ब्रह्मा बाबा…

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जीवन में हर मनुष्य कर्र्म करता है लेकिन उसके कर्र्म में भी कर्र्म का भान न रहे, न ही देह का भान, न ही किसी में ममत्व और न ही कोई विकृति-विकारों का अंश रहे। वो सिर्फऔर सिर्फ मानव कल्याण के लिए व अपने श्रेष्ठ उसूलों के लिए जीता हो, उसी को ही आध्यात्मिक जीवन कहेंगे। और ये सारी खुबियां हमने प्रजापिता ब्रह्मा(दादा लेखराज) में देखी। और इसी के कारण ही आध्यात्मिक जीवन से अनेक आत्माओं ने प्रेरणा ली और आज भी उनके श्रेष्ठ जीवन को आदर्श मानते हुए विश्व में आध्यात्मिक पताका फहरा रहे हैं। यदि आप भी अपने जीवन को ऐसा बनाना चाहते हैं तो ब्रह्मा बाबा को फॉलो करने की प्रेरणा ले आगे बढें।

आप सबको तपस्या क्या होती है अगर समझना है, सीखना है, सुनना है, सोचना है तो हमारे पास एक ज्वलंत उदाहरण है, हमारे आदि पिता, प्रजापिता ब्रह्मा बाबा। जिन्होंने आध्यात्मिक जीवन में वो सारी चीज़ें अनुभव की, अनुभव करते रहे जोकि हम सबकी सोच से भी परे है। इसको हम ऐसे समझने की कोशिश करते हैं कि जैसे परमात्मा का ज्ञान हम सबको भी मिला है, ब्रह्मा बाबा को सबसे पहले मिला है। ब्रह्मा बाबा जो आदि पुरूष हैं उन्होंने इस ज्ञान को फायदा या नुकसान के लिए नहीं सुना, कल्याण के लिए सुना। और बाबा की श्रीमत कल्याणकारी है ये सिर्फ ब्रह्मा बाबा को अनुभव हुआ। कल्याण सिर्फ एक जन्म का नहीं 84 जन्मों का। और हम सभी किसी गुरू को, किसी सद्गुरू को, किसी व्यक्ति को, किसी महान पुरूष को जब तोलते हैं तो हमेशा इनसे फायदा और नुकसान को देखकर तोलते हैं। लेकिन प्रजापिता ब्रह्मा बाबा ने परमात्मा को समझा तो मात्र कल्याण के लिए समझा। और उस कल्याणकारी पिता को अपना सबकुछ ठीक करने के लिए प्रयोग नहीं किया। अपने आपको आत्मिक स्थिति में लाने के लिए प्रयोग किया।
परमात्मा का हर दिन ज्ञान जो चलता था उसका मनन-चिंतन करके, उसके अन्दर से एक बात निकालते थे कि इस दुनिया का कुछ भी हमारे लायक नहीं है। कहते हैं विकारों का किचड़ा हमारी आत्मा के अन्दर है। तो उन किचड़ों को दुबारा अपनाने के लिए ब्रह्मा बाबा ने कभी भी संकल्प नहीं किया। माना कोई भी इस दुनिया की चीज़ को अगर पाने का हमको संकल्प है तो फिर से हम अभी भी विकारों के किचड़े को अपनी आत्मा के अन्दर भर रहे हैं। ब्रह्मा बाबा ने ये बात बहुत पहले समझ ली। क्लीन तरीके से समझ ली। स्पष्टता जब कोई चीज़ की हो जाती है तो उस कार्य को करना सहज हो जाता है।
तो परमात्मा के ज्ञान को स्पष्ट रूप से धारण करने का कार्य ब्रह्मा बाबा ने बहुत सहज तरीके से किया। एक ही अभ्यास किया। अपने को पाना है तो अपना सबकुछ त्यागना है। ये संकल्प, अगर अपने को पाना और अपना सबकुछ त्यागना है तो ये चीज़ करने के लिए निरंतर अभ्यास की आवश्यकता थी। और उस आवश्यकता को अपने दैनिक जीवन में दृढ़ता के साथ अपनाया और उसपर कार्य करने लगे। आपको पता है कि तैंतीस सालों तक प्रजापिता ब्रह्मा ने सिर्फ एक अभ्यास किया कि मैं इस शरीर को चलाने वाली एक चैतन्य शक्ति हूँ, एक आत्मा हूँ। शरीर अलग है, आत्मा अलग है। सिर्फ एक अभ्यास। इसी को हम उन्नति कहते हैं, इसी को हम प्रोग्रेस कहते हैं। बाकी इस दुनिया में कोई व्यक्ति या आप अध्यात्म को अपनाते हैं तो कोई आपकी तारीफ करे, कोई आपकी भाषा की तारीफ करे, कोई आपकी मिठास की तारीफ करे तो ये आध्यात्मिकता नहीं है, ये तो एक ट्रेनिंग है। आध्यात्मिकता वो है जो आपको इन सारी बातों से निष्काम योगी बनाये। इसका मलतब काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार का सूक्ष्म रूप यही तो है कि कोई आपको कुछ बोल रहा है आप उसको भोग रहे हैं। कोई आपके बारे में अच्छा सोच रहा है तो आप उसकी तारीफ कर रहे हैं। लेकिन ब्रह्मा बाबा ने रियल अपने आप को बनाया। और उसमें सिर्फ एक बात डाली कि मैं इस जगत से परे हूँ।
परमात्मा हमको अपने जैसा बनाना चाहता है। इस जगत में मैं सिर्फ थोड़े दिन के लिए आया हूँ। मैं यहाँ मेहमान हूँ। तो ये वाली तपस्या, ये वाला त्याग ब्रह्मा बाबा को सम्पूर्ण बनने में मदद किया। और हम सभी अगर ब्रह्मा बाबा के सच में कदम पर कदम रखते चलते हैं या चलना चाहते हैं तो हमको इस बात का विशेष ध्यान देना है कि क्या मैं सच में त्यागी हूँ, क्या मैं सच में बेहद का वैरागी हूँ? तो अगर हूँ तो मेरी तपस्या निर्विकारी वाली हो जानी चाहिए। लेकिन जो विकार अशुद्धि वाला है, जो मुझे तंग कर रहा है उसको छोड़ देने के लिए हम राज़ी नहीं हैं इसीलिए शायद हम निर्विकारी नहीं बन पा रहे। तो इस मास जनवरी मास में हम सभी एक संकल्प के साथ उठेंगे और तब करेंगे कि मुझे ब्रह्मा बाप समान बनने के लिए अपना सबकुछ छोडऩा है।

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