एक बच्चा स्कूल में जाने लगता है और एक कम्पटीशन की दुनिया में पैर रखता है। और जीवन के अंतिम श्वास तक उस कम्पटीशन में विजयी होने के लिए जूझता है, संघर्ष करता है, कम्पटीशन की दुनिया में सफल होने के लिए क्या चाहिए?
पिछले अंक में आपने पढ़ा कि उसको ये भी पता नहीं था कि समुद्र के भीतर चलने वाले करंट कितने पॉवरफुल होते हैं। एक नदी का करंट कितना पॉवरफुल होता है। एक नहर का करंट कितना पॉवरफुल होता है तो समुद्र के करंट कैसे होंगे? ये भी उसको ज्ञान नहीं था। लेकिन एक ही चीज़ उसके पास थी, वो था एक कंपास। जो उसको दिशा बताता रहा कि किस दिशा में वो आगे बढ़ रहा है। उस कंपास के सहारे वो कुछ हद तक सफल हो गया। अब आगे पढ़ेंगे…
ठीक इसी तरह मनुष्य जीवन है। आज हम ऐसे युग में जी रहे हैं, जिस युग को कहा जाता है अनिश्चितता का समय। अनिश्चितता, माना घंटे के बाद क्या होना है वो भी निश्चित नहीं है। और हमारे पास उस अनिश्चित भविष्य के कोई नक्शे नहीं हैं। कहाँ जाना है, कैसे जाना है ये भी पता नहीं। हमें ये भी पता नहीं है कि आने वाले समय में किस तरह के तूफानों का सामना करना होगा। और उन तूफानों के लिए हमारी तैयारी नहीं है। हमें ये भी पता नहीं है कि आने वाले समय में किस तरह के जीव हमारे पीछे लग सकते हैं। बड़ी-बड़ी व्हेल मछलियों जैसी, शार्क मछलियों जैसे जो पूरा का पूरा ही निगल जायेे। हमें ये भी पता नहीं है कि हमारे अपने जीवन में कौन से कमज़ोरी के अंडर करंट चल रहे हैं। जो अंडर करंट कभी-कभी इतने पॉवरफुल होते हैं, जो कमज़ोरी हमारे जीवन को तहस-नहस कर सकती है, और सबसे बड़ी बात हमारे पास कंपास भी नहीं है जो हमें दिशा बताये कि हाँ जिस दिशा में हम चल रहे हैं वो दिशा सही भी है या नहीं! तो किसके सहारे चल रहे हैं? स्वयं का तो इस अनिश्चित समय में कुछ भी पता नहीं है कि आने वाले तूफान कैसे होंगे। आने वाले समय में हमारे पीछे कौन से जीव लग सकते हैं, आने वाले समय में हमारे जीवन में जो अंडर करंट कमज़ोरियों के चल रहे हैं वो कैसे उछाल मारेंगे! और हमें कहाँ से कहाँ पहुंचा देंगे।
तो इस भवसागर में किसके सहारे चल रहे हैं कि हमारी लाइफ हमारे कन्ट्रोल में है, हमारी सोच हमारे कन्ट्रोल में है, हमारा व्यवहार, हमारी वृत्तियां हमारे अपने कन्ट्रोल में है? तो किसके सहारे चल रहे हैं? तो मेरी अपनी मैकेनिज़्म है वो भी मेरे अपने कन्ट्रोल में नहीं है। तुम किसके सहारे चल रहे हो? क्या कहेंगे? भगवान के? आज दुनिया में इतने भगवान हो गये कि किस पर डिपेंड करना चाहिए, ये भी पता नहीं है। सत्य का परिचय ही नहीं है और जितना सत्य को समझने का प्रयत्न कर रहे हैं उतना ही सत्य दूर होता जा रहा है। तो क्या कुछ तो करना होगा हमें अपने आपको मैनेज करने के लिए क्योंकि ये सबसे बड़ी चुनौति है वर्तमान समय की। दिनोंदिन कम्पटीशन बढ़ रहा है। एक बच्चा स्कूल में जाने लगता है और एक कम्पटीशन की दुनिया में पैर रखता है। और जीवन के अंतिम श्वास तक उस कम्पटीशन में विजयी होने के लिए जूझता है, संघर्ष करता है, कम्पटीशन की दुनिया में सफल होने के लिए क्या चाहिए?
एक बहुत सुन्दर दृष्टांत याद आता है- एक बार एक भारतीय और एक अमेरिकन दोनों एक जंगल से गुज़र रहे थे। अचानक उन्होंने शेर की दहाड़ सुनी। तो भारतीय ने क्या किया अपने जंगल बूट्स को उतार दिया और रनिंग शूज़ पहन लिया तो ये देखकर वो अमेरिकन उसको पूछता है तू क्या समझता है अपने आपको, ये रनिंग शूज़ पहन कर तू शेर से आगे दौड़ेगा? तो भारतीय उसको कहता है कि नहीं शेर से आगे तो नहीं दौड़ सकता। लेकिन तेरे से आगे तो दौड़ सकता हूँ। शेर तो उसका शिकार करेगा जो पीछे रह जायेगा। मैं तो तेरे से आगे दौडऩे के लिए ये जूते बदली कर रहा हूँ। कम्पटीशन की दुनिया में जीतने के लिए क्या चाहिए? क्या चाहिए? सूझ चाहिए, समय सूचकता चाहिए। अमेरिकनों के पास बहुत अच्छी क्वालिटी के जूते होंगे लेकिन उसने सोचा कि इसको जंगल में क्या करेंगे? वो लाया ही नहीं। और जब वो लाया ही नहीं तो एक इंडियन ऑर्डनरी टैनिंग शूज़ पहन कर भी जीत जाता है।