मन की बातें – राजयोगी ब्र.कु. सूरज भाई

0
85

अनुभव
एक बहन का अनुभव है, बहन के पति विधायक हैं। लगभग 14 वर्षों से ईश्वरीय विश्व विद्यालय से जुड़ी हुई हैं। और इनके पति भी पूरी तरह से सहयोगी हैं। उनका अन्न भी बहुत शुद्ध और सात्विक है, वो भी मेडिटेशन करते हैं और ईश्वर में आस्था रखते हैं, और राजनीति में भी वो इसलिए आए हैं ताकि वो समाज की सेवा कर सकें। उन्होंने अपना अनुभव सुनाया कि कुछ दिन पहले कुछ गुंडों ने उन्हें घेर लिया और उनकी कार पर लगातार फायरिंग करने लगे चारों ओर से। और एक जो गुंडा था वो उनके पास ही आ गया और पिस्टल उसके पास ही थी। बिल्कुल उन्होंने उनके कान के पास ही लगा दी थी। लेकिन आश्चर्य की ही बात थी कि वो पिस्टल कार्य नहीं कर पाई और वो पूरी तरह से सुरक्षित रहे। तो अपना अनुभव सुना रही थीं कि मैं लगातार मेडिटेशन करती हूँ। सबको, सारे संसार को शुभ भावनाओं का दान तो देती हूँ लेकिन विशेषकर राजनीति में आजकल ये जो घटनायें होने लगी हैं तो मैं अपने पति के लिए विशेष योग करती हूँ। वो भी योग करते हैं। और उन्होंने ईश्वर का लाख-लाख शुक्रिया किया जो वो पूरी तरह से सुरक्षित हैं। कहते हैं ना, जाको राखे साईंया मार सके न कोए। और ये बात भी कही जाती है कि ईश्वर जिस व्यक्ति की रक्षा कर रहा हो सचमुच सारे संसार में कोई भी व्यक्ति उसका कुछ भी बाल बांका नहीं कर सकता। और ये भी कहा जाता है कि यदि तुम ईश्वर का ध्यान करते हो तो ईश्वर का ध्यान स्वत: ही आपके ऊपर बना रहता है। तो क्यों न हम भी उसके ध्यान में मग्न रहें। और उसके ध्यान को अपने ऊपर बनाए रखें।

प्रश्न : मैं 18 साल का कुमार हूँ। मुझमें एक संस्कार है, ज्य़ादा सोचने का। मेरे संकल्प रूकते ही नहीं हैं। मेरे पुरूषार्थ में तीव्रता नहीं आ रही है। कृपया आप मेरी मदद कीजिए।
उत्तर : आजकल लडक़ों में ये टेंडेंसी बढ़ती जा रही है, और उसका कारण एक ही है जो हम सबको सावधान कर रहे हैं कि हम ऐसे पीरियड पर आकर खड़े हुए हैं कलियुग के, जहाँ पर सभी के मन बहुत कमज़ोर हो चुके हैं। उनकी शक्तियां जो कभी परफेक्ट थीं वो यूज़ होते-होते बहुत कम चार डिग्री पर आकर बची हैं। और हमारे बाहर भी निगेटिव एनर्जी बहुत ज्य़ादा है। तो जब हम ही सेंसिटिव हैं, उनको सभी को ग्रहण करते रहते हैं इससे सबको बचना चाहिए। इसी के लिए राजयोग, अध्यात्म, अपने संस्कारों में कुछ परिवर्तन करना इसकी बहुत आवश्यकता है। ज्य़ादा सोचने की आदत तो सचमुच में अनेक बीमारियों को जन्म देती है। और मनुष्य न जाने क्या-क्या सोचता है फिर सारा दिन। उसकी दिशा किधर चली जाती है और उसका इफेक्ट उसकी दशा पर आ जाता है। ये बहुत बड़ी समस्या हो गई है, लोग अपने विचारों पर कंट्रोल नहीं कर पाते। सोचना शुरू किया तो सोचते-सोचते पता नहीं कहाँ निकल जाते हैं। ये समस्या बहुत उग्र रूप लेती जा रही है। तो पहला तो यही संकल्प कि हमें इससे मुक्त होना है। हर व्यक्ति जिसे ये बीमारी लगी है वो ये समझ लें कि आगे चलकर भयानक साइकेट्रिक पेशेन्ट बना सकती है। इसीलिए इस बीमारी के बीज को हमें समाप्त करना है। अपने मन को बहुत स्ट्रॉन्ग करना है और यहाँ तक ले चलना है कि जो हम सोचना चाहें वही हम सोचें। जो हम नहीं सोचना चाहें वो हम न सोचें। इसके लिए पहली चीज़, मैं आपको सजेस्ट करूंगा, इस स्वमान से सभी परिचित हैं। सवेरे आपको थोड़ा जल्दी उठना चाहिए। अगर आप राजयोग करते हैं तो 4 बजे उठ जाना चाहिए। चार बजे उठकर सुन्दर माहौल में आप उठें और मैं मास्टर सर्वशक्तिवान हूँ इसका बहुत अच्छा अभ्यास करें या 108 बार लिख लें, ताकि आपका मन पॉवरफुल बने। क्योंकि उस समय सब्कॉन्शियस माइंड एक्टिव रहता है, वो जगा रहता है। तो अगर आप सच्ची फीलिंग के साथ संकल्प करेंगे, मैं बहुत शक्तिशाली हूँ। तो आपका सब्कॉन्शियस माइंड इसे एक्सेप्ट कर लेगा और आपकी इनर पॉवर बढ़ती जायेगी। और दूसरा, सवेरे उठकर कम से कम आधा घंटा मेडिटेशन आपको अवश्य करना है, ताकि एकाग्रता हो। आत्मिक स्वरूप पर, परमात्म स्वरूप पर एकाग्रता, सुन्दर विचारों पर एकाग्रता। अगर मान लो आप ये सोचें कि विचार आपके बंद होते नहीं तो आप अपने मन में सुन्दर विचार क्रियेट करें। एक ही तरह के विचार चलते रहें इसको भी एकाग्रता कहते हैं। सवेरे इन बातों से अपने आपको को चार्ज कर लेने से धीरे-धीरे काफी मदद मिलेगी। आप ये लक्ष्य बना लें कि तीन मास अच्छी साधना करनी है, अपने मन को साधने की। तीसरी बात, हमारे ईश्वरीय विश्व विद्यालय में जिन्हें हम अव्यक्त महावाक्य कहते हैं, जो स्वयं भगवान के महावाक्य हैं वो ज्ञान का खज़ाना है, असीम भंडार है वो। आपको रोज़ पंद्रह मिनट ज्य़ादा नहीं, उनकी स्टडी करनी चाहिए। उनकी हमारे यहाँ बुक्स हैं, बिल्कुल पढ़ते ही कोई भी पढ़े तो लगेगा कि ये तो भगवान के अलावा लैंग्वेज, फिलॉसफी और किसी की नहीं हो सकती। तो उनको पढऩे से आपको नये विचार मिलेंगे। और जो वेस्ट थॉट्स आते रहते हैं उसको आप रोक पाएंगे। ऐसे ही दिन में कुछ दिन तक तीन मास मैंने कहा पर उसके कुछ ही दिन पहले आप हर घंटे अपने को रोककर अपने मन पर ध्यान दें। यानी आपको अपने मन को ट्रेंड करना है कि मैं क्या सोच रहा हूँ। जो कुछ मैं सोच रहा हूँ क्या मुझे इसकी ज़रूरत है? उत्तर आयेगा, नहीं। तुरंत सात बार याद करें कि मैं मास्टर सर्वशक्तिवान हूँ। मुझे तो इस संसार को अच्छे वायब्रेशन्स देने हैं। फिर धीरे-धीरे आपका ये मन अच्छी स्थिति में आने लगेगा। और इस महामारी से बच जायेंगे। एक छोटी-सी राय और आपको देता हूँ- पाँच सेकण्ड के लिए आत्मा को देखें। चमकती ज्योति, और एक संकल्प ले-लें मैं पीसफुल आत्मा हूँ, दूसरी बार ले-लें मैं पवित्र आत्मा हूँ। ऐसे तीन-चार संकल्प चेंज करेंगे। आत्मा को विज़ुअलाइज़ करें, आत्मा को देखें पाँच सेकण्ड। सोचने और देखने में पाँच सेकण्ड हो जाएंगे फिर परम आत्मा जो सुप्रीम सोल है उसको देखें पाँच सेकण्ड। उनके बारे में एक संकल्प ले-लें कि वो शांति के सागर हैं, फिर आत्मा को देखें, फिर परमात्मा को देखें। ऐसे दस बार करें। दस बार करने के बाद फिर इस समय को दस-दस सेकण्ड कर दें। दस सेकण्ड आत्मा को देखें चमकती ज्योति। मैं आत्मा पवित्र हूँ, परमपवित्र हूँ। संकल्प को रिपीट करते रहें ताकि मन भटके नहीं। शुरू में ये ज़रूरी होता है। इस संकल्प को भले दस सेकण्ड में तीन बार रिपीट कर दें फिर परमात्मा को देखें। महाज्योति, वो पवित्रता के सागर हैं। मेरे शिव बाबा पवित्रता के सागर हैं। वो देख रहे हैं और सोच रहे हैं फिर इस समय को पंद्रह सेकण्ड, बीस सेकण्ड कर दें और दस-दस बार करें। दस-दस मिनट अगर इसमें लगायेंगे शुरू में कभी सफलता मिलेगी, कभी नहीं। मन भटक सकता है, लेकिन घबरायें नहीं। बहुत दृढ़ता के साथ सफलता होगी ही। ये आप सुबह दस मिनट, दोपहर को दस मिनट और रात को दस मिनट कर सकते हैं।

कोई जवाब दें

कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें!
कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें