बहुत बार मन में ये सकंल्प आता है, मैंने इतना किया, मैंने इतना किया, मैंने इसके लिए इतना किया, मैंने परिवार के लिए इतना किया। मेरी तो कोई वैल्यू नहीं है, मुझे तो कोई कुछ नहीं मिल रहा है, सिर्फ मैं ही सबको देते जा रही हूँ। तो मैं अगर सबको देते गई तो मुझे कहाँ से मिलेगा! एनर्जी का इक्वेशन ये नहीं है कि मैंने दिया और मैंने आपसे लिया, नहीं। एनर्जी का इक्वेशन है- मैंने आपको दिया और देते समय वो मुझसे फ्लो होता हुआ वो आपके पास गया। हमें आज सिर्फ ये फाइनल करना है कि कैसे हमें इस पॉवर को इतना बढ़ाना है, इतना बढ़ाना है ताकि जीवन में कोई भी बात आ जाए छोटी-छोटी नहीं, बड़ी से बड़ी बात आ जाए, हमारे पास उस बड़ी बात को फेस करने की भी पॉवर है।
थॉट्स मन में क्रिएट होते हैं। इसी लिए कई बार ज्य़ादा थॉट्स क्रियेट होते हैं तो हम कहते हैं कि सर भारी हो रहा है, और दूसरी चीज़ ये अनुभव किया है कि टू मच थॉट्स चल रहे हैं, कि हम बहुत ज्य़ादा सोच रहे हैं तो वो थॉट्स मन में चलती है इसलिए भारीपन मन में लगता है। टू मच थिंकिंग मन में लगता है। अब सिर्फ इसको चेक करना, खुद फील करना, हरेक थॉट जो हम यहां क्रियेट करते हैं, उसका प्रभाव कहां-कहां पड़ता है।
सबसे पहले मेरी हर थॉट्स से मेरी फीलिग्ंस बनती है। मेरे हर संकल्प से मेरी भावनायें बनती हैं। तो कभी-कभी हम कहते हैं कि आज मुझे अच्छा नहीं फील हो रहा है, आज मुझे लो फील हो रहा है, आज मुझे बहुत अच्छा फील हो रहा है। तो ज्य़ादातर हम अपने आपको फीलिंग के लेवल पर चेक कर सकते हैं कि हम कैसा फील करते हैं। हम एक-दूसरे को पूछते भी हैं कि आज आप कैसा फील कर रहे हैं? तो हम फीलिंग की भाषा समझते हैं कि हम फील कैसा कर रहे हैं? लेकिन जो फीलिंग है वो सेकण्ड बात है। वो फीलिंग क्रिएट होती है मेरी हर एक थॉट से। हमारी हर थॉट से हमारी मेंटल हेल्थ(मानसिक स्वास्थ्य) बनती है, तो हमें हर संकल्प का ध्यान रखना कितना ज़रूरी है!
दूसरा, अब आप चेक करना कि मन में थॉट क्रियेट की तो वो थॉट का नेक्स्ट इफेक्ट कहाँ जायेगा? पहले तो फीलिंग हुई, उसके बाद हर थॉट का इफेक्ट कहाँ जाएगा? नेक्स्ट हमारे शरीर पर- बीमारियां, मैजोरिटी बीमारियों को लेकर डॉक्टर के पास जाओ तो डॉक्टर कहते हैं कि लाइफ स्टाइल डिज़ीज़ है।
अपनी लाइफ स्टाइल को ठीक करिए, तो हम लाइफ स्टाइल में खाना-पीना, एक्सरसाइज़, नींद को ठीक करते हैं। फिर भी बहुत बातें हो जाती हैं। फिर डॉक्टर के पास जाते हैं- डॉक्टर साहब खाना भी ठीक है, सब कुछ ठीक है तो डॉक्टर कहते स्ट्रेस लाइफ स्टाइल है। तो लाइफ स्टाइल मतलब आत्मा जो मस्तिष्क में बैठी है उसको लाइफ कहते हैं। जब वो आत्मा लाइफ निकल जाती है तो ये डेड बॉडी है। तो जब डॉक्टर हमें कहे लाइफ स्टाइल को ठीक करिए तो लाइफ स्टाइल मतलब सोचने का तरीका, बात करने का तरीका, व्यवहार करने का तरीका और काम करने का तरीका।
तो मेरे हर संकल्प का प्रभाव मेरे शारीरिक स्वास्थ्य पर पड़ता है। उसके बाद नेक्स्ट फीलिंग्स हेल्थ, फिर नेक्स्ट हर वायब्रेशन हमने जिसके बारे में सोचा चाहे वो उसी कमरे में बैठा है, चाहे वो दूसरे देश में बैठे हैं, हम फोन उठाकर मैसेज टाइप करें फिर वो मैसेज वहां भेजे, उसमें तो कुछ सेकण्ड, कुछ एक मिनट लग जाता है। लेकिन जैसे ही आपने थॅाट क्रियेट किया तो वो दूसरों तक तुरंत पहुंच जाता है।
हमारे हर थॉट पर ही हमारा मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य निर्भर
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