भक्ति में भी पुकारते हैं ना – एक बार हाथ पकड़ लो। तो बाप हाथ पकड़ते हैं, हाथ में हाथ देकर चलाना चाहते हैं फिर भी हाथ छोड़ देते हैं तो भटकना नहीं होगा तो क्या होगा? तो अब अपने आपको भटकाने के निमित्त भी स्वयं ही बनते हो। जैसे कोई भी योद्धा युद्ध के मैदान पर जाने से पहले ही अपने शस्त्र को, अपनी सामग्री को साथ में रख कर फिर मैदान में जाते हैं। ऐसे ही इस कर्मक्षेत्र रूपी मैदान पर कोई भी कर्म करने अथवा योद्धे बन युद्ध करने के लिए आते हो, तो कर्म करने से पहले अपने शस्त्र अर्थात् यह अष्ट शक्तियों की सामग्री साथ रख कर फिर कर्म करते हो? व जिस समय दुश्मन आता है उस समय सामग्री याद आती है? तो फिर क्या होगा? हार हो जाएगी।
सदा अपने को कर्मक्षेत्र पर कर्म करने वाले योद्धे अर्थात् महारथी समझो। जो युद्ध के मैदान पर सामना करने वाले होते हैं वह कभी भी शस्त्र को नहीं छोड़ते हैं। ऐसे ही सोते समय भी अपनी अष्ट शक्तियों को विस्मृति में नहीं लाना है अर्थात् अपने शस्त्र को साथ में रखना है। ऐसे नहीं- जब कोई माया का वार होता है उस समय बैठ सोचो कि क्या युक्ति अपनाऊं? सोच करते-करते ही समय बीत जाएगा। इसलिए सदैव एवररेडी रहना चाहिए। सदा अलर्ट और एवररेडी रहना चाहिए। सदा अलर्ट और एवररेडी अगर नहीं हैं तो कहीं ना कहीं माया धोखा खिलाती है और धोखे का रिज़ल्ट क्या होता? अपने आपको देख कर ही दु:ख की लहर उत्पन्न हो जाती है। अपनी कमी ही कमी को लाती है। अगर अपनी कमी नहीं है तो कब भी कोई भी कमी नहीं आ सकती। बेगमपुर के बादशाह कहते थे ना। यह इस समय की स्टेज है जबकि गम की दुनिया सामने है। गम और बे-गम की अभी नॉलेज है। इसके होते हुए उस स्थिति में सदा निवास करते, इसलिए बेगमपुर का बादशाह कहा जाता है। भले बेगर हो लेकिन बेगर होते भी बेगमपुर के बादशाह हो। तो सदा इस नशे में रहते हो कि हम बेगमपुर के बादशाह हैं? बादशाह अथवा राजे लोगों में ऑटोमेटिकली शक्ति रहती है राज्य चलाने की। लेकिन उस ऑटोमेटिक शक्ति को अगर सही रीति काम में नहीं लगाते हैं, कहीं ना कहीं उल्टे कार्य में फंस जाते हैं तो राजाई की शक्ति खो लेते हैं और राज्य पद गंवा देते हैं। ऐसे ही यहाँ भी तुम हो बेगमपुर के बादशाह और सर्व शक्तियों की प्राप्ति है। लेकिन अगर कोई न कोई संगदोष व कोई कर्मेन्द्रिय के वशीभूत हो अपनी शक्ति खो लेते हो तो जो बेगमपुर का नशा व खुशी प्राप्त है वह स्वत: ही खो जाती है। जैसे वह बादशाह भी कंगाल बन जाते हैं, वैसे ही यहाँ भी माया के अधीन होने के कारण मोहताज, कंगाल बन जाते है तब तो कहते हैं – क्या करें, कैसे होगा, कब होगा? यह सभी है कंगालपन, मोहताजपन की निशानी। कहां न कहां कोई कर्मेन्द्रियों के वश हो अपनी शक्तियों को खो लेते हैं। समझा?
परमात्म ऊर्जा
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