त्याग और तपस्या की मूर्ति बनो तो सेवायें अपने आप होंगी

0
369

बाबा की दिल को खुश करने के लिए, सारी उम्र सफल करने के लिए सेवा में सदा हाजि़र रहे हैं। बाबा के जो अच्छे-अच्छे महावाक्य हैं वो कभी भूलते नहीं हैं, बाकी कोई बात याद आती नहीं है। मैं कोई को भी फिकर में या भारी नहीं देखना चाहती हूँ। कोई घड़ी भी कोई कारण से भारी हो जाये, तो भी सेकण्ड में हल्का हो जाओ। कोई बात नहीं, लेट गो। शान्ति से काम लो। यह एक्टिंग नहीं है वास्तव में राजाई है। बाबा ऐसे ही राजा नहीं बना, बाबा को गालियां भी खानी पड़ी। बच्चों के भी कई प्रकार के खेल देखे। अच्छे-अच्छे बच्चे जो बाबा-बाबा कहें, वो कल बाबा कौन है? मैं तो जा रहा हूँ…। मेरे को भी कहने लगे तुम सब मूर्ख हो, अपनी जीवन गंवायेगी, तुम भी सोचो अपना। ऐसे अच्छे-अच्छे को भी संशयबुद्धि होते हुए देखा है। इससे बचने के लिए संग और अन्न की बहुत सम्भाल चाहिए।
बाबा ने जो परहेज सिखाई है जितना उस परहेज में रहें उतना फायदा है। पहले-पहले जब सेवा में निकले, कुछ भी खाने को नहीं होता था सिर्फ रोटी बनाके नमक लगाके खाते थे, पर फिर भी वो दिन बड़े प्यारे थे, उन दिनों में बहुत अच्छा लगता था। त्याग, तपस्या से जो सेवायें हुई हैं, वह अभी तक भी काम आ रहा है। अपने आप जिस समय जो चाहे वो हो जाता है, कभी भूल से भी कुछ मांगना नहीं पड़ा। पहले टूथ ब्रश भी नहीं यूज़ करते थे, नीम से ही दातून करते थे। तो जो बाबा ने कहा है किया है, कराया है। अभी भी मैं आपको कहती हूँ समय और संकल्प को सफल करना। एक भी संकल्प मेरा निष्फल न जाये। बाबा कहता है क्रक्रमैं बैठा हूँञ्जञ्ज हो जायेगा… बड़ी बात नहीं है, यह अनुभव करो।
सिर्फ त्याग वृत्ति, तपस्या वृत्ति की मूर्ति रहो तो सेवायें आपेही होती और बढ़ती रहेंगी। कई प्रकार की सेवायें हुई हैं परन्तु बड़ी सुख, शान्ति और प्रेम से सेवा हुई है। मैं अभी यही चाहती हूँ जैसे हमने निमित्त बनके सेवायें की हैं, सबने मिल करके की हैं वैसे करें तो कहीं कोई प्रॉब्लम नहीं होगी।

कोई जवाब दें

कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें!
कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें