पहले-पहले आत्मा का अभ्यास पक्का चाहिए

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हम त्रिकालदर्शी हैं तो क्यों का क्वेश्चन उठ सकता है क्या? तीनों कालों को जानते हैं और वर्तमान को ही नहीं समझ रहे हैं इसीलिए समस्या के टाइम क्यों का शब्द नहीं आना चाहिए। अगर व्यर्थ संकल्प चलना शुरू हो जाता है तो हमारी एकाग्रता खत्म हो जाती है, और एकाग्रता खत्म होने के कारण जो समस्या का हल होना चाहिए वो तो होता ही नहीं, फिर समझते हैं ड्रामा में शायद मेरा पार्ट ही ऐसा है… ऐसा सोचते और दिलशिकस्त हो जाते हैं। तब बाबा कहते हैं कि तपस्या माना मन-बुद्धि की एकाग्रता। तपस्या माना योग में बैठ जाना नहीं, योग लगेगा ही नहीं क्योंकि मन और बुद्धि एकाग्र है ही नहीं तो कैसे योग लगेगा और तपस्या कैसे होगी? तो पहले यह चेक करो कि हमको अगर तपस्वी बनना है, तपस्या में सक्सेस(सफल) होना है तो पहले मेरा मन एकाग्र हो। ऐसे नहीं मैं अभी सोचूँ और मन आधा घंटे के बाद जाके मेहनत करके ठीक हो। उसमें आधा घंटा तो चला गया।
तो अगर आप अच्छी तरह से तपस्या करना चाहते हैं तो मन और बुद्धि को एकाग्र करो। एकाग्रता का आधार है कन्ट्रोलिंग और रूलिंग पॉवर। रूलिंग पॉवर का मतलब यह है कि मैं सचमुच अपने को आत्मा मालिक हूँ, रूलर हूँ… ऐसे समझके चलना क्योंकि जब तक हम मन के मालिक के रूप की स्मृति में नहीं रहेंगे तब तक मन वश में हो नहीं सकता। तो मन को एकाग्र होने के लिए हमको पहला पाठ पक्का करना होगा,मैं आत्मा मालिक हूँ। आत्मा का पाठ अगर हमारे मन में पक्का नहीं है तो कितना भी पुरूषार्थ करेंगे तो भी आप किसी बात में सक्सेस नहीं हो सकेंगे। तो जब तक चलते-फिरते आत्मा का पाठ हमारा पक्का नहीं है तो परमात्मा से कनेक्शन जैसे हम चाहते हैं वैसे नहीं होगा, क्योंकि हम दूसरों को समझाते हैं, आप भगवान को याद करना चाहते हैं तो भी क्यों नहीं याद आता है? क्योंकि अपने को शरीर समझके करते हो, अपने को आत्मा समझके करो तो परमात्मा याद आयेंगे, ऐसे दूसरों को पाठ पढ़ाते हैं। तो पहले यह चेक करें हम आत्म अभिमानी की स्टेज में पास हैं? क्योंकि देहभान कैसे छूटेगा? आत्म-अभिमानी बनने से।
हम लोगों ने शुरू में इसका अभ्यास बहुत किया है, चलते-फिरते भी इसका अभ्यास किया है। अभी तो आने से ही चाहे घर की सेवा, चाहे बाहर की सेवा में लग गये। आत्मा का पाठ हम लोगों को पक्का करना चाहिए। मैं आत्मा रूप में स्थित नहीं होंगी तो मन मेरा क्यों मानेगा? तो सदा याद रखो मैं आत्मा करावनहार हूँ कर्मेन्द्रियों द्वारा, और बाबा हमारा करावनहार है इसलिए मैं निमित्त हूँ। अगर एक करावनहार शब्द भी हमको याद आवे तो उसमें मजा है ना, मालिक बनके मैं करा रही हूँ। तेा हम आत्मा मालिक हैं, करावनहार हूँ, यह मेरी कर्मेन्द्रियां जो हैं वो कर्मचारी साथी हैं क्योंकि इनके बिना तो काम नहीं चल सकता है ना! तो पहले आत्मा का पाठ चेक करो, हम लोगों का फाउण्डेशन ही यह है। सारा दिन कर्म करते यह याद रहता है कि मैं आत्मा हूँ, परमात्मा की सन्तान हूँ फिर बाबा जो भी स्वमान देता है… उसे याद करो।

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