मुख पृष्ठदादी जीदादी जानकी जीहमारे प्रश्न और दादी जी के उत्तर

हमारे प्रश्न और दादी जी के उत्तर

प्रश्न:- अपने को कन्ट्र्रोल करना और दबाना इन दोनों में क्या अन्तर है? खास करके पांच विकारों को निकालने में इन दोनों को हम किस तरह से यूज़ कर सकते है?
उत्तर:- जब हमें ज्ञान मिलता है तो पांच विकारों का फोर्स हमको चला नहीं सकता। पहले पांच विकारों का फोर्स था, हमारे में शक्ति नहीं थी, जो किसी भी विकार से अपने को आज़ाद क र सकें। छोटा-मोटा विकार होते हुए भी हम महसूस नहीं करते थे कि हम विकारी हैं। अभी इतनी समझ आ गई है तो हम विकार को विकार समझते हैं, उसमें भी हमारे अन्दर सूक्ष्म कोई विकार न हो, यह बुद्धि समझती है। तो दबा नहीं रहे हैं, निकाल रहें हैं। डॉक्टर कहते हैं ना बीमारी को दबाओ मत। दबाने से फिर निकल आयेगी। बीमारी बढ़ जायेगी। इसलिए हम अन्दर से, ज्ञान-योग से सफाई कर रहे हैं। ज्ञान से, समझ से, बाबा की याद से विकारों को निकाल रहे हैं। इसके लिए हमें अपने ऊपर कन्ट्रोल रखना है। दबाना नहीं है, निकालना है। हम मालिक हैं, कन्ट्रोल है हमारा। जैसे माइन्ड को हम दबाते नहीं हैं, हमारे ऑर्डर में है, कन्ट्रोल में है। हम उसके ऑर्डर में नहीं हैं। वह हमारे ऑर्डर में है। जितना हमारे आर्डर में आता जा रहा है तो हम महसूस करते हैं कि हम फ्री हो रहे हैं। हमारे में जो संस्कार थे, जो स्वभाव था, विकार भरा हुआ था, उनसे फ्री हो रहे हैं।

प्रश्न:- आत्माओं के साथ लेन-देन, खासकर ब्राह्मण परिवार के अन्दर सौगातों का लेन-देन करना, इसका क्या हिसाब-किताब बनता है, लेना-देना चाहिए या नहीं?
उत्तर:- अगर आप जीवनमुक्ति का सुख लेना चाहते हो तो इस लेन-देन से भी फ्री हो जाओ। लेना फिर देना कितना चिन्तन है। ऐसे नहीं हम रूखे बनते हैं लेकिन दिल से स्नेह देना जानते हैं। दिल से स्नेह देना, रूहानी स्नेह देना वो है सच्चा। जो दुनिया करती है, वह हम करें तो क्या फायदा! हाँ, बाबा के घर से आप लोगों को सौगात मिलती है, तो यह याद रहे कि बाबा ने मुझे दिया। साकार बाबा की मुरलियों में है बच्चे देहधारियों से कोई सौगात नहीं लेना है। याद आयेगा इसने मुझे यह दिया था। खास किसी के साथ लेन-देन होता है तो हिसाब-किताब भी जुट जाता है। पहले एक दो को जानते भी नहीं थे। छोटी-मोटी सौगातें देेकर सम्बन्ध जुट गये। क्या ज़रूरत है! अगर सच्चा वैरागी, त्यागी, तपस्वीमूर्त बनना है तो अपने को इस धन्धे से छुड़ाओ। यदि किसी को इच्छा होती है तो बाबा के घर में ये चीज़ सबको मिले तो दादी को दे दो, दादी सबको बांटेगी। हम क्यों हाथ से देवें? जितना लेन-देन कम उतना भाग्यशाली हैं। दिन-प्रतिदिन टाइम थोड़ा है, पुरूषार्थ बहुत करना है। जितना टाइम, मनी बचा सकते हैं, एनर्जी बचा सकते हैं, सफल कर सकते हैं तो फालतू खर्च क्यों करें? टाइम भी जाये, मनी भी जाये, बुद्धि भी जाये। होता क्या है? एक जगह से सौगात मिलेगी, दूसरे को दे देेंगे। नहीं तो दूसरे को देने के लिये बाज़ार से लायेंगे। तो यह धन्धा तो दुनिया वाले भी करते हैं, जब हम उनसे फ्री हो जायेंगे तो पूरे तपस्वीमूर्त का अनुभव करेंगे, स्टूडेन्ट लाइफ का रस आयेगा।

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