हमारे हर थॉट पर ही हमारा मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य निर्भर
जैसा कि हमने पिछले अंक में पढ़ा कि मेरे हर संकल्प का प्रभाव मेरे शारीरिक स्वास्थ्य पर पड़ता है। उसके बाद नेक्स्ट फीलिंग्स हेल्थ, फिर नेक्स्ट हर वायब्रेशन हमने जिसके बारे में सोचा चाहे वो उसी कमरे में बैठा है, चाहे वो दूसरे देश में बैठे हैं, हम फोन उठाकर मैसेज टाइप करें फिर वो मैसेज वहां भेजे, उसमें तो कुछ सेकण्ड, कुछ एक मिनट लग जाता है। लेकिन जैसे ही आपने थॅाट क्रियेट किया तो वो दूसरों तक तुरंत पहुंच जाता है। अब आगे पढ़ेंगे…
आज हम रिश्तों में बहुत मेहनत करते हैं क्योंकि हम रिश्तों में बोलते क्या हैं, व्यवहार क्या करते, एक -दूसरे के लिए करते क्या हैं, उस पर बहुत मेहनत करते हैं। हम सोचते क्या हैं एक-दूसरे के लिए हम उस पर ध्यान नहीं देते और इसलिए इतनी मेहनत करने के बावजूद भी रिश्ते थोड़े से बिखरते जा रहे हैं। आजकलमिसअंडरस्टैंडिंग जल्दी हो जाती है, गाँठें जल्दी आ जाती हैं। फिर गाँठें आ गई तो खोलते नहीं हैं, बातों को पकड़ कर रखते हैं। झुकने की शक्ति नहीं है, बात को खत्म करने की ताकत नहीं है, क्षमा करना मुश्किल लगता है इसीलिए रिश्ते बिखरते जा रहे हैं। और वो शब्द डायवोर्स जो 25-30 साल पहले बहुत ही कम हुआ करता था, होता था तो लोग बताते भी नहीं थे। लेकिन आज आम होने लग गया। हमारे पास जब कपल्स आते हैं तो हमें तो 25-30 साल से दिख रहा कि समाज में परिवर्तन किस डायरेक्शन में जाता है। तो 20 साल पहले तक ठोस कारण होता था कि क्यों अलग होना है और बड़े-बड़े रिज़न होते थे। फिर 10 साल पहले तक छोटे-छोटे रिज़न में भी, नहीं हमें नहीं रहना, इतनी सी बात में हम नहीं एडजस्ट कर सकते इतना, कहते हैं हमें नहीं रहना इनके साथ। क्यों नहीं रहना? तो बस नहीं रहना। कोई रिज़न होगा ना, ऐसे कैसे नहीं रहना! मुझे इस रिश्ते में इनके साथ कुछ नहीं मिल रहा है, सामने वाला कहता है मुझे भी नहीं मिल रहा है। और जब मिल नहीं रहा तो क्यों रहना, क्यों इतना एडजस्ट करना, जब मिल नहीं रहा है। क्योंकि उस रिश्ते में किस लिए गये हैं? लेने के लिए।
रिश्ते में किस डायरेक्शन में जाना चाहिए? रिश्ते में किस डायरेक्शन में हाथ होना चाहिए? लेने के लिए या देने के लिए? रिश्ता मतलब देना, देना, देना, सिर्फ देना, हमेशा देना और सबको देना। फिर मुझे कौन देगा? मुझे कैसे मिलेगा? अगर मैंने सबको देना, देना, देना क्योंकि बार-बार मन में यह संकल्प आता है मैंने इतना किया, मैंने इतना किया, मैंने इसके लिए इतना किया, मैंने परिवार के लिए इतना किया, मेरी तो कोई वैल्यू नहीं है, मुझे तो कोई कुछ नहीं मिल रहा है सिर्फ मैं ही सबको देते जा रही हूँ। तो मैं अगर सबको देती गई तो मुझे कहां से मिलेगा?
मान लीजिए हमने किसी पर गुस्सा किया। एक मिनट आँख बंद कर वो सीन सामने लेके आयें, जब आप दूसरों को गुस्सा दे रहे थे, उसको डांट रहे थे, हम किसको डांट रहे थे? हम उनको डांट रहे थे। हम गुस्सा किसको दे रहे थे? हम उनको दे रहे थे। हम देने वाले थे और वो लेने वाले थे। जिसको मिल रहा था सिर्फ आप साक्षी होकर उस सीन को देखो। किस पर असर ज्य़ादा हो रहा था देने वाले पर या जिसको मिल रहा था? और यहीं बैठे-बैठे उस सीन में जाओ और अपने घर के ड्रावर से पल्स ऑक्सीमीटर उठायें और जो गुस्सा दे रहा था उसकी भी पल्स देखें और जिसको गुस्सा मिल रहा था उसकी भी पल्स देखें और खुद यहां बैठ कर उस डिसप्ले पर देखो किसका हिला हुआ दिखाई दे रहा था, जो गुस्सा दे रहा था या जो गुस्सा ले रहा था। किसकी हार्ट बीट चेंज हुई थी, जो दे रहा था या जो ले रहा था। जब मन में असर पड़ रहा है, शरीर पर असर दिखाई दे रहा है तो इस बात को एक बार फिक्स कर लीजिएगा कि जो देता है देते समय सबसे पहले उसको ही मिलता है।
एनर्जी का इक्वेशन ये नहीं है कि मैंने दिया और मैंने आपसे लिया, नहीं। एनर्जी का इक्वेशन है मैंने आपको दिया और देते समय वो मुझसे फ्लो होता हुआ आपके पास गया। तो देना और लेना नहीं है। लेते हुए देना ये एनर्जी का इक्वेशन है। तो इस बार फिक्स कर लीजिए रिश्ते का मतलब देना, देना और देना। और सबको वो देना जो हमें चाहिए।



