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सकारात्मक सोच

एक गांव में काफी समय से कुछ बन रहा था यानी कि किसी प्रकार की इमारत बन रही थी। उसमें कई मजदूर काम कर रहे थे। तभी उस गांव में से एक संत गुज़र रहे थे। जिन्होंने काफी लोगों को काम करते हुए देखा।
उनसे रहा नहीं गया और उन्होंने एक व्यक्ति के पास जाकर पूछा कि भाई यहाँ पर क्या बन रहा है? उस व्यक्ति ने कहा बाबा यहाँ पर कुछ भी बने मुझे उससे क्या मतलब, मेरी जि़ंदगी बहुत खराब है मैं यहाँ पर मजदूरी कर रहा हूँ। मुझे कोई मतलब नहीं चाहे कुछ भी बने।
जब शाम होगी तब मुझे मेरा पैसा मिलेगा और मैं अपने परिवार को भोजन खिला सकूंगा मुझे इसके सिवा और कुछ नहीं पता। संत समझ गया कि यह व्यक्ति बहुत दु:खी है।
संत दूसरे व्यक्ति के पास गया और उससे पूछा कि भाई यहाँ पर क्या बनेगा? उस व्यक्ति ने कहा बाबा यहाँ पर कुछ भी बने हमें क्या मतलब, हम तो सिर्फ काम कर रहे हैं हमें सिर्फ पैसे से मतलब है हम पूरे दिन मेहनत करते हैं परंतु हमें बहुत कम पैसा मिलता है।
जिससे हमें यह काम करने में आनंद नहीं आता। संत ने कहा कि यह कार्य में क्या उन्हें उतने पैसे नहीं मिलते हैं जितने मिलने चाहिए? व्यक्ति ने कहा हाँ मिलते हैं पर उसमें मेरा गुज़ारा नहीं होता।
संत तीसरे व्यक्ति के पास गया और उससे पूछा कि भाई यहाँ क्या बन रहा है? उस तीसरे व्यक्ति ने बताया कि बाबा जी यहाँ पर एक सुन्दर स्कूल बन रहा है जिसमें हमारे बच्चे सुकून से पढ़ेंगे।
पहले गांव में स्कूल नहीं था और गांव के बच्चों को दूर के गांव में नदी पार कर रोज़ाना स्कूल जाना पड़ता था जिससे बहुत ही कम बच्चे शिक्षित हो पा रहे थे। परंतु अब सरकार हमारे गांव में भी स्कूल बना रही है। जिससे मैं बहुत खुश हूँ।
तब संत ने पूछा तुम पर बहुत मेहनत पड़ती होगी, क्या तुम इससे खुश हो? उस व्यक्ति ने बताया कि बाबा यदि यह काम मुझसे फ्री में भी करवाया जाता तो मैं तब भी करता।
क्योंकि इस स्कूल में मेरे बच्चे पढ़ेंगे और बड़े होकर अच्छे व्यक्ति बनेंगे, मैं बहुत खुश रहता हूँ। मैं जब भी इस स्कूल का काम करने आता हूँ तो खुशी के कारण गाना भी गाने लगता हूँ।
क्योंकि यह मेरे अन्दर की खुशी है इसमें मेरे बच्चे पढ़ेंगे और वह बेहतर जीवन जिएंगे। मुझ पर भले ही मेहनत पड़ती है परंतु यह मेरे बच्चों के उज्ज्वल भविष्य के लिए है।
इसलिए मुझे नहीं लगता कि मुझ पर मेहनत पड़ती है। मैं अपने बच्चों का अच्छा पिता बनना चाहता हूँ और इस स्कूल के बनने में अपना योगदान देना चाहता हूँ।
संत ने उस व्यक्ति के सर पर हाथ रखा और उससे कहा कि तुम जीवन में सदा खुश रहोगे क्योंकि मैंने दूसरे व्यक्तियों से भी यही बात पूछी थी परंतु उन्होंने मुझे अपने दु:ख सुनाने शुरू कर दिए। पर तुमने मुझे अपने दिल की बात बताई कि तुम्हारे बच्चे जब इसमें पढ़ेंगे तो तुम्हें बहुत आनंद मिलेगा। उन व्यक्तियों के भी बच्चे इसमें पढ़ेंगे फिर भी वह खुश नहीं हैं, अपनी मेहनत और पैसों के कष्ट को दु:ख समझते हैं।

सीख : इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि हमें प्रत्येक कार्य में सकारात्मक सोचना चाहिए। यदि हम जीवन को नकारात्मक दृष्टि से देखते हैं तो हमें अपना जीवन काफी ज्य़ादा मुश्किलों से भरा दिखाई देता है परंतु यदि हम हर चीज़ को सकारात्मक तरीके से देखते हैं तो हमारा जीवन काफी आसान हो जाता है। हमें हर लम्हे में खुशी ढूंढनी चाहिए यही जीवन में खुश रहने का मूल मंत्र है।

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