मुख पृष्ठब्र. कु. सूर्यमन की बातें - राजयोगी ब्र.कु. सूरज भाई

मन की बातें – राजयोगी ब्र.कु. सूरज भाई

प्रश्न : मेरा नाम सागर लेले है। मैं दिल्ली से हूँ। मेरे मित्र के पिता जी को ब्रेन ट्यूमर है और वो भी लास्ट स्टेज पर। डॉक्टर्स ने बहुत सी दवाइयां उन्हें सजेस्ट करीं हैं लेकिन कोई भी दवाई उन्हें असर नहीं कर रही है। अपने पिता की ऐसी हालत देखकर मेरा मित्र बहुत दु:खी और उदास रहता है। तो क्या राजयोग में ऐसा कोई उपाय है जिससे मैं उनकी मदद कर सकता हूँ?
उत्तर : इसमें हम सभी को एक विधि ज़रूर बताते हैं, आप सभी इससे परिचित भी हैं। वो विधि यही कि अपने दोनों हाथों को मलते हुए जहाँ ब्रेन में ट्यूमर है वहाँ राइट हैंड से एनर्जी देनी है। हाथों को मलते हुए मैं मास्टर सर्वशक्तिवान हूँ, ये स्वमान लेकर अपना राइट हैंड उस जगह पर रखेंगे। ऐसा फील करेंगे जैसे लेज़र बीम की तरह बहुत शक्तिशाली किरणें उसको डिसोल्व कर रही हैं। वो जो ट्यूमर है वो नष्ट हो रहा है। ये विज़न भी बनायेंगे। बाकी इनको राजयोग भी सीख लेना चाहिए और राजयोग का दान भी इनको करना चाहिए। पानी चार्ज करके पिलाना है, योगदान भी करना है। और उसको डिसोल्व करने के लिए एनर्जी भी देनी है। और अगर दूर हैं तो योग के द्वारा तो हम उन्हें एनर्जी पहुंचा सकते हैं। लेकिन ब्रेन को जो एनर्जी देनी है वो पास होकर हाथ से ही देनी होगी।

प्रश्न : मैं एक डॉक्टर हूँ। पेशेन्ट्स को अच्छे रिज़ल्ट्स मिल सकें इसके लिए मुझे क्या करना चाहिए?
उत्तर : इसमें इन्हें कुछ चीज़ें कर लेनी चाहिए। एक तो पेशेन्ट्स को अच्छा चिंतन सिखाना होगा। जहाँ ये हैं, वहाँ कुछ अच्छी क्लासेज़ रखें। हमारे यहाँ सीडी हैं वो उनको दें ताकि पेशेन्ट्स का चिंतन पॉजि़टिव हो जाये। बीमारियां मनुष्य को बहुत निगेटिव कर देती हैं। लम्बे काल की बीमारी निराश भी बहुत कर देती है। मनुष्य ये भी सोचने लगता है कि पता नहीं ठीक होंगे या नहीं। इनको हर पेशेन्ट्स को आत्मा देखकर तीन मिनट योग के वायब्रेशन्स भी देने चाहिए। इसमें थोड़ी-सी इनको मेहनत तो करनी पड़ेगी। सवेरे उठकर आधा घंटा आज जो पेशेन्ट्स आयेेंगे उनको वायब्रेशन्स दें। शाम को कार्य समाप्ति के बाद जो पेशेन्ट्स आएं आधा घंटा पुन: उन्हें योग के वायब्रेशन्स दें। सब्कॉन्शियस माइंड का हर पेशेन्ट्स को ज़रूर सिखायें। एक पर्चा छपाके रख लें। उसमें ये विधि लिखी हो कि रात को सोने से पहले वो ये अभ्यास करें पाँच बार कि मैं इस बीमारी से मुक्त हो गई हूँ। मैं सम्पूर्ण स्वस्थ हूँ। मैं बहुत खुश हूँ। मेरा ये बॉडी बिल्कुल हेल्दी है। मैं इस बीमारी से मुक्त हूँ। बस इतना करने से मैं समझता हूँ इनकी रिज़ल्ट डबल तो हो जायेगी।

प्रश्न : मेरा नाम पराजक्ता है। बाबा कहते हैं ज्वालामुखी योग करो। मैं जानना चाहती हूँ कि ये ज्वालामुखी योग कैसे किया जाये और इसके लिए क्या करना होगा?
उत्तर : योग को ही ये शब्द दिया गया है। जब योग में मनुष्य की बुद्धि सम्पूर्ण रूप से एकाग्र हो जाती है तब परमात्म स्वरूप के अलावा उसे कुछ नहीं दिखाई देता। तब परमात्मा की शक्तियां उसमें प्रवेश करके उसके विकर्मों को और विकारों को नष्ट करने लगती है। यानी ये योग एक अग्नि बन जाती है। जिस अग्नि से विकर्म और विकार नष्ट हो जाते हैं। इसलिए इस योग को ज्वाला स्वरूप योग कहते हैं। ज्वाला की तरह ये गंदगी को जलाकर नष्ट कर देती है। इसकी प्रैक्टिस यही है कि मैं आत्मा हूँ यहाँ भृकुटि में, देह से न्यारी और बिल्कुल निराकार अपने को फील करें। और फिर मन-बुद्धि से अपने को ले चलें ऊपर परमधाम में और सर्वशक्तिवान के साथ बैठ जायें। जैसे उसकी किरणें मेरे अन्दर समाने लगें। बस इसी फीलिंग में कुछ मिनट तक बैठे रहें तो ये हो जायेगा ज्वाला स्वरूप योग।

प्रश्न : मेरा नाम गजेन्द्र है। मृत्यु के समय मनुष्य शारीरिक और मानसिक दु:ख, तकलीफ का अनुभव न करें उसके लिए उसे क्या करना चाहिए?
उत्तर : ये बहुत ही इम्र्पोटेंट और अति गुह्य बात है। इसका मतलब है कि इन्हें ये अच्छी तरह मालूम है कि मृत्यु के समय मनुष्य बहुत पीडि़त होता है। तो सबको ये होता है कि न मानसिक रूप से पीड़ा हो और न शारीरिक रूप से पीड़ा हो। देखिए जिसने जीवन बहुत सुन्दर बिताया है, जिसने सबको बहुत सुख दिया है, जिसका पुण्यों का खाता बहुत बढ़ा-चढ़ा है, जिसने बहुत अच्छे वायब्रेशन सभी को दिए हैं। सबकी पीड़ाएं हरी हैं, अन्त में उसको कोई पीड़ा नहीं होती। और जिसने सबको पीड़ा दी है, उनका अन्त बहुत पीड़ा देने वाला होता है। जो योगाभ्यास भी करते हैं या जो भक्ति भी करते हैं उनका भी जीवन बहुत स्वच्छ हो, निर्मल हो। सत्यता पर आधारित हो। और लम्बाकाल योगाभ्यास किया जाये। जिसे शिवबाबा अपने महावाक्यों में भी कहते हैं अशरीरीपन का इतना अभ्यास किया जाए कि अन्तिम समय में एक परमपिता के सिवाय कुछ भी याद न आए।
चारों ओर से अपने को इतना डिटैच कर लिया जाए कि कोई भी बन्धन हमको अपनी ओर आकर्षित न करे। उस टाइम क्या होता है, मनुष्य तो अनकॉन्शियस जैसा रहता है अब उसे याद आता है सबकुछ। उसकी जो इनर कॉन्शियस, आंतरिक शक्ति उनकी बहुत क्लीयर हो जाती है और उसने जो कुछ किया है वो सब उसे याद आने लगता है फिल्म की तरह। और वो पीड़ा पहुंचाने लगता है। क्योंकि जब मनुष्य करता है तो वो बहुत इगो में होता है कि मैंने बहुत अच्छा किया। लेकिन उस टाइम उसे रियलाइज़ होने लगता है कि ये कितना बुरा था, तुमने उसके साथ कितना बुरा किया। तुमने उसका सुख छीना, तुमने उसका धन हड़प लिया था। तुमने उसका मर्डर किया, तुमने उस पर झूठा केस किया, तुमने उसको फंसा दिया झूठे केस में। ये याद आता है और ये पनिशमेंट होती है। वो एक-एक मिनट की पनिशमेंट लम्बाकाल की पनिशमेंट होती है। वो सब याद आना ही पनिशमेंट होती है। भगवान पनिश नहीं करता, ये सब ऑटोमेटिक होता है। उसका मन बहुत पीडि़त होता है। पीड़ा उसकी देह से भी दिखाई देती है। अगर उसको कोई बीमारी है तो उसके मन की पीड़ा उस बीमारी के माध्यम से दृष्टिगोचर होने लगती है। श्वास रूकने लगता है। देखने वालों को लगता है कि ये व्यक्ति इस टाइम बहुत कष्ट भोग रहा है। एक तो मनुष्य को पूरा जीवन पुण्य कर्म करने चाहिए। ये नहीं कि अन्त में कर लेंगे, काशी में चले जाएंगे। द्वार पर बैठ जायेंगे कि हर लो पाप। नौ सौ चूहे खाके बिल्ली हज को चली, ऐसे काम नहीं चलेगा। पुण्यों का खाता मनुष्य को बढ़ाते ही चलना चाहिए। क्योंकि अन्तिम मोमेंट ऐसे होते हैं जिसमें मनुष्य का अपने पर भी कोई कन्ट्रोल नहीं रहता। जो नैचुरल उसने किया है ना वो नैचुरल उसके सामने आयेगा, जो उसको बहुत पीडि़त करेगा। ये सब अभ्यास करेंगे तो अन्त सुहाना होगा, सुहेला होगा।

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