मुख पृष्ठदादी जीदादी जानकी जीहमारे प्रश्न और दादी जी के उत्तर

हमारे प्रश्न और दादी जी के उत्तर

प्रश्न:- बाबा कई बार शुद्ध संकल्पों की शक्ति के बारे में बताते हैं परन्तु उस शक्ति को कैसे रियलाइज़ करें तथा उसे अपने जीवन में कैसे यूज़ करें?
उत्तर:- हर एक कम से कम एक महीना सब बातों को भूल, एकाग्रता की शक्ति से पवित्र व शुद्ध संकल्पों में स्थित रहने का अभ्यास करे। जिन बातों से हमारा काम नहीं है उसके संकल्प चलाने की कोई ज़रूरत नहीं। जब भी चांस मिलता है तो अपने संकल्पों को शान्त, शुद्ध बनाने का अभ्यास करें। अपने संकल्पों पर तरस खायें। कई बार काम दूसरा करता है और नोट हम करते हैं। इसे ये नहीं क रना चाहिए, ये ठीक नहीं कर रहा है, ये बड़ा अच्छा करता है। कर रहा है वो, और सोच रहे हैं हम। इससे अपने पवित्र शुद्ध संकल्पों को रियलाइज़ नहीं कर सकते। जब श्रेष्ठ संकल्प उत्पन्न होते हैं, संकल्प अच्छी क्वालिटी वाले होते हैं जो किसी को कमेंट करना, किसी को क्रिटिसाइज़ करना, किसी को करेक्शन करना…ऐसे धन्धे से छूट जाते हैं। हमारा काम है, किसी को अच्छी बात बताना, शुभ बात बताना। माने या नहीं माने यह उसकी मर्जी है। हम उसकी पीठ न करें। इससे शान्त, शुद्ध संकल्प चलना शुरू होते हैं, पहले शुद्ध संकल्प हो, फिर शान्त होंगे और शान्त संकल्प ही श्रेष्ठ होंगे।

प्रश्न:- ब्रह्मा बाबा को अपने पुरूषार्थ का वर्सा क्या मिलता है और ब्रह्मा बाबा ने अपना शरीर शिव बाबा को लोन में दिया है उसका वर्सा क्या मिलता है?
उत्तर:- शिवबाबा ने इस रथ का आधार लिया तो यह रथ भाग्यशाली हो गया। भागीरथ हो गया। इस मुख द्वारा हम भगवान के बोल सुन रहे हैं। इनके नयनों द्वारा भगवान हमें देखता। इसका उजूरा(रिटर्न) मिला जो इनके भी नयन, बुद्धि उनके जैसी हो गई। हमारे लिए दोनों बाबा एक बराबर हो गए हैं। शिवबाबा के आने से इनकी जीवन हीरे जैसी बन गई, हीरो एक्टर बन गया। ड्रामा में हीरो पार्टधारी बन गया। यह भी जैसे वर्सा मिल गया। परन्तु यह भी कमाल की बात है जो उसको रथ देते हुए कहता है कि मेरा नहीं, ये कहता है मेरा नहीं। शिवबाबा इसमें हमको अपनी याद दिला रहा है। ये शिवबाबा को याद कर रहा है। ऐसे नहीं शिवबाबा को तन देकर ब्रह्मा बाबा बेफिक्र हो गया। नहीं, बहुत पुरूषार्थ किया। कभी बाबा को अलबेला नहीं देखा। रात को दो बजे भी तपस्या में बैठा हुआ देखा। फिर करनी ऐसी की जो नारायण बना। उसने कराया, इसने किया। करानेवाले की महिमा अपनी, करने वाली की अपनी। बाबा को सदा अटेन्शन रहते हुए देखा है। कार्य व्यवहार में रहते नष्टोमाहा अनासक्त देखना हो तो बाबा को देखो, खुश मिजाज देखना हो तो बाबा को देखो, गम्भीर और सयानापन देखना हो तो बाबा को देखो। बाबा प्रश्नों का उत्तर बड़ी युक्ति से, प्यार से ऐसा देगा जो खुश कर देगा। तो अपने पुरूषार्थ से इसने यह श्री नारायण पद पाया है। प्रजापिता, जगतपिता बना है।

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