परमात्मा कहाँ से अवतरित होता है, क्यों, कब और किस रूप में अवतरित होता है और अवतरण अथवा दिव्य जन्म का वास्तविक रहस्य क्या है, इसका भेद भी अवतरित होने वाले भगवान स्वयं ही खोल सकते हैं।
पिछले अंक में आपने पढ़ा कि इसी प्रकार परमात्मा गुरु भी अपने अवतरण द्वारा अपना कर्तव्य करता और प्रत्यक्ष में उसका परिचय देता है। अन्य कोई भी मनुष्यात्मा नहीं बता सकेगी कि भारतवासियों का वास्तविक और आदि सनातन धर्म क्या है, किस ने स्थापन किया और कब। मनुष्यात्मा स्वयं भी उस धर्म में पूर्ण रूपेण स्वत: ही स्थित नहीं हो सकती – उस धर्म की पुन: स्थापना का महत्वपूर्ण कार्य करने का दम भरना तो उसके बस की बात ही नहीं। अब आगे पढ़ेंगे…
परमात्मा ही माता-पिता, सखा, स्वामी, देव-देव इत्यादि के संबंध की भासना दे सकता
”त्वमेव माताश्च पिता त्वमेव…” इत्यादि स्तुति एक माता-पिता, गुरु स्वामी परमात्मा ही की गाई जाती है। कोई भी मनुष्य इन सभी रूपों से मिल-जुल नहीं सकता। यह परमात्मा की ही कमाल है कि साधारण वृद्ध मनुष्य तन का आधार लेकर भी इन सब सम्बन्धों का अनुभव प्रदान करता है। अत: गीता के भगवान जब अवतरित होते हैं तो उन ही पर यह उक्ति घटती है, उसके ही ये सब सम्बन्ध आत्मा के साथ हैं भी सही।
परमात्मा ही कर्म की गहन गति बताता है
कर्मों की गति कर्मों का फल देने वाला ही जान सकता है, अन्य कोई नहीं। कर्मों का फल देने वाला तो एक परमात्मा ही है। अत: वह गीता का भगवान ही अवतरित होकर कहता है- ” हे मनुष्यात्माओं, कर्मों की गति बड़ी गुह्य है। विद्वान, पण्डित इत्यादि भी इसके विषय में मोहित हैं। मैं तुम्हें कर्म का भी ज्ञान दूंगा। इसलिए तू मेरे द्वारा सुन कि कर्म क्या होता है।”
भगवान ही यह सत्य ज्ञान देते हैं कि तीर्थ-तप, दान-पुण्य, यज्ञ-पाठ इत्यादि कर्मकाण्ड से क्या फल मिलता है और कर्मयोग से क्या? लौकिक कर्म और लौकिक-विद्या प्राप्ति से क्या लाभ होता है और पारलौकिक विद्या से अथवा ईश्वरीय सेवा में लगने से तथा ईश्वरीय ज्ञान धारण करने से क्या लाभ होता है?
परमात्मा ही योग सिखाता है
कोई भी मनुष्यात्मा यह नहीं कह सकती कि पहले भी मैंने योग सिखाया था और अब उस योग का पुन: प्राय: लोप होने के कारण, मैं पुन: उसकी शिक्षा देने के लिए अवतरित हुआ हूँ। मनुष्यात्मायें यह बता ही नहीं सकती कि पहले यह योग कब सिखाया था, किस रूप में सिखाया था, क्यों सिखाया था, उस द्वारा क्या सिद्धि हुई थी, वह योग कब और कैसे प्राय: लोप हुआ, वह योग मार्ग है क्या, इत्यादि-इत्यादि। गीता का भगवान ही एकमात्र योगीराज(शिव) है जो अवतरित होकर ज्ञान देता और योग सिखाता है।
परमात्मा ही अपने अवतरण का गुह्य रहस्य खोलता है
परमात्मा कहाँ से अवतरित होता है, क्यों, कब और किस रूप में अवतरित होता है और अवतरण अथवा दिव्य जन्म का वास्तविक रहस्य क्या है, इसका भेद भी अवतरित होने वाले भगवान स्वयं ही खोल सकते हैं। चुनौति है कि अन्य कोई भी मनुष्यात्मा जो अपने को परमात्मा का अवतार मानती है, अवतरण के विषय में सत्य ज्ञान दे ही नहीं सकती।



