मुख पृष्ठब्र.कु. अनुजएकाग्रता लाने का मात्र एक आधार

एकाग्रता लाने का मात्र एक आधार

अगर इस दुनिया में थोड़ी भी, किसी भी चीज़ के लिए मेरी इच्छा है तो मेरा मन एकाग्र हो ही नहीं सकता। तो फिर क्या तरीका है? तरीका ये है कि अगर मुझे इस दुनिया से, हर चीज़ से वैराग्य आ जाए, डिस-इंट्रेस्ट हो जाए तो एकाग्रता नैचुरल हो जायेगी।

हम सभी एकाग्र होना चाहते हैं, कंसंट्रेट होना चाहते हैं और उसके लिए भिन्न-भिन्न युक्तियां भी अपनाते हैं कि कैसे अपने को एकाग्र करें, कंसंट्रेट करें। बहुत सारे टूल और टेक्निक का भी इस्तेमाल करते हैं कि ऐसा करो तो मन एकाग्र हो जाएगा। लेकिन एकाग्रता का एक पहलू तो ये है कि मैं किसी चीज़ पर एक बार में फोकस हो जाऊं। लेकिन कोई ऐसा उपाय नहीं है कि जिससे हम एक बार में सारी चीज़ों को पा लें और एकाग्र भी हो जायें। तो बात जो समझ में आती है वो ये है कि अगर इस दुनिया में मुझे कुछ भी चाहिए, कुछ भी माना कुछ भी चाहिए तो उस बात से तो हमारा मन भागेगा क्योंकि जब डिज़ायर है, इच्छा है तो ऑटोमेटिकली कुछ न कुछ थॉट चलेंगे, विचार चलेंगे और विचार जब चलेंगे तो हमारा मन भटकेगा, जायेगा। तो अगर इस दुनिया में थोड़ी भी, किसी भी चीज़ के लिए मेरी इच्छा है तो मेरा मन एकाग्र हो ही नहीं सकता। तो फिर क्या तरीका है? तरीका ये है कि अगर मुझे इस दुनिया से, हर चीज़ से वैराग्य आ जाए, डिस-इंट्रेस्ट हो जाए तो एकाग्रता नैचुरल हो जायेगी।
अब यहां पर ये भी बात समझनी है कि जिस डिस-इंट्रेस्ट या इस संसार से अगर मुझे कुछ भी नहीं चाहिए या वैराग्य आना जिसको कहते हैं, तो इसका अर्थ ये नहीं कि इस संसार में हमें रहना नहीं है, रहना है लेकिन जब हमको इस दुनिया में कुछ ना चाहने की इच्छा होगी तो ऑटोमेटिकली मन हमारा उस कर्म के प्रति फोकस हो जाएगा, जो हम करना चाहते हैं। अभी क्या हो रहा कि हम जो कर्म करते हैं उस कर्म के अलावा बहुत सारे विचार एक साथ हमारे आस-पास आ रहे होते हैं। जिससे जिस काम में हमारा मन लग भी रहा है उसमें भी पूरी तरह से एकाग्र नहीं हो पाता। तो परमात्मा सिखाते हैं- एक तो अभ्यास और दूसरा वैराग्य। वैराग्य का मतलब रहना इस दुनिया में ही है हमें अभी, जाना नहीं है लेकिन इस दुनिया में रहते हुए अपने आप को बार-बार याद दिलाना कि मैं कुछ दिन के बाद यहां से जाने वाला हूँ। तो जो चीज़ मैं करने जा रहा हूँ या जो कुछ मैं कर रहा हूँ वो चीज़ थोड़े दिन बाद चेंज हो जाएगी, खत्म हो जाएगी। तो उस चीज़ का जो फोकस है वो उतनी देर के लिए हमारा रहेगा। इसीलिए बार-बार इस बात को याद दिलाना और अभ्यास में लाना कि मैं अपने आप को इस आधार से तैयार करूं कि जो चीज़ के लिए मैं प्रयास करता हूँ वो प्रयास के बाद थोड़े दिन में दूसरा प्रयास शुरू हो जाता है।
तो एक अभ्यास और दूसरा वैराग्य अगर बढ़ता जाएगा तो ऑटोमेटिकली हमारी एकाग्रता बढ़ती जाएगी। इसी को परमात्मा यहां कहते हैं कि इस दुनिया में अगर तुमको कुछ भी चाहिए तो तुमको परमात्मा का जो साक्षात्कार है, परमात्मा के साथ जो जुड़ाव है वो नहीं हो सकता है। क्योंकि जब हमारा ध्यान और हमारी शक्ति बंट जाती है तो परमात्मा की शक्ति हमारे ऊपर कैसे आयेगी! इसीलिए वैराग्य लाया जाता है अभ्यास से। लेकिन वैराग्य लाने के लिए आपको गहरा ज्ञान चाहिए, गहरी समझ चाहिए। कई बार जब ये सारे लेख हम, या ये सारे जो फिचर्स पढ़ते हैं, लेख पढ़ते हैं तो हमारे अन्दर आता है कि फिर हम दुनिया में कैसे रहेंगे? दुनिया में रहेेंगे इच्छा तो होगी लेकिन वो इच्छा तंग नहीं करेगी।
कहने का मतलब जीना अलग बात है, लेकिन अपने आपको यहां से डिटैच होके जीना, शक्तिशाली होके जीना, उसका एक अलग अनुभव है, अलग आनंद है। इसीलिए ऋषि-मुनि-तपस्वी भी रहते थे और हम भी रहते हैं लेकिन हमारे और उनमें कितना अन्तर है वो किसी भी बात में बेफिक्र हैं, आराम से जी रहे हैं, जी रहे थे और हम सभी अगर अपने आप को ज्ञानी-योगी कहते हैं, हम अगर किसी भी बात में परेशान हैं तो इसका मतलब इच्छाएं ज्य़ादा हैं। तो जब ज्य़ादा इच्छा होगी, ज्य़ादा कामना होगी तो हमारा मन तो एकाग्र होगा नहीं। इसलिए वैराग्य का मतलब जो चीज़ है वो थोड़े दिन की यूज़ करने के लिए है, फिर बदल जाएगी। तो इस तरह से कर-कर के हम अपनी एकाग्रता को बढ़ा सकते हैं और परमात्मा से उन शक्तियों को हासिल कर सकते हैं जो हम करना चाहते हैं। तो क्यों न हम इसके ऊपर फोकस करें, काम करें और एकाग्रता से परमात्मा की शक्ति को अपने अन्दर और बढ़ायें।

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