कई लोग कहते हैं कि हम खुशी के बारे में सोचें या परिस्थिति से निपटने के बारे में सोचें! क्योंकि परिस्थितियाँ जल्दी-जल्दी बदलती रहती हैं। ऐसे में हम शारीरिक स्वास्थ्य पर ध्यान दें या मानसिक स्वास्थ्य पर, इसको समझना बहुत ज़रूरी है। एक सेकण्ड के लिए हम खुशी के बारे में सोचना साइड में रखते हैं। पहले, ये सोचें कि परिस्थितियों को प्रबंधित करने के लिए अपनी फिजि़कल स्टे्रन्थ यानी कि शारीरिक शक्ति भी तो चाहिए! आज अगर मैं बीमार हूँ तो गाड़ी लेकर ऑफिस में कैसे जाऊं? तो जब ये प्रश्न उठता है तो पहले अपना फिजि़कल स्टैमिना को देखूं या परिस्थितियों को हैन्डल करूँ। मुझे शारीरिक स्टैमिना के बारे में न सोचकर, पहले मुझे सिर्फ परिस्थितियों के ऊपर ही फोकस करना चाहिए। ऐसा ही होगा ना! फिर अगर शरीर स्वस्थ नहीं है तो वर्क पर कौन जाएगा? वर्क पर जाने का तो छोडि़ए, पहले ऑफिस जा कैसे सकेंगे! इसलिए सारे दिन के अन्दर में ये ज़रूर ध्यान रखना है कि मेरा शारीरिक स्वास्थ्य ठीक चल रहा है या नहीं। फिर भी भोजन तो खा लेना चाहिए। चलो आप एक या दो दिन भोजन छोड़ देंगे लेकिन प्रश्न ये है कि कितने दिन तक छोड़ेंगे? आज तो मनुष्य भागते-भागते भी खा रहे हैं, इधर-उधर से जंक फूड भी खा रहे हैं। अगर आपने भोजन स्कीप भी कर दिया लेकिन कितने दिन तक! कितने दिन तक उसे दरकिनार करेंगे? दो दिन, चार दिन। फिर उसके बाद तो आप खाएंगे ना! क्योंकि जीवन दो-चार दिन का तो है नहीं। ये तो जीवन यात्रा है और आप इस जीवन यात्रा में सेवा पर हैं। अगर ऐसे में आपका अपना शारीरिक स्वास्थ्य ही ठीक नहीं है तो आपको उसकी कीमत चुकानी ही पड़ेगी ना! इसलिए हम उसको भी दरकिनार नहीं कर सकते। सेहत का ध्यान रखना ये भी परम आवश्यक है लेकिन सेहत के ध्यान के साथ-साथ मानसिक स्वास्थ्य का भी ध्यान रखना उतना ही ज़रूरी है। ऐसे नहीं कि उसे दरकिनार कर दिया कि इसके बारे में बाद में सोचेंगे, नहीं। मानसिक स्वास्थ्य को भी हमें उतनी ही प्राथमिकता देनी पड़ेगी जितनी कि अपने शारीरिक स्वास्थ्य को। तो हम जीवन की यात्रा पर ठीक से चल पाएंगे। एक है शारीरिक स्वास्थ्य और दूसरा है मानसिक स्वास्थ्य। इसी बीच अगर आपको पांच मिनट पहले ही पता चला कि मुझे स्कूल में बच्चों को छोडऩे जाना है, ठीक है! अगर मैं उस वक्त शान्त रहूँ, स्टेबल रहूँ। छोडऩे तो फिर भी जाना ही है, गाड़ी तो आपको ही चलानी है। लेकिन किस स्थिति में चलाएंगे? अगर मानसिक स्वास्थ्य ठीक नहीं है तो आप किस फीलिग्ंस से चलाएंगे, मनो-दु:ख की फीलिग्ंस में ना! हम भावनात्मक स्वास्थ्य को भी उतना ही महत्व दें जितना कि शारीरिक स्वास्थ्य को। क्योंकि शारीरिक स्वास्थ्य और भावनात्मक स्वास्थ्य अलग नहीं हैं, ये दोनों कम्बाइण्ड हैं। जैसे कि एक ही सिक्के के दो पहलू। अगर मैं भावनात्मक स्वास्थ्य से ठीक हूँ तो मैं इन परिस्थितियों को क्रॉस कर सकता हँू यानी कि हैण्डल कर सकता हूँ। ऐसे नहीं सोचें कि पहले मैं परिस्थितियों को हैण्डल कर लूँ फिर अपने मानसिक स्वास्थ्य के बारे में सोचेंगे। मानसिक स्वास्थ्य और शारीरिक स्वास्थ्य दोनों ही कम्बाइण्ड हैं। जब दोनों बैलेन्स में रहेंगे तब ही हमारी जीवन यात्रा सुखद यानी सुकून से चल सकती है। यहाँ पर एक बात और आती है जो आज दिन तक इस बात को हम मुश्किल समझ रहे थे, जैसे कि गार्डन में जाकर जॉगिंग करने की शुरुआत हीकी थी क्योंकि फिजि़कल हेल्थ को सुदृढ़ करना है। इस बात को भी हम स्टे्रस की तरह ले रहे थे मतलब कि लोगों को ये महसूस हो रहा कि क्या मैं खा रहा हूँ, कितना खा रहा हूँ, किस वक्त पर खा रहा हूँ, कितनी एक्सरसाइज़ कर रहा हूँ, क्यों हम फिजि़कल हेल्थ के बारे में सोच रहे हैं! देखिए ज्य़ादा पीछे मत जाइए। अगर हम एक जेनरेशन पीछे जाते हैं, तो अपने मात-पिता को ही देखिए वे कभी भी जॉगिंग के लिए नहीं गए, न किसी ने मिनरल वॉटर तक पीया उन दिनों में, किसी को इतना डाइट कॅान्शियस भी नहीं रहना पड़ता था, नॉर्मल लाइफस्टाइल, नॉर्मल भोजन करते थे। लेकिन आज इतना ज्य़ादा क्यों ध्यान रखना पड़ रहा है शारीरिक स्वास्थ्य पर! ऐसा इसलिए क्योंकि आज के समय भावनात्मक स्ट्रेस बहुत ज्य़ादा है। मूल में हम(आत्मा) हैं ये ध्यान रखेंगे तो सभी प्रकार की प्रॉब्लम समाप्त हो जाएंगी। क्योंकि उसका ध्यान रखेंगे तो बाकी बातों को ध्यान में रखने की ज़रूरत ही नहीं पड़ेगी। आज आप जॉगिंग करने तो जा रहे हैं लेकिन जल्दी-जल्दी में। उसमें भी तो आज तो दो-तीन लोग इकट्ठे जॉगिंग कर रहे हैं और उनके बीच जो बातें चल रही हैं उसकी क्वालिटी कैसी है, तो उसका प्रभाव मन पर ही नहीं लेकिन शरीर पर भी तो पड़ता होगा ना! तो फिजि़कल हेल्थ ज़रूरी है लेकिन हम इतना ध्यान नहीं देते कि फिजि़कल हेल्थ पर मानसिक हेल्थ का गहरा प्रभाव पड़ता है। इस बात पर ध्यान देंगे तो पूरी तरह से स्वस्थ हो जाएंगे। बस एक ही साइड पर ध्यान देंगे और दूसरी साइड को पूरी तरह से दर किनार कर देंगे तो उस पर भी प्रभाव होगा ही। मेहनत ज्य़ादा और रिज़ल्ट कम ही होगा।
खुशी के बारे में सोचें या परिस्थिति को प्रबन्धित करने के बारे में!
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