घर की एनर्जी घर में रहने वालों से बनती है। अब मान लो एक घर में चार लोग रहते हैं। उन चार की मनोस्थिति उस घर की एनर्जी बनाती है। अब वो चार लोग घर से निकलकर ऑफिस जाते हैं। वहाँ उनकी सोच अलग होती है। तो घर और ऑफिस की एनर्जी अलग होती है। वो ही चार लोग शॉपिंग करने जाते हैं या धर्मस्थल पर जाते हैं तो वहाँ की एनर्जी अलग होती है। धर्मस्थलों की एनर्जी कैसे बनती है? हम वहाँ जाते हैं और परमात्मा को याद करते हैं, धन्यवाद देते हैं, शान्ति, क्षमा, सहयोग, शक्ति ऐसी बातें करते हैं, तो उस स्थान के वायबे्रशन हाई हो जाते हैं।
जब कोई एक आता है उस स्थान पर जिसका मन बहुत परेशान होता है। वो तो भगवान को भी याद नहीं कर पा रहा, इस समय वो इतना परेशान है। यह भी हो सकता है कि वो भगवान से नाराज़ हो। उसके जीवन में बहुत कुछ गलत हुआ है। उसको लगता है इसका जि़म्मेदार भगवान है। वो गुस्से में उस धर्मस्थान पर पहुंचता है। लेकिन जैसे ही वो वहाँ पहुंचता है, उसे सुकून मिलता है। वो सुकून उसको उस स्थान के वायब्रेशन ने दिया। लेकिन वो वायबे्रशन किसने बनाया? वो सारे लोग जो वहाँ जाकर परमात्मा को याद करके अच्छे वाले वायबे्रशन क्रिएट कर रहे थे। इससे स्थान की हाई एनर्जी बन जाती है। दूर-दूर से लोग वहाँ जाने के लिए क्यों आते हैं? क्योंकि वहाँ के वायबे्रशन, वहाँ की ऊर्जा से उन्हें सुकून मिलता है।
जिनका रोल है हमें संभालने का, वो तो अपना जीवन रिस्क पर लगाकर बाहर हैं। हम सिर्फ घर पर बैठकर क्या कर रहे हैं। हमारी सिर्फ छोटी-सी जि़म्मेदारी है- अपने-अपने मन का ध्यान रखना। अपने-अपने मन का ध्यान रखकर वायबे्रशन को इतना ऊंचा उठाना है कि पूरे देश की एनर्जी चेंज हो जाए। उससे पूरे विश्व की एनर्जी चेंज हो जाए। जब वायब्रेशन चेंज हो जाएंगे, जब मन की स्थिति चेंज हो जाएगी, तो पहले मन सुरक्षित, फिर शरीर का इम्यून सिस्टम ठीक, फिर वो जो वायबे्रशन चेंज होगा, उसका प्रकृति पर भी तो असर पड़ेगा। क्योंकि संकल्प से सृष्टि बनती है। संकल्प से सिद्धि होती है।
हम स्कूल का छोटा-सा एग्ज़ाम देने जाते थे, तब भी हमें सिखाया जाता था कि मन को शान्त रखना। मन शान्त रखोगे तो सारे उत्तर याद आ जाएंगे। अगर मन टेंशन में हो गया तो जो याद था वो भी नहीं आएगा। बचपन से सिखाई गई थी ये बात कि परिस्थिति जब मुश्किल हो तो स्व-स्थिति ठीक होनी चाहिए। जब परिस्थिति अच्छी हो तब टेंशन हो तो कुछ नहीं होगा। लेकिन जब परिस्थिति अच्छी नहीं है तब टेंशन हो तो ये बहुत बड़ा रिस्क हो जाता है।
तो आज से एक एक्सपेरिमेंट। इसको कहेंगे आत्मनिर्भर। आत्मा स्वयं पर निर्भर है। इमोशनल इंडिपेंडेंस का अर्थ क्या है- डिपेंडेंट इनसाइड, मतलब दूसरों पर निर्भर नहीं अपने मन की स्थिति के लिए। तो चाहे मन में कुछ भी हो जाए हम ये नहीं कहेंगे कि उनकी वजह से ऐसा हुआ। आप सिर्फ ये कहना ये मैंने किया। जैसे ही आपने कहा कि ये मैंने क्रिएट किया, तो वह सर्कल पूरा होता है और पॉवर मेरे पास आती है। मान लो कि ऐसा करके आपने अपनी शक्ति ही बचाई है।



