मुख पृष्ठब्र. कु. सूर्यमंजि़ल पर पहुंचने के लिए निरंतरता लायें…

मंजि़ल पर पहुंचने के लिए निरंतरता लायें…

बाबा हमें भी कहते हैं कि कोई भी ऐसी गलती हो, कोई भी ऐसा संस्कार हो जो आपसे छूट न रहा हो, वो बाबा को अर्पित करो, सात दिन लगातार करो रोज़ सवेरे। और रिटर्न में फील करो कि बाबा ने मेरे सिर पर हाथ रखके वरदान दे दिया और हम मुक्त हो गए उस बुरे संस्कार से। तो लास्ट सो फास्ट जा सकेंगे।

पिछले अंक में आपने पढ़ा कि जिसको लास्ट सो फास्ट जाना है वो इस चीज़ पर बहुत ध्यान दें कि हमें सवेरे उठके परमात्म मिलन का सुख लेना है, उसको शुक्रिया किया करें तो उसके प्यार में मन मगन होता रहेगा। उससे क्षमा-याचना भी कर लें ज्य़ादा पाप कर लिए हों, ज्य़ादा विषयी जीवन रहा हो, ज्य़ादा गड़बड़ कर ली हो जीवन में, कईयों ने की है बहुत गड़बड़, वो गड़बड़ करने वाले सब जानते हैं, हमने क्या-क्या गड़बड़ की। एक तो उसे भुलाना पड़ेगा, तो ये चीज़ें भूलना सहज भी नहीं होता है, यह भी सत्य है। भुलाना तो पड़ेगा। लेकिन आगे ऐसा कुछ न हो ये प्रतिज्ञा भी करनी पड़ेगी।

भगवान को वचन भी देना पड़ेगा, अब एक नैचुरल चीज़ कर लें कि मैं तो देव कुल की पुण्य आत्मा हूँ ना! ये सब कार्य मेरे नहीं हैं। दो-चार दिन ही अपने को पढ़ाएंगे ना, सात दिन कर लो। छूट जाएंगे सारे सूक्ष्म पाप कर्म। क्योंकि पाप कर्मों का बोझ किसी के लिए भी पुरूषार्थ में सबसे सूक्ष्म बाधा होती है। मनुष्य को पता नहीं चलेगा, मन भटक जाएगा, खुशी गुम हो जाएगी, शान्ति चली जाएगी, पुराने संस्कार जागृत हो जाएंगे। ये विकर्मों के खाते का बहुत बुरा इफेक्ट होता है। इसलिए पुण्य कर्म करने का भी एक सुन्दर संकल्प कर लें। तो हमारा त्याग, चेक कर लें मुझे किस-किस चीज़ का त्याग कर देना है। पहले मेरे में ये संस्कार था, अभी मुझे इसको छोड़ के ये सुन्दर संस्कार धारण करना है।

हँसी की बात सुना दूं। एक बहुत अच्छे घर की बहन मुझे फोन करती है, बहुत साल पहले की बात है, बोली कि मेरे अन्दर चोरी की आदत है भाई जी, जाती नहीं। मैंने कहा क्यों- पैसा कम है या और कोई बात है? नहीं, सब कुछ ठीक है। मैंने कहा फिर? आज मैं कुछ सामान खरीद के आई थी एक कपड़े की दुकान से, दो साड़ी भी चोरी कर लाई। वो देख ली पति ने, पति ने कहा ये कहाँ से लाई है, ये तो लाना नहीं था। उसको शक हुआ, आग्रह, दबाव किया तो आखिर मुझे बताना पड़ा। ये तो मैं चोरी कर लाई हूँ दुकान से और सामान ले रही थी, ये भी उठा लिया। तो पति ने कहा कि अभी मेरे साथ चलो और दुकानदार के पास, क्षमा मांगों और वापिस करके आओ। अब बेचारी लज्जा के मारे ज़मीन में गड़ गई जैसे। अब वो पति इधर-उधर हुआ तो उसने मुझे फोन किया कि ऐसा हो गया, पति तो ये कह रहा है। तो मैंने कहा बहुत सुन्दर अवसर है, इस संस्कार को मिटाने का, पति को कहो कि बिल्कुल ये मेरी बहुत बड़ी गलती है, मैं इसको सुधारना चाहती थी, पर हो नहीं पा रहा था। चलो मैं आपके साथ चलती हूँ, क्षमा भी मांगती हूँ और साड़ी वापिस करती हूँ। दुकानदार बहुत खुश हुआ और उस दिन से इसका ये संस्कार छूट गया। बाबा हमें भी कहते हैं कोई भी ऐसी गलती हो, कोई भी ऐसा संस्कार हो जो आपसे छूट न रहा हो वो बाबा को अर्पित करो, सात दिन लगातार करो रोज़ सवेरे। और रिटर्न में फील करो कि बाबा ने मेरे सिर पर हाथ रखके वरदान दे दिया उसके रिटर्न में और हम मुक्त हो गए उस बुरे संस्कार से। तो लास्ट सो फास्ट जा सकेंगे। ढीली आत्माएं तो मंजि़ल पर कभी पहुंच ही नहीं सकती हैं।

अगर आपकी चाल ही ढीली है, कभी पुरूषार्थ करते हैं और कभी छूटता है, आपमें कंसिस्टेंसी है ही नहीं, निरंतरता है ही नहीं तो आप इस ऊंची मंजि़ल पर कैसे पहुंचेंगे? अपने से बात करो। सो तो बाद में लेंगे, सोने के लिए बहुत समय मिलेगा। भगवान भाग्य बांट रहा है, ये सुन्दर कॉम्पटिशन चल रहा है, रेस चल रही है। मुझे इस रेस में पीछे नहीं रहना है, गोल्ड मैडल ही लेना है, उमंग बढ़ा दो मन में। हमारे उमंगों के अनुसार हमारा बे्रन भी वैसे ही मैनेज कर लेता है। हमारे उमंग से आलस व अलबेलापन पूरी तरह समाप्त हो जाता है और हम अपनी मंजि़ल की ओर चलने लगते हैं। जब जीवन में निरंतरता आ जाती है पुरूषार्थ की, जब खुशी और नशा निरन्तर रहने लगता है तो हमारे बढ़ते हुए कदमों को कोई रोक नहीं सकता।

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