आज हमारे देश में मंत्री हैं, सलाहकार हैं, प्रधानमंत्री हैं, लेकिन कोई भी राजा नहीं है। कारण आज प्रजातंत्र है, प्रजा का प्रजा पर राज्य क्योंकि सभी एक-दूसरे के बारे में वैसा नहीं सोच पाते जैसा एक राजा अपनी प्रजा के लिए सोचता है इसीलिए अलग-अलग राज्य से, अलग-अलग प्रतिनिधि चुन कर अपने-अपने राज्य का प्रतिनिधित्व करते हैं और उसको उसी हिसाब से दर्जा देते हैं क्योंकि उनको अपने स्टेट का विकास करना होता है और विकास के लिए वहाँ अपने आपको पू्रफ करना होता है। लेकिन मंत्री, प्रधानमंत्री या कोई भी ऐसा पद आज कभी खाली भी हो सकता है। आ-जा भी सकता है। तो अगर हम इसका कारण जानने की कोशिश करें, इसका कारण क्या हो सकता है, कैसे हम इससे अपने आप को बचा सकते हैं, या कैसे एक राजा की खूबी ला सकते हैं। तो कहा जाता है कि सभी अपने बारे में सोचते हैं।
राजाओं की राजाई क्यों चली गयी क्योंकि राजायें जब अपने ऊपर फोकस हो गये, अपने परिवार के ऊपर फोकस हो गये और अपनी प्रजा को छोड़ दिया उसके बाद राजाई जाने लगी। ऐसे ही आज मंत्री हो या कोई भी देश का नेता हो, हमेशा जब देश पर फोकस होगा तो उन्नति होगी। राजा वो है जो पूरी तरह से प्रजा के हित में सोचे, हर पल, हर क्षण सोचे, आपने पहले की कहानियां भी अच्छे से सुनी और पढ़ी होंगी कि एक राजा अपने प्रति क्या भावना है प्रजा में ये जानने के लिए अपने राज्य में वो खुद ही जाकर वेष बदलकर चक्कर लगाता था, और जाकर राज्य से पता करता था, उन्हीं की भाषा में पता करता था कि राजा के बारे में हमारी राज्य की प्रजा क्या सोचती है और उसके आधार से आके वो निर्णय लेता था। तो उसका राज्य बल्कि एक पुत्र की तरह था जैसे अपने पुत्र के बारे में सोचता, वैसे वो अपने राज्य के बारे में सोचता था। राज्य सर्वोपरि था। परिवार द्वितीय था उनके लिए।
हम सभी इस दुनिया में दो चीज़ों के भूखे हैं या कहें कि दो चीज़ हमको सबसे ज्य़ादा चाहिए। सबसे पहला है सम्मान, सबको इज्जत बहुत अच्छी लगती है। और दूसरी चीज़ है उसको स्वतंत्र रहने का अधिकार है, बोलने का अधिकार, खाने का अधिकार, पीने का अधिकार, जीने का अधिकार चाहिए। ये हमारी सबसे बड़ी डिमांड है कि हमारा कोई अपमान न करे। इस दुनिया में एक छोटे व्यक्ति से लेकर एक बड़े व्यक्ति का जहाँ-जहाँ, जब-जब अपमान हुआ है पूरा राज्य खराब हुआ है, खत्म हुआ है। और इसके कितने सारे मिसाल हैं इस दुनिया में कि अगर किसी ने किसी की बेइज्जती करके, या उसका अपमान करके उसको बाहर निकाल दिया तो वो व्यक्ति शूल बनके, कांटा बनके उस पूरे राज्य को चुभ जाता है। और कुछ न कुछ ऐसा होता है जिससे पूरा राज्य नेस्तनाबूत(समूल नष्ट) हो जाता है। वैसे यहाँ भी हम सभी ज्ञानी हैं, समझदार हैं, और परमात्मा शिव निराकार हमसे राज्य की बात करते हैं कि हम सभी विश्व महाराजन बनें, पूरे विश्व को बांध कर रखें तो यहाँ भी वो चीज़ लागू होती है, सर्टीफिकेट की बात होती है कि सभी को स्वयं से संतुष्टि की बात है, परिवार से, समाज से, देश से तो ऐसे ही जो परमात्मा की संतुष्टि है वो ये है कि आपके अन्दर पूरे विश्व में जितनी भी आत्मायें हैं यदि उनके प्रति या किसी के प्रति भी दुर्भावना है, थोड़ा भी भावना में कमी है तो हम राजा कहाँ से बन पायेंगे!
मतलब सद्भावना सबके लिए रखना ये एक बहुत बड़ा चैलेंज है। बहुत बड़ा टास्क है। क्योंकि हो ही जाता है लोगों का ये मानना है। ऐसी मान्यता सही नहीं है, लेकिन उन लोगों का मानना है कि हो ही जाता है कि जहाँ के हम होते हैं वहाँ के प्रति भावना ज्य़ादा है। इसका मतलब अभी भी हद की स्थिति है हमारी। सो राजा हद का नहीं बेहद का होता है। बेहद की सोच होती है, बेहद का संकल्प होता है सो परिवार हमारा राज्य है बेसिकली। आधारित है और आधार किस बात का है! मान पर आधारित है। हर कोई को आप सिर्फ सम्मान देकर देखिये,किसी भी तरह से उसकी इन्सल्ट न हो। चाहे छोटा बच्चा है, चाहे बड़ा बच्चा है, चाहे कोई सेवाधारी है, चाहे कोई बड़े पद वाला है। आप समझो उसी दिन से आपके प्रति सबका व्यवहार, सबकी भावना बदल जायेगी। और वो व्यक्ति राजा ना होते हुए भी राजा है। हर कोई उसको बिना समझे, बिना जाने ऐसे ही सम्मान देगा। तो एक राजा को सभी प्रजा एक भगवान के रूप में पूजती है। भगवान के रूप में समझती है। और उसको पूरा विश्वास है होता है कि अगर मैं इनके पास जाऊंगा तो ये मेरी बात सुनेंगे।
तो हम सबको अपने आपको खुद ही खुद चेक करना चाहिए कि मेरे अन्दर जितने भी हमारे आस-पास के लोग हैं, जिनके साथ हम रहते हैं या जिनसे हम मिलते हैं या जिनसे हम नहीं भी मिलते उनके प्रति हमारी क्या भावनाएं हैं। क्या हमारे अन्दर कामनायें हैं, कैसी स्थिति है, उसके आधार से हम अपने आपको इस टाइटल से नवाज सकते हैं। नहीं तो आने वाले समय में वैसे तो सारी चीज़ें अपने आप स्पष्ट हैं फिर भी अपने से इस बात की चेकिंग करने से आपको बहुत कुछ मिल सकता है। क्योंकि समय और समय की गति दोनों चीज़ें अगर आप ध्यान से देखेंगे तो कुछ समय हम भले किसी न किसी कामना के वश, किसी के साथ अपमान या ऐसा व्यवहार हम कर सकते हैं लेकिन वो पद हमेशा तो नहीं रहेगा ना! लेकिन राजा हमेशा राजा है। कभी वो नॉर्मल स्थिति में या अब्नॉर्मल(असामान्य) स्थिति में नहीं आ सकता। तो ये एक बहुत सोचनीय विषय है कि मैं अपने आपको कहाँ तक देख पाता हूँ या कहाँ तक सोच पाता हूँ, या कहाँ तक रख पाता हूँ। उसी के आधार से मेरा जीवन अपनी इन्द्रियों पर भी कंट्रोल करने वाला होगा और दूसरों पर भी नैचुरल कंट्रोल, इसी को राजा जनक की स्थिति कह सकते हैं।